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मात वीणा के स्वरों से (सरस्वती वंदना)

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  मात वीणा के स्वरों से कुछ स्वरों को खींचकर, राम की विनती यही है, कन्ठ में भर दीजिए। आपका यह हंस वाहन है धवल शुभता लिए, मेरे जीवन को भी मैया शुभ धवल कर दीजिए। आप से आरम्भ शुभ है आप बुद्धि प्रदायिनी। आप के सेवक है हम सब मात वीणावादिनी। उच्च कोटि की हो रचना, उच्च कोटि विचार हों।  कुविचारों को मिटाओ, श्वेत कमल निवासिनी। सत्य के प्रहरी बनें हम, सत्य की दें लौ जला, इतने सक्षम बन सके हम मात यह वर दीजिए। मात वीणा के स्वरों से................................ नेत्र से हो दया की वृष्टि मात हे ममतामयी। आपकी हो कृपा की दृष्टि कर्म शुभ कर दें कई। शब्द से लब्ध व प्रबुद्ध और शुद्ध बुद्धि दीजिए। कि करें हम लोकहित में नित्य प्रति रचना नई। धर्म के संग्राम में हम सत्य के साधक बने, कुविचारों को जो मारे माँ धनुष शर दीजिए। मात वीणा के स्वरों से................................ आपसे आशीष ले कर जग सुवासित हम करें। आपके वन्दन से स्वयं को धर्म पोषित हम करें। जो है भूले और भटके मार्ग हम दिखला सकें। आपका गुणगान गाकर परमानंदित हम करें। आपकी आराधना कर आपकी कर साधना। आपके चरणों में बैठूँ मात अवसर दीजिए। मात...

मैं कमाने मगर दूर जाता रहा।

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  ┈┉┅━❀꧁꧂❀━┅┉┈ मैं कमाने मगर दूर जाता रहा। ┈┉┅━❀꧁꧂❀━┅┉┈ घर मेरा मुझको हर दम बुलाता रहा। मैं कमाने मगर दूर जाता रहा। घर को उम्मीद की रौशनी तो मिले, इसलिए खुद को ही मैं जलाता रहा। जान ले ना ये दुनिया मेरे सारे ग़म। जो ज़रूरत ने मुझपे किए हैं सितम। अश्क आंखों में अपनी छिपाए हुए, मैं बिना बात ही मुस्कुराता रहा। वो दीवार और छत की मरम्मत कहीं। ऑपरेशन से माँ की हो आँखें सही। जिम्मेदारी बड़ी कंधे नादान हैं, मैं मगर फिर भी जिम्मा उठाता रहा। घर में बीमार माँ छोटे भाई बहन। उनकी शादी पढ़ाई व पोषण भरण। उनके खर्चे बराबर चलें इसलिए, टूटी चप्पल महीनों चलाता रहा। वक्त की आंधियों ने धकेला मुझे। कर दिया दूर घर से अकेला मुझे। दिल में अपने मुकद्दर पे रोया बहुत, सामने सबके पर खिलखिलाता रहा। ┈┉┅━❀꧁꧂❀━┅┉┈ स्वरचित मौलिक रचना रामचन्द्र श्रीवास्तव कवि, गीतकार एवं लेखक नवा रायपुर, छत्तीसगढ़ संपर्क सूत्र: 6263926054 ┈┉┅━❀꧁꧂❀━┅┉┈

माँ शारदे वन्दना

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  "राम पुकारे आपको, माँ सादर सम्मान। जोड़ खड़ा कर द्वार पर मांगे यह वरदान। भक्तों की जिह्वा करे, वन्दन और आह्वान। कृपा, दया हो आपकी, करें लक्ष्य संधान।" माँ शारदे, माँ शारदे स्वर लहरियों का वर दीजिए। माँ शारदे, माँ शारदे स्वर मेरे गीतों में भर दीजिए। मोती से जैसे बनती है माला  अक्षर से शब्द और कविता लिखूँ। चलता है जीवन ज्यों अनवरत, मैं सार्थक काव्य सरिता लिखूँ। माँ शारदे, माँ शारदे इतनी कृपा तो कर दीजिए। माँ शारदे, माँ शारदे स्वर मेरे गीतों में भर दीजिए। ज्यों दीप जलता अकेले भले, मैं भी तमस से यूं लड़ सकूं। जग को प्रकाशित करता रवि, स्वयं को प्रकाशित मै कर सकूं। माँ शारदे, माँ शारदे वाणी में शुभ शब्द धर दीजिए। माँ शारदे, माँ शारदे स्वर मेरे गीतों में भर दीजिए। ज्यों सीप भीतर मोती बने, मेरा हृदय संस्कारित रहे। जिह्वा पे गुणगान हो आपका और आप पर आधारित रहे। माँ शारदे, माँ शारदे चरणों में मुझको घर दीजिए। माँ शारदे, माँ शारदे स्वर मेरे गीतों में भर दीजिए। माँ शारदे, माँ शारदे स्वर लहरियों का वर दीजिए। माँ शारदे, माँ शारदे स्वर मेरे गीतों में भर दीजिए।

भ्रष्टाचार

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  ┈┉┅━❀꧁꧂❀━┅┉┈ भ्रष्टाचार ┈┉┅━❀꧁꧂❀━┅┉┈ भ्रष्टाचारियों की आज देश में भरमार है। पैसों और ताकत का भूत सिर पे सवार है। सुबह शाम पैसा खाएं लेते ना डकार हैं। भेड़ की चमड़ी ओढ़ ढूंढते शिकार हैं। पैसों और ताकत... दफ्तर है सरकारी, लुटती जनता बेचारी। घूस ले के काम करें, वरना करें मक्कारी। पेट है गुब्बारे सा, खा के घुस की कमाई, ऐसा लगे जैसे फट पड़ने को तैयार है। पैसों और ताकत... लॉलीपॉप, मीठी गोली दें चुनावी वादों में। जनता की शक्ल तक न रखते अपनी यादों में। वोट पूर्व रोडपती, जीत कर करोड़पति, ये सफेदपोश जानें कैसा चमत्कार है। पैसों और ताकत... खाकी वर्दी, काला कोट, जाने कब किसे दें चोट। भ्रष्टाचार के पुरोधा, नीयत में जिनकी खोट। पक्ष और विपक्ष में ये भेदभाव के बिना ही, दोनों को ही लूटने में दोनों ही शुमार है। पैसों और ताकत... जाली काम, फर्जीवाड़ा, करते देश का कबाड़ा। जनता जनार्दन का चूसते हैं खून गाढ़ा। इस तरह के कर्म कर के रोज बद्दुआएं लेना, "राम" कहे इस तरह से जीने पे धिक्कार है। पैसों और ताकत... ┈┉┅━❀꧁꧂❀━┅┉┈ स्वरचित मौलिक रचना रामचन्द्र श्रीवास्तव कवि, गीतकार ए...

नशा नाश की जड़ है

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  ┈┉┅━❀꧁꧂❀━┅┉┈ नशा नाश की जड़ है ┈┉┅━❀꧁꧂❀━┅┉┈ देसी पी के नाली में पड़े हैं बरखुरदार। इंग्लिश पी के इंग्लिश में बतियाते धुंआधार। गुटका खा के करते हैं दीवारों को बेकार। सिगरेट के धुंए के छल्ले छोड़ें लगातार। सड़कों पे गलियों में होती है छीछालेदार। चढ़ते ही नशा ये तो बन जाते नम्बरदार। सारे नशेड़ी मिल के लगाते हैं दरबार। गाली गप्पड़ है इनका पसंदीदा हथियार। नशे की खातिर करते ये घर में अत्याचार। माँ बहनों को पीटें जब हो पैसे की दरकार। रात को मोहल्ले में मचाएं हाहाकार। इनकी खबरों से सुबह पटे हैं अखबार। दारू पी के गाड़ी भी चलाएं फुल रफ्तार। रोको टोको इनको तो लड़ मरने को तैयार। गंदगी अभियान के महान पैरोकार। नशा नाश की जड़ है पर ये कहते अमृत धार। खैनी रगड़ें होठ में दबाएं ये सरकार। पहले मजा बाद में हैं कैंसर के बीमार। नशे के कारण हो जाते हैं ये कर्जेदार। और गिर जाता है इनका जो ऊंचा था किरदार। नशे की गिरफ्त में ही बदले है व्यवहार। करते चोरी लूटमार और बलात्कार। दूर हो जाते हैं इनसे सारे रिश्तेदार। और तन्हा रह जाता है इनका ही परिवार। नशा नाश की जड़ है लाओ खुद में ही सुधार। परिवार को दो तुम अपने ...

तुम्हारी ख्वाहिशें तो खूबसूरत सी परी है

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 ┈┉┅━❀꧁꧂❀━┅┉┈ तुम्हारी ख्वाहिशें तो खूबसूरत सी परी है ┈┉┅━❀꧁꧂❀━┅┉┈ तुम्हारी ख्वाहिशें तो खूबसूरत सी परी है। तुम्हारी मंजिलें ज़ंजीर में जकड़ी पड़ी है। कि जिस पर एक बड़ा आलस्य का ताला पड़ा है। तू कुछ करके बता मुर्दा है कि जिंदा खड़ा है। तेरी उम्मीद नन्ही सी परी आई है बन कर। तेरी किस्मत के पन्ने खोलना चाहे जो तन कर। वहाँ पर एक टालमटोल का ताला लगा है। तू कुछ कर के बता कि सो रहा है या जगा है। तेरे सपनों में आ के एक परी कुछ बोलती है। वो तेरी खुशियों के पन्ने ज़रा से खोलती है। पुराने दर्द की ज़ज़ीर और ताला वहाँ पर। तुम अपने आप से पूछो खड़े हो तुम कहाँ पर। तेरा सच तो तुझे आज़ाद करना चाहता है। मगर तू खुद के ही भीतर कहीं डूबा हुआ है। सुनहरे हर्फ से लिखी गुलामी की कहानी। बता क्या चाहता था ऐसी ही तू ज़िन्दगानी? तू सुन ले ध्यान दे चाबी तेरे ही पास तो है। वो ताला तेरे आगे कुछ नहीं तू खास तो है। कर्म कर दौड़ चल तुझको सफल होना पड़ेगा। यूं तालों बंद किताबों में बता कब तक रहेगा? ┈┉┅━❀꧁꧂❀━┅┉┈ स्वरचित मौलिक रचना रामचन्द्र श्रीवास्तव कवि, गीतकार एवं लेखक नवा रायपुर, छत्तीसगढ़ संपर्क सूत्र: 6263926054 ┈┉...

तू मेरा अक्स है मुझ पर गया है

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  ┈┉┅━❀꧁꧂❀━┅┉┈ तू मेरा अक्स है मुझ पर गया है ┈┉┅━❀꧁꧂❀━┅┉┈ तू मेरी ज़िन्दगी का आईना है। तू मेरा अक्स है मुझ पर गया है। मेरा दिल तो तुम्हारे बीच ही है, बदन मेरा मगर दफ्तर गया है। न मिलना चाहता था मैं दुबारा, मगर वो आज फिर मिल कर गया है। वफादारी की कसमें खा रहा था, वो मुझको लूट अपने घर गया है। है मुझसे खौफ में मेरा ही कातिल, मेरे किस्सों को सुन कर डर गया है। वो मेरे कत्ल का सामान ले कर, ज़रा ढूंढो कहां पर मर गया है। ┈┉┅━❀꧁꧂❀━┅┉┈ स्वरचित मौलिक रचना रामचन्द्र श्रीवास्तव कवि, गीतकार एवं लेखक नवा रायपुर, छत्तीसगढ़ संपर्क सूत्र: 6263926054 ┈┉┅━❀꧁꧂❀━┅┉┈

सफलता

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  ┈┉┅━❀꧁꧂❀━┅┉┈ सफलता ┈┉┅━❀꧁꧂❀━┅┉┈ सफलता को ज़रूरी है सफलता की प्रबल इच्छा। सफलता को ज़रूरी सुनियोजित और सही शिक्षा। सफलता को ज़रूरी है बदलना अपनी आदतें। सफलता को ज़रूरी है चुनें हम नेक रास्ते। सफलता को ज़रूरी है कि अपने लक्ष्य को जानो। कोई कहता हो कर सकते नहीं पर तुम नहीं मानो। सफलता के लिए विश्वास कर और छोड़ घबराना। सफलता को ज़रूरी है तेरा हद से गुजर जाना। सफलता की है जननी असफलता याद रखना। सफलता चाहिए तो असफलता को भी चखना। सफलता को ज़रूरी है इरादा भी सबल हो। जो करना है अभी करना न फिर यह आजकल हो। सफलता के लिए खुद का अटल रहना जरूरी है। सफलता के लिए घर से निकल रहना जरूरी है। सफलता चाहते हो तो निरन्तर कर्म करना है। हुनर को सीखना संघर्ष में तप कर निखरना है। सफलता प्राप्त होती है कभी छीनी नहीं जाती। सफलता चंचला रुकती नहीं रोकी नहीं जाती। सफलता टिक सके लंबे समय तक ये हुनर सीखो। सभी से प्रेम से बोलो मदद करना बशर सीखो। प्रयासों में कमी करना नहीं तू धैर्य धारण कर। सुबह उठ रोज अपने लक्ष्य का ऊंचा उच्चारण कर। सफलता के बहुत से मायने हैं व्यक्ति आधारित। वही सच्ची सफलता है हो जिससे सर्वजन का हित...

कल्पना के पंख

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 ┈┉┅━❀꧁꧂❀━┅┉ कल्पना के पंख ┈┉┅━❀꧁꧂❀━┅┉┈ तुमसे मिलकर, दिल मेरा, जाने कहाँ गुम हो गया, मानो कोई कल्पना के पंख लेकर उड़ चला। ज़िन्दगी बेरंग थी, तुम आ गए रंग आ गया, मानो अंधियारे को कोई चीरता रौशन दिया। चेहरे की मासूमियत, नटखट ये अंदाज ए बयां, मानो जैसे कि कन्हैया कर रहा अठखेलियां। ज़िन्दगी कागज़ है जिसपर तुमने दी निशानियां, मानो चित्रकार कोई करता चित्रकारियां। गौरवर्णी गाल पर एक श्यामवर्णी तिल धरा, मानो बर्फीली सतह पर अकड़ कर कोई खड़ा। गेसुओं के कोर पर पानी की बूंदों का धड़ा, मानो मंगलसूत्र कोई खास हीरों से जड़ा। देखते ही देखता मैं एकटक तुमको रहा, मानो एकदम से खज़ाना देख कोई हिल गया। नख हैं लंबे धारती हैं लंबी, कानी उंगलियां, मानो तीक्ष्ण हथियारों का ही ज़ख़ीरा मिल गया। हंसना, रोना, रूठना, और फिर झगड़ना, मानना, मानो कला का एक धनी किरदारों में डूबा पड़ा। तिरछी आंखों से कभी वो देखना मुझको तेरा, मानो तीरंदाज़ कोई हो निशाना ले रहा। जागती आंखों में भी केवल तुम्हारा अक्स सा, मानो कोई ख्वाब में ही हो हक़ीक़त जी रहा। प्रणय निवेदन मेरी जिद और दिल तुम्हारा पिघल रहा, मानो ...

ज़रूरत

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 ┈┉┅━❀꧁꧂❀━┅┉┈ ज़रूरत ┈┉┅━❀꧁꧂❀━┅┉┈ तुझे मेरी ज़रूरत है। मुझे तेरी ज़रूरत है। ज़रूरत से ये दुनिया है, बड़ी सबसे ज़रूरत है। ज़रूरत आदमी की है। ज़रूरत ज़िन्दगी की है। ज़रूरत दुःख के इस बाज़ार में, अदना हँसी की है। ज़रूरत खानदानी है। ज़रूरत की कहानी है। बुढ़ापे को ज़रूरत में ही, पूछे ये जवानी है। ज़रूरत से ही रिश्ते हैं। ज़रूरत पर जो हंसते हैं। ज़रूरत पर बिखरते हैं, ज़रूरत पर पनपते हैं। ज़रूरत पर भजन करते। ज़रूरत पर नमन करते। ज़रूरत पर ज़रूरतमंद, क्या क्या ही जतन करते। ज़रूरत मंज़िलों की है। ज़रूरत सब दिलों की है। है छोटी ज़िन्दगी लेकिन, ज़रूरत कई किलो की है। ज़रूरत हर किसी की है। ज़रूरत हर कहीं की है। ज़रूरत आसमां की तो, कभी होती ज़मीं की है। ज़रूरत जीत जाने की। ज़रूरत आजमाने की। ज़रूरत मुस्कुराने की, ज़रूरत घर ठिकाने की। ज़रूरत एक छत की है। ज़रूरत कुछ बचत की है। भरे पूरे घरों में अब, ज़रूरत एक मत की है। ज़रूरत श्वास की भी है। ज़रूरत आस की भी है। ज़रूरत लुप्त होते आजकल, विश्वास की भी है। ज़रूरत है सियासत की। ज़रूरत है बग़ावत की। ये दुनिया हो गई पापी, ज़रूरत है कयामत की। ज़रूरत गुफ्तगू की...

नमामी शिव, शिवः, शिवम

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 नमामी शिव, शिवः, शिवम नमामी शिव, शिवः, शिवम, नमामी चन्द्र शेखरं। हैं आदि अंत से परे, स्वयंभू शिव त्रिलोचनं। श्री गंगाधर, जगतपिता, त्रिशूल धारी शंकरं। वो देवों के भी देव हैं, नमामी दिग दिगम्बरं। हरेक कण में शिव ही हैं, हरेक क्षण में शिव ही हैं। हरेक तन में शिव ही हैं, हरेक मन में शिव ही हैं। वो व्याप्त सर्व ओर है, निशा है या कि भोर है। हृदय दया से पूर्ण है, पर आवरण कठोर है। गले में सर्प कुण्डली, जटा से गंग है चली। जो व्यक्ति धर्म युक्त है, करेंगे उसकी शिव भली। त्रिशूल डमरू धारते, वो दुष्टों को संहारते। हे भोले, शंभू, नील कंठ, देव पग पखारते। हृदय वृहद विशाल है, दयालु और कृपाल हैं। वो देवताओं के भी देव, काल के भी काल हैं। ये सृष्टि उनसे चल रही, गले गरल धरे वही। इधर, उधर, यहाँ, वहाँ, बसे वही हैं हर कहीं। जगत चलायमान है, ये भोले का विधान है। है शिव का हाथ जिसपे भी, वो बन गया महान है। नमः शिवाय बोलिए, प्रकाश मार्ग खोलिए। शरण में शिव की आइए, हृदय को शिव से जोड़िए। स्वरचित मौलिक रचना रामचन्द्र श्रीवास्तव कवि, गीतकार एवं लेखक नवा रायपुर, छत्तीसगढ़ संपर्क सूत्र: 6263926054

वतन के वीरों को नमन

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  ┈┉┅━❀꧁꧂❀━┅┉┈ वतन के वीरों को नमन ┈┉┅━❀꧁꧂❀━┅┉┈ वतन के वीरों को नमन, खड़े सीमा पे जो तन के। हमारी श्वास है उनसे, खड़े रक्षा कवच बन के। वतन के वीरों को नमन, जो प्राणों पर सदा खेलें। खड़े, करते निगेहबानी, धूप, वर्षा, शरद झेलें। वतन के वीरों को नमन, जो कुनबा देश को मानें। ज़रूरत देश की हो तो, लुटा दें, छीन लें जानें। वतन के वीरों को नमन, जो पहले देश को रखते। न दें एक इंच भी भूमि, पराजय शत्रुबल चखते। वतन के वीरों को नमन कि जिनके दिल में भारत है। वतन पे जीने मरने की ही केवल दिल में हसरत है। वतन के वीरों को नमन, जो सच्चे देशबन्धु हैं। वतन की रक्षा को तत्पर, वही तो भारतेन्दु हैं। वतन के वीरों को नमन, जो घर को छोड़ कर आते। जो अपनें पारिवारिक रिश्तों में बस देश को पाते। वतन के वीरों को नमन, धर्म ही देश जिनका है। शौर्य, बलिदान में डूबा हुआ परिवेश जिनका है। वतन के वीरों को नमन, भरोसे की निशानी है। मिसालें वीरता की देश ने दुनिया ने जानी है। वतन के वीरों को नमन, जिन्हें जां से वतन प्यारा। जिन्हें पूजे, जिन्हें चाहे, सलामी दे वतन सारा। वतन के वीरों को नमन, है जिनका एक ही अरमां...

क्या करूँ कि उलझने सुलझती ही नहीं?

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  ┈┉┅━❀꧁꧂❀━┅┉┈ क्या करूँ कि उलझने सुलझती ही नहीं? ┈┉┅━❀꧁꧂❀━┅┉┈ क्या करूँ कि उलझने सुलझती ही नहीं? राह कोई बीच की निकलती ही नहीं। तूने धैर्य को भी आजमाया क्या? तेरे अपनों को भी कुछ बताया क्या? चिन्ता छोड़ चिन्तन किया तूने, खुद को खुद ही रस्ता दिखाया क्या? क्या करूँ कि ज़िन्दगी सरकती ही नहीं? राह कोई बीच की निकलती ही नहीं। क्या करूँ कि उलझने..... क्या भरोसा तुझको ईश पर है? क्या कोई उम्मीद तेरे घर है? हाथ जोड़ कर के मांग माफ़ी, गर कोई गुनाह तेरे सर है। क्या करूँ कि बेड़ियां ये कटती ही नहीं? राह कोई बीच की निकलती ही नहीं। क्या करूँ कि उलझने..... क्या पता कि ये तेरी परीक्षा हो? जिन्दगी की मिलने वाली शिक्षा हो। कोशिशों का साथ पकड़े रहना तू, क्या पता भविष्य और अच्छा हो? क्या करूँ कि मुश्किलें सिमटती ही नहीं? राह कोई बीच की निकलती ही नहीं। क्या करूँ कि उलझने..... हाथ में तेरे है तो फिकर कर। वरना चिन्ता छोड़ सारी उस पर। वो पिता है तुझको उतना देगा, जितना बोझ रख सके तू सिर पर। क्या करूँ कि खुशियां दिल में बसती ही नहीं? राह कोई बीच की निकलती ही नहीं। क्या करूँ कि उलझने..... नाउम्मीदि...

जगत हो ज्योतिर्मयी

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  ┈┉┅━❀꧁꧂❀━┅┉┈ दिनांक: 01/07/2025 शीर्षक: जगत हो ज्योतिर्मयी ┈┉┅━❀꧁꧂❀━┅┉┈ हर कोई प्रसन्न हो। ना कोई विपन्न हो। मन में जो भी हो दिखे, कुछ ना अप्रछन्न हो। सर्वजन विकास हो। ईर्ष्या द्वेष ह्रास हो। जीव के समूल से, शूल का निकास हो। व्यक्ति धीरवान हो। जातिगत समान हो। हो दया हृदय लिए, संस्कारवान हो। प्रेम से ही बात हो। करते नमन हाथ हो। कोई भी कहीं भी कार्य, ना कभी बलात हो। ना कहीं भी लोभ हो। ना हृदय में क्षोभ हो। व्यक्ति जो विकारहीन, वो जगत का शोभ हो। क्रोध का दमन करे। ईश का मनन करे। ऐसे व्यक्ति को अवश्य, व्यक्ति हर नमन करे। त्याग ही स्वभाव हो। वेद का प्रभाव हो। व्यक्ति व्यक्ति से जुड़े, न कहीं दुराव हो। पाप कर्म क्षीण हो। त्याज्य जीर्ण शीर्ण हो। पुण्य का प्रताप हो, पुण्य ही प्रकीर्ण हो। व्यक्ति हो दृढ़ निश्चयी। नारी हो ममतामयी। दोनों के सहयोग से, जगत हो ज्योतिर्मयी। ┈┉┅━❀꧁꧂❀━┅┉┈ स्वरचित मौलिक रचना रामचन्द्र श्रीवास्तव कवि, गीतकार एवं लेखक नवा रा यपुर, छत्तीसगढ़ संपर्क सूत्र: 6263926054 ┈┉┅━❀꧁꧂❀━┅┉┈

भक्ति में लीन मन

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  ┈┉┅━❀꧁꧂❀━┅┉┈ विषय: "भक्ति में लीन मन" ┈┉┅━❀꧁꧂❀━┅┉┈ ईश के छुएं चरण, ईश के भजें भजन, ईश की कृपा से हो, भक्ति में लीन मन। ईश ही प्रकाश पुंज, नभ गिरी धरा कुंज, भक्ति मार्ग से हो शुद्ध, पापी मलीन मन। ब्रह्मदेव ढालते हैं, विष्णुदेव पालते हैं, शिव संहार कर्ता हैं, चंचल मीन मन। जाने महिमा नाम की, कहता बातें काम की, ईश को भजे सदैव, उच्च कुलीन मन। ईश की कृति पवित्र, उच्च है तेरा चरित्र, ईश से जुड़ा हुआ तू, ना कर हीन मन। ईश से न फेर आंख, अंतर्मन में तू झांक, ईश से विमुख हो तो, धर्म विहीन मन। लोभ मोह क्रोध छोड़, पाप से तू नाता तोड़, स्मरण में ईश के हो, सदा तल्लीन मन। ईश में ही हो प्रयास, रोम रोम श्वास श्वास, ईश में रहे सदा ही, तेरा विलीन मन। सुन तेरी ही तू सदा, ईश के भजन तू गा, ईश को ही सौंप दे तू, स्व के अधीन मन। कर्म सौंप ईश को तू, पूज जगदीश को तू, ईश का ही ध्यान कर, होगा नवीन मन। मन भरा विकार हो, संदुषित विचार हो, ईश को न मानता हो, वो भाग्यहीन मन। बाद काम दूजा कर, आगे ईश पूजा कर, रात्रिकाल सायंकाल, प्रातःकालीन मन। ┈┉┅━❀꧁꧂❀━┅┉┈ स्वरचित मौलिक रचना रामचन्द्र श्रीवास्तव कवि, गीतकार एवं ...

तुम्हारा प्यार

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 ┈┉┅━❀꧁꧂❀━┅┉┈ तुम्हारा प्यार ┈┉┅━❀꧁꧂❀━┅┉┈ तुम्हारा प्यार बारिश है, जिसकी हर एक बूंद, मेरे मन के, वन की, दावाग्नि को, बुझा देती है। तुम्हारा प्यार हवा का झोंका है, जिसकी गति, मेरे अवगुणों को, मुझसे, बहुत दूर, उड़ा देती है। तुम्हारा प्यार सागर है, जिसमें उठी भंवर, मेरे समूचे व्यक्तित्व को, खुद में, समा लेती है। तुम्हारा प्यार नदी की धारा है, जिसकी लहर, मुझे अपने आगोश में, समेट कर बहा लेती है। तुम्हारा प्यार मासूम हंसी ठिठोली है, जिसकी हरकत, तुम्हारे साथ, मुझे भी, शरारती बच्चा बना देती है। तुम्हारा प्यार लोरी है, जिसकी मनमोहक लय, मेरे भीतर के, बच्चे को, शांत कर, सुला देती है। तुम्हारा प्यार चलचित्र है, जिसकी दृश्यावली, मुझसे, मेरे व्यक्तित्व की, पहचान करा देती है। तुम्हारा प्यार मनोरम गीत है, जिसकी संगीत ध्वनि, मुझ भावहीन को, भावपाश में डाल, संग नचा देती है। तुम्हारा प्यार चांदनी है, जिसकी शीतलता, आंखों को, ठंडक दे, थपथपा कर, सुला देती है। तुम्हारा प्यार सूरज की पहली किरण है, हर सुबह, जो मेरे चेहरे पर पड़, सहला कर, मुझे उठा देती है। तुम्हारा प्यार गुरुत्वाकर्षण है, जिसकी चुंबकीय शक्ति...

राम में रम गए

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┈┉┅━❀꧁꧂❀━┅┉┈ दिनांक: 21/06/2025 ┈┉┅━❀꧁꧂❀━┅┉┈ राम में रम गए, रम हुए राममय। राम में ही रमे, सब जगत के विषय। ब्राह्मण का वेश धरे। मित्र का संताप हरे। बजरंगी मिलने आए राम लखन से। भान हुआ प्रभु का जब। भूल गए सुध बुध सब। चरण छुए, गले मिले, गदगद मन से। भक्त का ईश में हो रहा है विलय। राम में ही रमे, सब जगत के विषय। राम में रम गए, रम हुए राममय। राम में ही रमे, सब जगत के विषय। माँ जानकी ढूंढें। हर जीव से पूछें। अपनी व्यथा भक्त से कह रहे। दोनों ही सुनते हैं। दोनों हो कहते हैं। दोनों ही तो भाव में बह रहे। राम पालक हैं और शिव स्वयं हैं प्रलय। राम में ही रमे, सब जगत के विषय। राम में रम गए, रम हुए राममय। राम में ही रमे, सब जगत के विषय। ┈┉┅━❀꧁꧂❀━┅┉┈ स्वरचित मौलिक रचना रामचन्द्र श्रीवास्तव कवि, गीतकार एवं लेखक नवा रायपुर, छत्तीसगढ़ 6263926054 ┈┉┅━❀꧁꧂❀━┅┉┈

परिवार

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 ┈┉┅━❀꧁꧂❀━┅┉┈ परिवार ┈┉┅━❀꧁꧂❀━┅┉┈ खुली आंखों से दिखता है उसे संसार कहते हैं। बिना शर्तों के मिलता है उसी को प्यार कहते हैं। गिले शिकवे भुला कर भी खड़े जो साथ रहते हैं । सम्हाले और न गिरने दे उसे परिवार कहते हैं। कि पहला प्यार माता है जगत जिसने दिखाया है। किसी माँ ने न बच्चों को कभी भूखा सुलाया है। पड़ी जब धूप की बदली तो आंचल में छिपाया है। ज़रूरत में खड़ा आगे तो माता को ही पाया है। पिता का प्यार दुनिया में हमें चलना सिखाता है। अगर थोड़ा भटक जाएं सही रस्ता दिखाता है। पिता निष्ठुर है इस खातिर वो माँ से कम ही भाता है। अगर माँ जन्म देती है पिता जीवन चलाता है। बहन भाई किसी को भी तो अच्छे से समझते हैं। वो जितना प्यार करते हैं वो उतना ही झगड़ते हैं। वो पहले दोस्त जो अपने हमें जीवन में मिलते हैं। वो जितना हो सके हमको दुखों से दूर रखते हैं। कि पत्नी आती है परिवार की खुशियां बढ़ाती है। वो एक घर बार को तज कर हमें अपना बनाती है। सभी को खुश करे ऐसे जतन हर आजमाती है। वो घर की लक्ष्मी घर को करीने से सजाती है। कि छोटे बच्चों से घर अंगना गूंजे है किलकारी। बने हैं बाप हम पत्नी बनी बैठी है महतारी। लि...

पत्रकारों के लिए विशेष रचना

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  ┈┉┅━❀꧁꧂❀━┅┉┈ पत्रकारों के लिए विशेष रचना 06/06/2025 ┈┉┅━❀꧁꧂❀━┅┉┈ वो खतरों से हैं खेलते। न जाने क्या क्या झेलते। चतुर्थ खम्भ देश को, विकास पर धकेलते। न झूठ सच को बोलते। दबी वो बात खोलते। कि खास आम सबकी ही, वो नब्ज़ को टटोलते। समाज की बुराई पर वो कर रहे प्रहार हैं। वो मीडिया के योद्धा वीर धीर पत्रकार हैं। हुआ है क्या इधर उधर। वो ले के आते हैं खबर। वो दृश्य शांति का ही हो, या हो कोई प्रखर समर। लगाते बाज़ी जान की। है चाह सिर्फ मान की। बहस करें वो देशहित, जो बात आए शान की। समाज के हितों के कार्य करते बार बार हैं। वो मीडिया के योद्धा वीर धीर पत्रकार हैं। लगे कलम को थामने। वो सच को लाते सामने। वो उनको भी हैं जांचते, जिन्हें चुना अवाम ने। हैं धमकियों के शोर से। घिरे वो चारों ओर से। वो ना रुकें वो ना थकें, लगे हैं पूरे ज़ोर से। मरे तो यह शरीर है न मर सके विचार हैं। वो मीडिया के योद्धा वीर धीर पत्रकार हैं। कभी भी वो नहीं बिके। वो सच पे ही सदा टिके। वो अपनी कामयाबियों, को अपने हाथों से लिखे। वो नींद चैन त्याग कर। कुवृत्तियों से भागकर। वो सत्य का अलख जला, जगाता सबको जागकर। कि कोशिशों से उनकी...

तुम्हें बारिश में जब देखूं

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 ┈┉┅━❀꧁꧂❀━┅┉┈ तुम्हें बारिश में जब देखूं ┈┉┅━❀꧁꧂❀━┅┉┈ तुम्हें बारिश में जब देखूं तो दिल मेरा बहकता है। बहुत कुछ चाहता कहना मगर थोड़ा ठिठकता है। तेरा वो खेलना बारिश में और रह रह के मुस्काना। मेरा दिल देख के तुझको महकता और चहकता है। तुम्हें बारिश में जब देखूं नज़र जाती है मेरी थम। मेरी धड़कन है बढ़ जाती नहीं होती ज़रा भी कम। तुम्हारे बाल गीले हैं तुम इनको जब झटकती हो। लगे मुझको तो कुछ ऐसा मेरा निकलेगा दम हमदम। तुम्हें बारिश में जब देखूं तो खुद से दूर होता हूँ। तुम इतनी खूबसूरत हो कि मैं मग़रूर होता हूँ। मैं टिक सकता नहीं जाना न सूरत में न सीरत में। मगर तेरा है शुकराना तुझे मंज़ूर होता हूँ। तुम्हें बारिश में जब देखूं मैं काबू में नहीं रहता। मैं खुद को रोक लेता हूँ मगर तुमसे नहीं कहता। ये जैसे बूंद बारिश की बदन से बह के गिरती है। यूं ही चाहूं कि मैं पागल रहूँ तेरे संग ही बहता। तुम्हें बारिश में जब देखूं ये दिल मदहोश हो जाए। तेरी साड़ी के आंचल को ये दिल छूना ज़रा चाहे। तेरा दीदार करती है नज़र नजरें छुपा कर के। कहीं ऐसा न हो सारा मेरा गुम जोश हो जाए। तुम्हें बारिश में जब देखूं मेरे अरमां ...