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रामचन्द्र श्रीवास्तव की कविताएं और गीत लेबल वाली पोस्ट दिखाई जा रही हैं

कल्पना के पंख

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 ┈┉┅━❀꧁꧂❀━┅┉ कल्पना के पंख ┈┉┅━❀꧁꧂❀━┅┉┈ तुमसे मिलकर, दिल मेरा, जाने कहाँ गुम हो गया, मानो कोई कल्पना के पंख लेकर उड़ चला। ज़िन्दगी बेरंग थी, तुम आ गए रंग आ गया, मानो अंधियारे को कोई चीरता रौशन दिया। चेहरे की मासूमियत, नटखट ये अंदाज ए बयां, मानो जैसे कि कन्हैया कर रहा अठखेलियां। ज़िन्दगी कागज़ है जिसपर तुमने दी निशानियां, मानो चित्रकार कोई करता चित्रकारियां। गौरवर्णी गाल पर एक श्यामवर्णी तिल धरा, मानो बर्फीली सतह पर अकड़ कर कोई खड़ा। गेसुओं के कोर पर पानी की बूंदों का धड़ा, मानो मंगलसूत्र कोई खास हीरों से जड़ा। देखते ही देखता मैं एकटक तुमको रहा, मानो एकदम से खज़ाना देख कोई हिल गया। नख हैं लंबे धारती हैं लंबी, कानी उंगलियां, मानो तीक्ष्ण हथियारों का ही ज़ख़ीरा मिल गया। हंसना, रोना, रूठना, और फिर झगड़ना, मानना, मानो कला का एक धनी किरदारों में डूबा पड़ा। तिरछी आंखों से कभी वो देखना मुझको तेरा, मानो तीरंदाज़ कोई हो निशाना ले रहा। जागती आंखों में भी केवल तुम्हारा अक्स सा, मानो कोई ख्वाब में ही हो हक़ीक़त जी रहा। प्रणय निवेदन मेरी जिद और दिल तुम्हारा पिघल रहा, मानो ...

ज़रूरत

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 ┈┉┅━❀꧁꧂❀━┅┉┈ ज़रूरत ┈┉┅━❀꧁꧂❀━┅┉┈ तुझे मेरी ज़रूरत है। मुझे तेरी ज़रूरत है। ज़रूरत से ये दुनिया है, बड़ी सबसे ज़रूरत है। ज़रूरत आदमी की है। ज़रूरत ज़िन्दगी की है। ज़रूरत दुःख के इस बाज़ार में, अदना हँसी की है। ज़रूरत खानदानी है। ज़रूरत की कहानी है। बुढ़ापे को ज़रूरत में ही, पूछे ये जवानी है। ज़रूरत से ही रिश्ते हैं। ज़रूरत पर जो हंसते हैं। ज़रूरत पर बिखरते हैं, ज़रूरत पर पनपते हैं। ज़रूरत पर भजन करते। ज़रूरत पर नमन करते। ज़रूरत पर ज़रूरतमंद, क्या क्या ही जतन करते। ज़रूरत मंज़िलों की है। ज़रूरत सब दिलों की है। है छोटी ज़िन्दगी लेकिन, ज़रूरत कई किलो की है। ज़रूरत हर किसी की है। ज़रूरत हर कहीं की है। ज़रूरत आसमां की तो, कभी होती ज़मीं की है। ज़रूरत जीत जाने की। ज़रूरत आजमाने की। ज़रूरत मुस्कुराने की, ज़रूरत घर ठिकाने की। ज़रूरत एक छत की है। ज़रूरत कुछ बचत की है। भरे पूरे घरों में अब, ज़रूरत एक मत की है। ज़रूरत श्वास की भी है। ज़रूरत आस की भी है। ज़रूरत लुप्त होते आजकल, विश्वास की भी है। ज़रूरत है सियासत की। ज़रूरत है बग़ावत की। ये दुनिया हो गई पापी, ज़रूरत है कयामत की। ज़रूरत गुफ्तगू की...

नमामी शिव, शिवः, शिवम

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 नमामी शिव, शिवः, शिवम नमामी शिव, शिवः, शिवम, नमामी चन्द्र शेखरं। हैं आदि अंत से परे, स्वयंभू शिव त्रिलोचनं। श्री गंगाधर, जगतपिता, त्रिशूल धारी शंकरं। वो देवों के भी देव हैं, नमामी दिग दिगम्बरं। हरेक कण में शिव ही हैं, हरेक क्षण में शिव ही हैं। हरेक तन में शिव ही हैं, हरेक मन में शिव ही हैं। वो व्याप्त सर्व ओर है, निशा है या कि भोर है। हृदय दया से पूर्ण है, पर आवरण कठोर है। गले में सर्प कुण्डली, जटा से गंग है चली। जो व्यक्ति धर्म युक्त है, करेंगे उसकी शिव भली। त्रिशूल डमरू धारते, वो दुष्टों को संहारते। हे भोले, शंभू, नील कंठ, देव पग पखारते। हृदय वृहद विशाल है, दयालु और कृपाल हैं। वो देवताओं के भी देव, काल के भी काल हैं। ये सृष्टि उनसे चल रही, गले गरल धरे वही। इधर, उधर, यहाँ, वहाँ, बसे वही हैं हर कहीं। जगत चलायमान है, ये भोले का विधान है। है शिव का हाथ जिसपे भी, वो बन गया महान है। नमः शिवाय बोलिए, प्रकाश मार्ग खोलिए। शरण में शिव की आइए, हृदय को शिव से जोड़िए। स्वरचित मौलिक रचना रामचन्द्र श्रीवास्तव कवि, गीतकार एवं लेखक नवा रायपुर, छत्तीसगढ़ संपर्क सूत्र: 6263926054

वतन के वीरों को नमन

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  ┈┉┅━❀꧁꧂❀━┅┉┈ वतन के वीरों को नमन ┈┉┅━❀꧁꧂❀━┅┉┈ वतन के वीरों को नमन, खड़े सीमा पे जो तन के। हमारी श्वास है उनसे, खड़े रक्षा कवच बन के। वतन के वीरों को नमन, जो प्राणों पर सदा खेलें। खड़े, करते निगेहबानी, धूप, वर्षा, शरद झेलें। वतन के वीरों को नमन, जो कुनबा देश को मानें। ज़रूरत देश की हो तो, लुटा दें, छीन लें जानें। वतन के वीरों को नमन, जो पहले देश को रखते। न दें एक इंच भी भूमि, पराजय शत्रुबल चखते। वतन के वीरों को नमन कि जिनके दिल में भारत है। वतन पे जीने मरने की ही केवल दिल में हसरत है। वतन के वीरों को नमन, जो सच्चे देशबन्धु हैं। वतन की रक्षा को तत्पर, वही तो भारतेन्दु हैं। वतन के वीरों को नमन, जो घर को छोड़ कर आते। जो अपनें पारिवारिक रिश्तों में बस देश को पाते। वतन के वीरों को नमन, धर्म ही देश जिनका है। शौर्य, बलिदान में डूबा हुआ परिवेश जिनका है। वतन के वीरों को नमन, भरोसे की निशानी है। मिसालें वीरता की देश ने दुनिया ने जानी है। वतन के वीरों को नमन, जिन्हें जां से वतन प्यारा। जिन्हें पूजे, जिन्हें चाहे, सलामी दे वतन सारा। वतन के वीरों को नमन, है जिनका एक ही अरमां...

क्या करूँ कि उलझने सुलझती ही नहीं?

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  ┈┉┅━❀꧁꧂❀━┅┉┈ क्या करूँ कि उलझने सुलझती ही नहीं? ┈┉┅━❀꧁꧂❀━┅┉┈ क्या करूँ कि उलझने सुलझती ही नहीं? राह कोई बीच की निकलती ही नहीं। तूने धैर्य को भी आजमाया क्या? तेरे अपनों को भी कुछ बताया क्या? चिन्ता छोड़ चिन्तन किया तूने, खुद को खुद ही रस्ता दिखाया क्या? क्या करूँ कि ज़िन्दगी सरकती ही नहीं? राह कोई बीच की निकलती ही नहीं। क्या करूँ कि उलझने..... क्या भरोसा तुझको ईश पर है? क्या कोई उम्मीद तेरे घर है? हाथ जोड़ कर के मांग माफ़ी, गर कोई गुनाह तेरे सर है। क्या करूँ कि बेड़ियां ये कटती ही नहीं? राह कोई बीच की निकलती ही नहीं। क्या करूँ कि उलझने..... क्या पता कि ये तेरी परीक्षा हो? जिन्दगी की मिलने वाली शिक्षा हो। कोशिशों का साथ पकड़े रहना तू, क्या पता भविष्य और अच्छा हो? क्या करूँ कि मुश्किलें सिमटती ही नहीं? राह कोई बीच की निकलती ही नहीं। क्या करूँ कि उलझने..... हाथ में तेरे है तो फिकर कर। वरना चिन्ता छोड़ सारी उस पर। वो पिता है तुझको उतना देगा, जितना बोझ रख सके तू सिर पर। क्या करूँ कि खुशियां दिल में बसती ही नहीं? राह कोई बीच की निकलती ही नहीं। क्या करूँ कि उलझने..... नाउम्मीदि...

जगत हो ज्योतिर्मयी

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  ┈┉┅━❀꧁꧂❀━┅┉┈ दिनांक: 01/07/2025 शीर्षक: जगत हो ज्योतिर्मयी ┈┉┅━❀꧁꧂❀━┅┉┈ हर कोई प्रसन्न हो। ना कोई विपन्न हो। मन में जो भी हो दिखे, कुछ ना अप्रछन्न हो। सर्वजन विकास हो। ईर्ष्या द्वेष ह्रास हो। जीव के समूल से, शूल का निकास हो। व्यक्ति धीरवान हो। जातिगत समान हो। हो दया हृदय लिए, संस्कारवान हो। प्रेम से ही बात हो। करते नमन हाथ हो। कोई भी कहीं भी कार्य, ना कभी बलात हो। ना कहीं भी लोभ हो। ना हृदय में क्षोभ हो। व्यक्ति जो विकारहीन, वो जगत का शोभ हो। क्रोध का दमन करे। ईश का मनन करे। ऐसे व्यक्ति को अवश्य, व्यक्ति हर नमन करे। त्याग ही स्वभाव हो। वेद का प्रभाव हो। व्यक्ति व्यक्ति से जुड़े, न कहीं दुराव हो। पाप कर्म क्षीण हो। त्याज्य जीर्ण शीर्ण हो। पुण्य का प्रताप हो, पुण्य ही प्रकीर्ण हो। व्यक्ति हो दृढ़ निश्चयी। नारी हो ममतामयी। दोनों के सहयोग से, जगत हो ज्योतिर्मयी। ┈┉┅━❀꧁꧂❀━┅┉┈ स्वरचित मौलिक रचना रामचन्द्र श्रीवास्तव कवि, गीतकार एवं लेखक नवा रा यपुर, छत्तीसगढ़ संपर्क सूत्र: 6263926054 ┈┉┅━❀꧁꧂❀━┅┉┈

भक्ति में लीन मन

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  ┈┉┅━❀꧁꧂❀━┅┉┈ विषय: "भक्ति में लीन मन" ┈┉┅━❀꧁꧂❀━┅┉┈ ईश के छुएं चरण, ईश के भजें भजन, ईश की कृपा से हो, भक्ति में लीन मन। ईश ही प्रकाश पुंज, नभ गिरी धरा कुंज, भक्ति मार्ग से हो शुद्ध, पापी मलीन मन। ब्रह्मदेव ढालते हैं, विष्णुदेव पालते हैं, शिव संहार कर्ता हैं, चंचल मीन मन। जाने महिमा नाम की, कहता बातें काम की, ईश को भजे सदैव, उच्च कुलीन मन। ईश की कृति पवित्र, उच्च है तेरा चरित्र, ईश से जुड़ा हुआ तू, ना कर हीन मन। ईश से न फेर आंख, अंतर्मन में तू झांक, ईश से विमुख हो तो, धर्म विहीन मन। लोभ मोह क्रोध छोड़, पाप से तू नाता तोड़, स्मरण में ईश के हो, सदा तल्लीन मन। ईश में ही हो प्रयास, रोम रोम श्वास श्वास, ईश में रहे सदा ही, तेरा विलीन मन। सुन तेरी ही तू सदा, ईश के भजन तू गा, ईश को ही सौंप दे तू, स्व के अधीन मन। कर्म सौंप ईश को तू, पूज जगदीश को तू, ईश का ही ध्यान कर, होगा नवीन मन। मन भरा विकार हो, संदुषित विचार हो, ईश को न मानता हो, वो भाग्यहीन मन। बाद काम दूजा कर, आगे ईश पूजा कर, रात्रिकाल सायंकाल, प्रातःकालीन मन। ┈┉┅━❀꧁꧂❀━┅┉┈ स्वरचित मौलिक रचना रामचन्द्र श्रीवास्तव कवि, गीतकार एवं ...

तुम्हारा प्यार

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 ┈┉┅━❀꧁꧂❀━┅┉┈ तुम्हारा प्यार ┈┉┅━❀꧁꧂❀━┅┉┈ तुम्हारा प्यार बारिश है, जिसकी हर एक बूंद, मेरे मन के, वन की, दावाग्नि को, बुझा देती है। तुम्हारा प्यार हवा का झोंका है, जिसकी गति, मेरे अवगुणों को, मुझसे, बहुत दूर, उड़ा देती है। तुम्हारा प्यार सागर है, जिसमें उठी भंवर, मेरे समूचे व्यक्तित्व को, खुद में, समा लेती है। तुम्हारा प्यार नदी की धारा है, जिसकी लहर, मुझे अपने आगोश में, समेट कर बहा लेती है। तुम्हारा प्यार मासूम हंसी ठिठोली है, जिसकी हरकत, तुम्हारे साथ, मुझे भी, शरारती बच्चा बना देती है। तुम्हारा प्यार लोरी है, जिसकी मनमोहक लय, मेरे भीतर के, बच्चे को, शांत कर, सुला देती है। तुम्हारा प्यार चलचित्र है, जिसकी दृश्यावली, मुझसे, मेरे व्यक्तित्व की, पहचान करा देती है। तुम्हारा प्यार मनोरम गीत है, जिसकी संगीत ध्वनि, मुझ भावहीन को, भावपाश में डाल, संग नचा देती है। तुम्हारा प्यार चांदनी है, जिसकी शीतलता, आंखों को, ठंडक दे, थपथपा कर, सुला देती है। तुम्हारा प्यार सूरज की पहली किरण है, हर सुबह, जो मेरे चेहरे पर पड़, सहला कर, मुझे उठा देती है। तुम्हारा प्यार गुरुत्वाकर्षण है, जिसकी चुंबकीय शक्ति...

राम में रम गए

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┈┉┅━❀꧁꧂❀━┅┉┈ दिनांक: 21/06/2025 ┈┉┅━❀꧁꧂❀━┅┉┈ राम में रम गए, रम हुए राममय। राम में ही रमे, सब जगत के विषय। ब्राह्मण का वेश धरे। मित्र का संताप हरे। बजरंगी मिलने आए राम लखन से। भान हुआ प्रभु का जब। भूल गए सुध बुध सब। चरण छुए, गले मिले, गदगद मन से। भक्त का ईश में हो रहा है विलय। राम में ही रमे, सब जगत के विषय। राम में रम गए, रम हुए राममय। राम में ही रमे, सब जगत के विषय। माँ जानकी ढूंढें। हर जीव से पूछें। अपनी व्यथा भक्त से कह रहे। दोनों ही सुनते हैं। दोनों हो कहते हैं। दोनों ही तो भाव में बह रहे। राम पालक हैं और शिव स्वयं हैं प्रलय। राम में ही रमे, सब जगत के विषय। राम में रम गए, रम हुए राममय। राम में ही रमे, सब जगत के विषय। ┈┉┅━❀꧁꧂❀━┅┉┈ स्वरचित मौलिक रचना रामचन्द्र श्रीवास्तव कवि, गीतकार एवं लेखक नवा रायपुर, छत्तीसगढ़ 6263926054 ┈┉┅━❀꧁꧂❀━┅┉┈

परिवार

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 ┈┉┅━❀꧁꧂❀━┅┉┈ परिवार ┈┉┅━❀꧁꧂❀━┅┉┈ खुली आंखों से दिखता है उसे संसार कहते हैं। बिना शर्तों के मिलता है उसी को प्यार कहते हैं। गिले शिकवे भुला कर भी खड़े जो साथ रहते हैं । सम्हाले और न गिरने दे उसे परिवार कहते हैं। कि पहला प्यार माता है जगत जिसने दिखाया है। किसी माँ ने न बच्चों को कभी भूखा सुलाया है। पड़ी जब धूप की बदली तो आंचल में छिपाया है। ज़रूरत में खड़ा आगे तो माता को ही पाया है। पिता का प्यार दुनिया में हमें चलना सिखाता है। अगर थोड़ा भटक जाएं सही रस्ता दिखाता है। पिता निष्ठुर है इस खातिर वो माँ से कम ही भाता है। अगर माँ जन्म देती है पिता जीवन चलाता है। बहन भाई किसी को भी तो अच्छे से समझते हैं। वो जितना प्यार करते हैं वो उतना ही झगड़ते हैं। वो पहले दोस्त जो अपने हमें जीवन में मिलते हैं। वो जितना हो सके हमको दुखों से दूर रखते हैं। कि पत्नी आती है परिवार की खुशियां बढ़ाती है। वो एक घर बार को तज कर हमें अपना बनाती है। सभी को खुश करे ऐसे जतन हर आजमाती है। वो घर की लक्ष्मी घर को करीने से सजाती है। कि छोटे बच्चों से घर अंगना गूंजे है किलकारी। बने हैं बाप हम पत्नी बनी बैठी है महतारी। लि...

पत्रकारों के लिए विशेष रचना

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  ┈┉┅━❀꧁꧂❀━┅┉┈ पत्रकारों के लिए विशेष रचना 06/06/2025 ┈┉┅━❀꧁꧂❀━┅┉┈ वो खतरों से हैं खेलते। न जाने क्या क्या झेलते। चतुर्थ खम्भ देश को, विकास पर धकेलते। न झूठ सच को बोलते। दबी वो बात खोलते। कि खास आम सबकी ही, वो नब्ज़ को टटोलते। समाज की बुराई पर वो कर रहे प्रहार हैं। वो मीडिया के योद्धा वीर धीर पत्रकार हैं। हुआ है क्या इधर उधर। वो ले के आते हैं खबर। वो दृश्य शांति का ही हो, या हो कोई प्रखर समर। लगाते बाज़ी जान की। है चाह सिर्फ मान की। बहस करें वो देशहित, जो बात आए शान की। समाज के हितों के कार्य करते बार बार हैं। वो मीडिया के योद्धा वीर धीर पत्रकार हैं। लगे कलम को थामने। वो सच को लाते सामने। वो उनको भी हैं जांचते, जिन्हें चुना अवाम ने। हैं धमकियों के शोर से। घिरे वो चारों ओर से। वो ना रुकें वो ना थकें, लगे हैं पूरे ज़ोर से। मरे तो यह शरीर है न मर सके विचार हैं। वो मीडिया के योद्धा वीर धीर पत्रकार हैं। कभी भी वो नहीं बिके। वो सच पे ही सदा टिके। वो अपनी कामयाबियों, को अपने हाथों से लिखे। वो नींद चैन त्याग कर। कुवृत्तियों से भागकर। वो सत्य का अलख जला, जगाता सबको जागकर। कि कोशिशों से उनकी...

तुम्हें बारिश में जब देखूं

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 ┈┉┅━❀꧁꧂❀━┅┉┈ तुम्हें बारिश में जब देखूं ┈┉┅━❀꧁꧂❀━┅┉┈ तुम्हें बारिश में जब देखूं तो दिल मेरा बहकता है। बहुत कुछ चाहता कहना मगर थोड़ा ठिठकता है। तेरा वो खेलना बारिश में और रह रह के मुस्काना। मेरा दिल देख के तुझको महकता और चहकता है। तुम्हें बारिश में जब देखूं नज़र जाती है मेरी थम। मेरी धड़कन है बढ़ जाती नहीं होती ज़रा भी कम। तुम्हारे बाल गीले हैं तुम इनको जब झटकती हो। लगे मुझको तो कुछ ऐसा मेरा निकलेगा दम हमदम। तुम्हें बारिश में जब देखूं तो खुद से दूर होता हूँ। तुम इतनी खूबसूरत हो कि मैं मग़रूर होता हूँ। मैं टिक सकता नहीं जाना न सूरत में न सीरत में। मगर तेरा है शुकराना तुझे मंज़ूर होता हूँ। तुम्हें बारिश में जब देखूं मैं काबू में नहीं रहता। मैं खुद को रोक लेता हूँ मगर तुमसे नहीं कहता। ये जैसे बूंद बारिश की बदन से बह के गिरती है। यूं ही चाहूं कि मैं पागल रहूँ तेरे संग ही बहता। तुम्हें बारिश में जब देखूं ये दिल मदहोश हो जाए। तेरी साड़ी के आंचल को ये दिल छूना ज़रा चाहे। तेरा दीदार करती है नज़र नजरें छुपा कर के। कहीं ऐसा न हो सारा मेरा गुम जोश हो जाए। तुम्हें बारिश में जब देखूं मेरे अरमां ...

तेरे ही साथ अब जाना

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  ┈┉┅━❀꧁꧂❀━┅┉┈ तेरे ही साथ अब जाना ┈┉┅━❀꧁꧂❀━┅┉┈ तेरे ही साथ अब जाना मुझे हर शाम रहना है। तेरी हर बात को तुझसे ओ मेरे यार कहना है। तेरी सांसों में धड़कन में मेरे दिलदार बहना है। नहीं जीना जुदा होकर जुदाई अब न सहना है। तेरे ही साथ अब जाना मेरी ये जिंदगानी है। मुझे हर शाम बस तेरी ही बाहों में बितानी है। अमर जो इश्क करना है जरूरी आग पानी है। मुहब्बत के परिंदे हम ये रब की मेहरबानी है। तेरे ही साथ अब जाना मुझे तो चलते जाना है। मेरा हर शाम तेरा दिल तेरा दिल ही ठिकाना है। ज़माने ने मुहब्बत को कहाँ कब ठीक माना है। तेरी दुनिया है मुझमें और मेरा तुझमें ज़माना है। तेरे ही साथ अब जाना तू मुझको बात करने दे। मुझे पहचानना है ग़र तो आंखों में उतरने दे। तू मुझको थाम के दिल में ज़रा मुझको ठहरने दे। मैं एक तस्वीर टूटी सी उठा मुझको संवरने दे। तेरे ही साथ अब जाना उमर सारी बिता लूंगा। मैं हर एक शाम यादों की किताबों में छिपा लूंगा। तेरे नखरे उठाऊंगा मैं आखिर तक निभा लूंगा। तू मेरा साथ दे देना मैं हर हिम्मत जुटा लूंगा। तेरे ही साथ हर शामें टहलना चाहता है दिल। न हो गर साथ तेरा तो मेरा जीना भी है मुश्किल...

लिख दूंगा

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  जहाँ तुम हो मेरी जाना मुझे भी तुम वहीं समझो। तुम्हें मैंने चुना मेरी पसंद को तुम सही समझो। फकत मुझमें तुम्हारी ही तुम्हारी थी कमी समझो। मेरी नजरों से तुम देखो तो खुद को महजबीं समझो। तुम्हारे नाम के नीचे मैं अपना नाम लिख दूंगा। तुम्हारे दिल को ही जन्नत औ चारों धाम लिख दूंगा। तुम्हीं रस्ता, तुम्हीं मंजिल, तुम्हें पैगाम लिख दूंगा। तुम्हीं आगाज, तुमको ही मेरा अंजाम लिख दूंगा। तेरे दिल के कहीं भीतर मेरा एक और भी घर है। जहाँ यादों का पहरा है औ यादों का ही मंजर है। मेरी दुनिया यकीं कर लो तुम्हारे दिल के अंदर है। मैं बहती नाव के जैसा तुम्हारा दिल समन्दर है। तुम्हारे सुर्ख होठों को छलकते जाम लिख दूंगा। तुम्हारे संग मिलता है मुझे आराम लिख दूंगा। मैं तुमको राधिका खुद को सलोना श्याम लिख दूंगा। ओ मेरी "अर्चना" खुद को तुम्हारा "राम" लिख दूंगा। मैं हर एक रात जगता हूँ, कभी खुद जगाओ तुम। मेरी गजलों को मेरे संग आकर गुनगुनाओ तुम। तुम्हे ज़िद आजमाने की तो बेशक आजमाओ तुम। तुम्हारा नाम इस दिल पर, है हिम्मत तो मिटाओ तुम। तुम्हीं दिन रात, तुमको ही मैं सुबह शाम लिख दूंगा। मेरा जो ...

छाँह मिल जाएगी

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  दिनांक: 27/05/2025 विषय: छाँह मिल जाएगी जहाँ चाह वहाँ राह, ढूंढनी पड़ेगी छाँह, चाह दमदार हो तो, छाँह मिल जाएगी। है खुद पे विश्वास तो, हुनर तेरा खास तो, तेरे मन की संपत्ति, कहीं नहीं जाएगी। लगातार जो चलेगा, हाथ कभी ना मलेगा, मान तू मंजिल तेरी, तुझे मिल जाएगी। माना कि प्रतीक्षा हुई, ये भी एक शिक्षा हुई, जिंदगी से सीख लेगा, बात बन जाएगी। कर्म पे है अधिकार, फल छोड़ दे उधार, एक दिन मेहनत, तेरी रंग लाएगी। अच्छा व्यवहार तेरा, सब से ही प्यार तेरा, अच्छी आदतें ही तुझे, जग में जिताएगी। कितनी भी ऊंचाई हो, अन्दर में सच्चाई हो, परिस्थिति कोई भी हो, तुझे न गिराएगी। " राम " की तू बात मान, तू लगा दे पूरी जान, फिर कोई भी ना शक्ति, तुझे रोक पाएगी। स्वरचित मौलिक रचना रामचन्द्र श्रीवास्तव कवि, गीतकार एवं लेखक नवा रायपुर, छत्तीसगढ़ 6263926054

हिन्दी

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25/05/2025 विषय: हिन्दी पहले सुनाई दिया, बाद में दिखाई दिया, जन्मते ही सुना जिसे, हिन्दी माँ समान है। छठी हुई मेरी जब, पंडित बुलाया तब, उन्होंने किया हिन्दी में, मंत्रों का बखान है। सुने गीत सुनी कथा, सुनी लोरी सुनी व्यथा, हिन्दी में ही सुने मैंने, पोथी व पुरान हैं। कोई भी खिलाए मुझे, गोद में झुलाए मुझे, मेरे कान कर रहे, हिन्दी का ही पान हैं। जब लगा बोलने मैं, मुंह लगा खोलने मैं, टूटी फूटी जो भी बोलूं, हिन्दी की ही तान है। गोदी में रहा मैं डोल, दादा बोल दादी बोल, हिन्दी भाषा ही तो, सुन रहे मेरे कान हैं। विद्यालय प्रवेश में, नवीन परिवेश में, गुरुजी ने दिया मुझे, हिन्दी का ही ज्ञान है। सूर या तुलसीदास, महाकवि कालिदास, हिन्दी के साहित्यकार, हिन्दी की सन्तान हैं। चंदबरदाई वीर, घनानंद या कबीर, कोई लिखे दोहे कहीं, नायिका सुजान है। भारतेंदु हरिश्चंद, मीराबाई प्रेमचंद, कोई भक्ति में तो कोई, लिखता गोदान है। यहाँ हरिऔध भी हैं, और नई पौध भी हैं, गद्य और पद्य का भी, एक जैसा ध्यान है। हरिवंश राय भी हैं, तो गुलाब राय भी हैं, नवरस मधुशाला, रस की ही खान है छंद अलंकार यहाँ, वीरता श्रृंगार यहाँ, जग में ...

तो फिर हम सब एक हैं

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  दिल में हिंदुस्तान अगर हो। सर्वधर्म सम्मान अगर हो। भारत का जयगान अगर हो। देशप्रेम अरमान अगर हो। तो फिर हम सब एक हैं। सबसे सद्व्यवहार अगर हो। प्यार, प्रेम दरकार अगर हो। झगड़ा ना बेकार अगर हो। सच के पैरोकार अगर हों। तो फिर हम सब एक हैं। हृदय तरलता लिए अगर हो। मनुज सरलता लिए अगर हो। न कोई गरलता लिए अगर हो। भलमानसता लिए अगर हो। तो फिर हम सब एक हैं। सहयोगी सा भाव अगर हो। आपस में सद्भाव अगर हो। राष्ट्रप्रेम का स्राव अगर हो। हिलमिलने का चाव अगर हो। तो फिर हम सब एक हैं। मीठे सबके बोल अगर हों। मानवता का मोल अगर हो। ठठ्ठा, हँसी, मखौल अगर हो। बातें करते तोल अगर हों। तो फिर हम सब एक हैं। अंगुली थामे हाथ अगर हो। सबको मिलता साथ अगर हो। सबकी मानुष जात अगर हो। सबसे सबकी बात अगर हो। तो फिर हम सब एक हैं। हंसते सभी गरीब अगर हों। कोई ना बदनसीब अगर हो। जोड़े जन को जीभ अगर हो। सबके सभी करीब अगर हों। तो फिर हम सब एक हैं। आरक्षण की आग जल रही। कैसे हम सब एक बताओ? जात पात की हवा चल रही। कैसे हम सब एक बताओ? यहां मजहबी जंग चल रही। कैसे हम सब एक बताओ? मानवता अब तंग चल रही। कैसे हम सब एक बताओ? निर...

होली आई रे

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होली आई रे, होली आई रे, रंगों के त्यौहार की सबको बधाई रे। होली आई रे। होली की रात पिछली, मिष्ठान की तैयारी। रंगीन कल के सपने, देखें सभी नर नारी। महिलाएं कुछ किचन में गुझिया बना रही हैं। होली की है तैयारी, गप्पे लड़ा रही है। कोई लोई बनाता है, लगा कोई बेलने। भरता है कोई, कोई तल रहा है तेल में। गुझिया भी बन गई है, सब लोग सो गए हैं। होली के रंग बिरंगे सपनों में खो गए हैं। चेहरे पे थकन उनके न देती दिखाई रे। होली आई रे। होली की भोर है, बच्चों का शोर है। उल्लास ही उल्लास दिखता चारों ओर है। पिचकारी कहीं है तो कहीं रंग भरे गुब्बारे। बच्चे है रंग बिरंगे, होली खेलते सारे। युवक भी कम नहीं हैं, टोली बनाए हैं। जा के अबीर सबको घर घर लगाए हैं। बूढों का पूछना क्या? सबकी खुशी में खुश हैं। है सबके दिल में खुशियां, महिला है या पुरुष है। घर में सभी के खुशियों की सौगात आई रे। होली आई रे। कीचड़ में कुछ हैं डूबे, कुछ डूबे रंग में हैं। सुध बुध भुला के दिख रहे, कुछ डूबे भंग में हैं। कुछ हैं बहुत नशे में, गाड़ी चला रहे हैं। ना जाने कितने घर के दिए बुझा रहे हैं। त्यौहार यह मिलन का, फिर क्यों बिछड़ रहे हैं? कुछ आड...

पर्यावरण संरक्षण

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  जीवन यदि बचाना है तो पर्यावरण बचाना होगा। खुद भी हमें समझना होगा, लोगों को समझाना होगा।। कुछ को मैं झकझोर जगा दूं, कुछ को तुम्हे जगाना होगा। प्रेरित हो, सब साथ चलें, कुछ ऐसा कर दिखलाना होगा।। जीवन यदि बचाना है तो पर्यावरण बचाना होगा। भूमि जकड़े पेड़ खड़ा था। कस कर मिट्टी को पकड़ा था।। पेड़ कट गया, मुट्ठी खुल गई। बारिश आई, मिट्टी घुल गई।। मृदा क्षरण गंभीर समस्या, फिर से पेड़ उगाना होगा। जल संकट के समाधान को हरित क्रांति लाना होगा।। जीवन यदि बचाना है तो पर्यावरण बचाना होगा। मानव तीव्र गति से भागे। कितना होगा उन्नत आगे।। आधुनिकता में खोया है। गहरी नींद खुले तो जागे।। कहीं ग्लेशियर पिघल न जाए, खुद पर रोक लगाना होगा। लेकर अपनी जिम्मेदारी, सबको आगे आना होगा।। जीवन यदि बचाना है तो पर्यावरण बचाना होगा। धुंआ ऊपर, धुंआ नीचे। धुंआ आगे, धुंआ पीछे।। धुंआ अंदर, धुंआ बाहर। वायुमंडल धूम्र समंदर।। टी बी, कैंसर से बचना है, वायु शुद्ध बनाना होगा। जब तक वायु शुद्ध न होगी, हमको अलख जगाना होगा।। जीवन यदि बचाना है तो पर्यावरण बचाना होगा। नष्ट न होती कभी प्लास्टिक। समझो, ये है बात मार...

हाय रे ये महंगाई

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  हाय रे ये महंगाई, चारों ही तरफ छितराई। थैला भर रुपिया ले गए, मुट्ठी भर सब्जी न आई।। पहली से देखत देखत, दस तारीख इंकम आई। दुई दिन में ही हो जावे, महीना की खत्म कमाई।। महंगाई का आलम ये है, रुपिया बन गया जमाई। महंगाई की मार पड़ी है, घर छोड़ के गई लुगाई।। महंगाई का रोना रोते, सारी दुनिया पगलाई। थक हार के करते हैं तब, सब काली भ्रष्ट कमाई।। रिश्ते नाते भी महंगे, जिस पर रुपिया वो भाई। महंगाई भरी दुनिया में, इंसान न दे दिखलाई।। महंगाई से बेबस होकर, कुछ ने है रिश्वत खाई। कुछ ने नैतिकता पर चल, निर्धनता गले लगाई।। सब बने मशीनी मानव, जिसकी ना कोई दवाई। पैसे के पीछे भागे, ना कोई करें भलाई।। सरकार से है ये विनती, महंगाई से करो लड़ाई। जनहित में करो कुछ ऐसा, महंगाई हो धराशाई।। क्या दौर पुराना था वो, बस दिल में थी सच्चाई। भगवान वो दिन लौटा दो, जब नहीं थी यूं महंगाई।।