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क्या आप लेखक हैं?

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मुझे बचपन से ही मंच पर बोलने का शौक था। कालोनी में और प्राथमिक विद्यालय में सांस्कृतिक कार्यक्रमों में उत्साहपूर्वक भाग लिया करता था और यही क्रम आगे के विद्यार्थी जीवन में भी चलता रहा हालांकि परिवार की ओर से इस विषय के प्रति उदासीनता ही रही। विद्यार्थी जीवन जहाँ एक स्वर्णिम युग की तरह था वहीं बड़े होने पर जिम्मेदारी के बोझ तले मुझे अपने शौक को कैद कर देना पड़ा। इसी तरह जिन्दगी चलती रही लेकिन मेरी कलम भी कभी बहुत कम तो कभी ज्यादा लेकिन निरन्तर चलती रही परन्तु कभी मंच नहीं मिल सका। 45 वर्ष की अवस्था में एक रोज मैं बस में एक काव्य रचना लिख रहा था कि तभी बगल में बैठे हुए अखिलेश तिवारी जी ने मुझसे सवाल किया, "क्या आप लेखक हैं"? और मैंने कहा "हाँ"। बस उसी क्षण से जिन्दगी ने एक नई करवट ली। आज मैं मंच पर काव्य पाठ करता हूँ। मेरी रचनाएँ समाचार पत्रों में भी छपती रहती है। मैं एक साहित्यकार के रूप में कई बार पुरस्कृत एवं सम्मानित हो चुका हूँ। सच है कि किस्मत से ज्यादा और समय से पहले किसी को कुछ नहीं मिलता।

हिन्दी संरक्षण क्यों आवश्यक है?

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  हिन्दी संरक्षण क्यों आवश्यक है? "हिन्दी संरक्षण क्यों आवश्यक है?" यह आज के दौर में समझने, जाँचने और विचार करने योग्य महत्वपूर्ण प्रश्न है। हिन्दी हमारी राष्ट्रभाषा, मातृभाषा होने के साथ साथ हमारी संस्कृति व परम्पराओं की परिचायक भी है। महात्मा गांधी जी के शब्दों में कहा जाए तो राष्ट्रभाषा के बिना राष्ट्र गूंगा है और इसमें कोई अतिशयोक्ति भी नहीं है। यदि बात हिन्दी के संरक्षण की आती है तो हमें लॉर्ड मैकाले के इस सिद्धांत को भी नहीं भूलना चाहिए कि किसी भी राष्ट्र को गुलाम बनाए रखने के लिए या कमज़ोर करने के लिए उस राष्ट्र की संस्कृति, ज्ञान एवं भाषा पर कुठाराघात किया जाना आवश्यक है और इसमें उनकी सफलता जग जाहिर है। आज के समय में अधिकाधिक संख्या में लोग हिन्दी की तुलना में अंग्रेजी भाषा को महत्व देते है। इसी तरह देखा जाए तो कुछ राज्यों में क्षेत्रीय भाषी लोग हिन्दी भाषी लोगों से मारपीट तक करते नजर आते है, जिसका ताज़ा उदाहरण महाराष्ट्र है। हमारा हिन्दी से दोयम दर्जे का व्यवहार करना, हमारी अपनी ही जड़ों से दूर होना है और एक छोटा बच्चा भी इतना जानता है कि जड़ों के बिना पेड़ का कोई अस...

नेताजी सुभाष चंद्र बोस: भारत के अद्वितीय स्वतंत्रता सेनानी (पुण्य तिथि पर विशेष)

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सुभाष चंद्र बोस, जिन्हें हम नेताजी के नाम से जानते हैं, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महानायक थे। उनका नाम लेते ही भारतीय जनमानस में देशभक्ति, साहस और बलिदान की भावना जागृत हो जाती है। उन्होंने अपने अद्वितीय नेतृत्व और अटूट संकल्प से भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को नई दिशा दी। सुभाष चंद्र बोस का जीवन और उनकी सोच हमें आज भी प्रेरित करती है कि हम अपने देश के लिए निस्वार्थ भाव से कार्य करें। वे एक ऐसे नेता थे जो स्वतंत्रता के लिए अपने प्राणों की आहुति देने से भी पीछे नहीं हटे। उनकी जयंती और पुण्यतिथि दोनों ही हमें उनके अदम्य साहस, दृढ़ संकल्प और मातृभूमि के प्रति अपार प्रेम का स्मरण कराती है।    प्रारंभिक जीवन और शिक्षा सुभाष चंद्र बोस का जन्म 23 जनवरी 1897 को ओडिशा के कटक में हुआ था। उनके पिता, जानकीनाथ बोस, एक प्रसिद्ध वकील थे और उनकी माता, प्रभावती, एक धार्मिक और शिक्षित महिला थीं। सुभाष चंद्र बोस की प्रारंभिक शिक्षा कटक के रेवेंशॉ कॉलेजिएट स्कूल में हुई, जहाँ उन्होंने अपनी मेधावी बुद्धि का प्रदर्शन किया। आगे की शिक्षा के लिए वे कोलकाता के प्रेसिडेंसी कॉलेज गए और फिर बाद में कैंब्...

मदन लाल ढींगरा: एक अद्वितीय क्रांतिकारी (पुण्य तिथि पर विशेष)

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मदन लाल ढींगरा भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के उन महान नायकों में से एक हैं, जिनके बलिदान ने देशवासियों के दिलों में आजादी की आग को प्रज्वलित किया। उनका जीवन संघर्ष, साहस और देशभक्ति की अद्वितीय मिसाल है। 17 अगस्त 1909 को उन्होंने अपने प्राणों की आहुति देकर यह साबित कर दिया कि स्वतंत्रता के लिए उनका समर्पण अडिग और अटल था। प्रारंभिक जीवन मदन लाल ढींगरा का जन्म 18 सितंबर 1883 को पंजाब के अमृतसर में एक संपन्न और प्रतिष्ठित परिवार में हुआ था। उनका परिवार अंग्रेजी शासन का समर्थन करता था, लेकिन मदन लाल का झुकाव बचपन से ही स्वतंत्रता की ओर था। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा अमृतसर में प्राप्त की, लेकिन अंग्रेजों के प्रति परिवार के झुकाव के कारण उन्हें उनके विचारों के लिए विरोध का सामना करना पड़ा। बाद में उच्च शिक्षा के लिए उन्हें इंग्लैंड भेजा गया, जहां उन्होंने यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन में अध्ययन किया। क्रांतिकारी बनने का सफर लंदन में रहने के दौरान मदन लाल ढींगरा का संपर्क भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के प्रमुख नेताओं से हुआ। विशेष रूप से, वीर सावरकर से मिलने के बाद उनके भीतर...

अटल बिहारी वाजपेयी: अद्वितीय नेता और प्रेरणास्रोत (पुण्य तिथि पर विशेष)

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अटल बिहारी वाजपेयी जी भारतीय राजनीति के एक ऐसे व्यक्तित्व थे, जिनकी सरलता, सादगी और गहन देशभक्ति ने उन्हें पूरे देश का प्रिय नेता बना दिया। वे केवल एक राजनेता नहीं थे, बल्कि एक विचारक, कवि, और दूरदर्शी व्यक्ति भी थे। उनके नेतृत्व में भारत ने अंतर्राष्ट्रीय मंच पर एक नया स्थान प्राप्त किया और देशवासियों को गर्व से सिर ऊंचा रखने की प्रेरणा दी। प्रारंभिक जीवन और शिक्षा अटल जी का जन्म 25 दिसंबर 1924 को मध्य प्रदेश के ग्वालियर में हुआ था। उनके पिता, कृष्ण बिहारी वाजपेयी, एक स्कूल शिक्षक और कवि थे, जिनसे अटल जी ने संस्कार और साहित्य प्रेम सीखा। उन्होंने राजनीति शास्त्र में स्नातकोत्तर की पढ़ाई कानपुर के डीएवी कॉलेज से की। पढ़ाई के साथ ही अटल जी आरएसएस से जुड़े और यहीं से उनकी राजनीति की यात्रा प्रारंभ हुई। राजनीतिक यात्रा अटल बिहारी वाजपेयी जी ने 1942 के 'भारत छोड़ो आंदोलन' में भाग लिया और जेल भी गए। उनकी राजनीतिक यात्रा 1951 में भारतीय जनसंघ के गठन के साथ शुरू हुई। अटल जी की वक्तृत्व कला और विचारशीलता ने उन्हें जल्द ही एक प्रमुख नेता बना दिया। 1977 में जनता प...

गुरु पूर्णिमा: श्रद्धा और सम्मान का पर्व

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गुरु पूर्णिमा: श्रद्धा और सम्मान का पर्व परिचय गुरु पूर्णिमा एक महत्वपूर्ण भारतीय त्योहार है जो गुरु और शिष्य के बीच के पवित्र संबंध का प्रतीक है। यह पर्व भारतीय संस्कृति में ज्ञान, शिक्षा और गुरु के महत्व को रेखांकित करता है। गुरु पूर्णिमा हिंदू, जैन और बौद्ध धर्मों में मनाई जाती है। यह आषाढ़ महीने की पूर्णिमा के दिन पड़ती है, जो आमतौर पर जून या जुलाई में आती है। गुरु पूर्णिमा का महत्व गुरु पूर्णिमा का मुख्य उद्देश्य गुरु के प्रति श्रद्धा और सम्मान व्यक्त करना है। "गुरु" का अर्थ है अज्ञानता के अंधकार को दूर करने वाला और "पूर्णिमा" का अर्थ है पूर्ण चंद्रमा की रात। इस दिन, शिष्य अपने गुरु को उनके मार्गदर्शन और शिक्षा के लिए धन्यवाद देते हैं और उनका आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। यह पर्व भारतीय शिक्षा प्रणाली में गुरु के सर्वोच्च स्थान को दर्शाता है। ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व गुरु पूर्णिमा का इतिहास और धार्मिक महत्व भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। इस दिन को विभिन्न धर्मों में अलग-अलग कारणों से मनाया जाता है: 1. हिंदू धर्म: गुरु पूर्णिमा महर्षि...