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गुरु पूर्णिमा: श्रद्धा और सम्मान का पर्व

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गुरु पूर्णिमा: श्रद्धा और सम्मान का पर्व परिचय गुरु पूर्णिमा एक महत्वपूर्ण भारतीय त्योहार है जो गुरु और शिष्य के बीच के पवित्र संबंध का प्रतीक है। यह पर्व भारतीय संस्कृति में ज्ञान, शिक्षा और गुरु के महत्व को रेखांकित करता है। गुरु पूर्णिमा हिंदू, जैन और बौद्ध धर्मों में मनाई जाती है। यह आषाढ़ महीने की पूर्णिमा के दिन पड़ती है, जो आमतौर पर जून या जुलाई में आती है। गुरु पूर्णिमा का महत्व गुरु पूर्णिमा का मुख्य उद्देश्य गुरु के प्रति श्रद्धा और सम्मान व्यक्त करना है। "गुरु" का अर्थ है अज्ञानता के अंधकार को दूर करने वाला और "पूर्णिमा" का अर्थ है पूर्ण चंद्रमा की रात। इस दिन, शिष्य अपने गुरु को उनके मार्गदर्शन और शिक्षा के लिए धन्यवाद देते हैं और उनका आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। यह पर्व भारतीय शिक्षा प्रणाली में गुरु के सर्वोच्च स्थान को दर्शाता है। ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व गुरु पूर्णिमा का इतिहास और धार्मिक महत्व भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। इस दिन को विभिन्न धर्मों में अलग-अलग कारणों से मनाया जाता है: 1. हिंदू धर्म: गुरु पूर्णिमा महर्षि...

अपना फर्ज निभाते हैं

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इस दुनिया में सब, अपना फर्ज निभाते हैं। बी. पी. शुगर बढ़ाने वाले ही, मशीन व दवाई लाते हैं।। जी हां, इस दुनिया में सब, अपना फर्ज निभाते हैं। मैं हूं ना कहने वाले ही, साथ छोड़ जाते हैं।। वो हमारे सुख में, साथ आते नही हैं। क्योंकि फर्ज है उनका भी, दुख में मुस्कुराते नहीं हैं।। बहुत शातिर हैं, वो चंद लोग, जो अपना फर्ज निभाते हैं। क्योंकि परेशानियों में डालकर, वो अकेले में मुस्कुराते हैं, लेकिन वो अपना फर्ज जरूर निभाते हैं।। वो कुछ ऐसा नहीं कहते, कि किसी बात की शुरुआत हो। और कुछ ऐसा भी नहीं करते जिससे सुख भरी रात हो।। लेकिन हमें तकलीफ में देखकर, वो हमे अपनाते हैं। पीठ पीछे मुस्कुराकर, वो सामने से फर्ज निभाते हैं।। अपनों के दायरे में नाम आता है इनका, जो ऐसा फर्ज निभाते हैं।

लाल कफन

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मै क्यों ख्वाहिश पूरी करूं उनकी। जिन्होंने मुझे लाल कफन में दफना दिया।। मैं क्यों मुस्कुराऊं उनके कहने पर। जिन्होने मुझे रोना और उदास रहना सिखा दिया।। मैं क्यों उनके हिसाब से जीऊं। जिन्होने मुझे जिंदा लाश बना दिया।। बताओं मुझे, मैं क्यो कठपुतली बन जाऊं। किसी साहब की, मुझे लाल कफन पहना दिया।। मैं क्यों तनिक दुख बर्दाश्त करूं उनके लिये, जिन्होंने अपने जीवन में मेरा न. बाद मे रखा है। मेरी खिलखिलाती मुस्कान को सिर्फ विवाद मे रखा है।। मै क्यों उनके साथ समझोता करूं, जो मेरे सब कहने पर भी मुझे नहीं समझ पाते। दुख में साथ मांगते मेरा और सुख में मुझे खोजने नहीं आते।। उन्हें माननी होगी ये बात उन्होंने मेरा हंसना भुला दिया। बड़े ही शातिर थे वे शख्स, मुझे लाल कफन में दफना दिया।।

श्री राम लक्ष्मण जानकी स्वागतम

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श्री राम लक्ष्मण जानकी स्वागतम। 22 जनवरी 2024 दिन अत्यन्त पावन व उत्तम।। हम मिथिला वासी, बड़े भाग्यशाली, जो देखेंगे। श्री राम लक्ष्मण जानकी स्वागतम। जीवन हुआ धन्य और उत्तम॥ 22 जनवरी 2024 के दिन, राम स्वयं धरती पर आएंगे। 84 लाख जीव कलयुग के, सब तर जायेंगे।। मोदी जी के साथ-साथ, डी.एम. सी. एम. मजदूर। सभी को कोटी - कोटी धन्यवाद, जो अयोध्या को किया दोबारा से मशहूर॥  मैं अनीता झा अपने घर को, दुल्हन सा सजाऊंगी। श्री राम लक्ष्मण जानकी स्वागतम को, भव्यता से मनाऊंगी।।

मृत्यु

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  मेरे आँगन की पहली मृत्यु ने एक अजीब सच बताया है। अनुभव से लिखा है मैंने, मानव मे कितना प्रेम और कितना रंग समाया है।। यूं तो कभी साथ मे बैठकर दो शब्द कहा नहीं। अब मृत्यु देखकर कहा मानव ने मेरा प्रिय रहा नहीं।। वाह रे मानव तूने कैसा प्रेम जताया है। मृत्यु के बाद तूने क्या फर्ज निभाया है? माना मैंने कि तुझे उनसे तकलीफ थी। क्या मानव की मृत्यु एक नई सीख थी? मानती हूं मैं, जीते जी इतना सम्मान मिलने पर, मानव का अहंकार बढ़ता है। क्या मृत्यु के बाद के फ़र्ज को पूरा करने से संस्कार बढ़ता है? मानव तेरा दिखावा और तेरा स्वार्थ यही तक साथ निभाएगा। याद रखना, ईश्वर के घर, सिर्फ निस्वार्थ प्रेम व सच्चा कर्म ही जाएगा।। मत बहाना आंसू किसी की मृत्यु पर। एक बार जीते जी गले लगाना, मानव की गलतियों को नजरअंदाज कर।।