मृत्यु
मेरे आँगन की पहली मृत्यु ने एक अजीब सच बताया है।
अनुभव से लिखा है मैंने,
मानव मे कितना प्रेम और कितना रंग समाया है।।
यूं तो कभी साथ मे बैठकर दो शब्द कहा नहीं।
अब मृत्यु देखकर कहा मानव ने मेरा प्रिय रहा नहीं।।
वाह रे मानव तूने कैसा प्रेम जताया है।
मृत्यु के बाद तूने क्या फर्ज निभाया है?
माना मैंने कि तुझे उनसे तकलीफ थी।
क्या मानव की मृत्यु एक नई सीख थी?
मानती हूं मैं,
जीते जी इतना सम्मान मिलने पर,
मानव का अहंकार बढ़ता है।
क्या मृत्यु के बाद के फ़र्ज को पूरा करने से संस्कार बढ़ता है?
मानव तेरा दिखावा और तेरा स्वार्थ यही तक साथ निभाएगा। याद रखना,
ईश्वर के घर,
सिर्फ निस्वार्थ प्रेम व सच्चा कर्म ही जाएगा।।
मत बहाना आंसू किसी की मृत्यु पर।
एक बार जीते जी गले लगाना,
मानव की गलतियों को नजरअंदाज कर।।
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें