ये वृक्ष भी उम्रदराज हो गए

जीवन के उस पड़ाव के बारे में लिख रहा हूँ जब एक व्यक्ति अपनी ज़िम्मेदारियों को निभाता निभाता बूढ़ा हो चलता है। उस व्यक्ति को वृक्ष के माध्यम से चित्रित करने का प्रयास किया है। और चिड़ियों-पत्तियों को बच्चे व रिश्तेदारों की उपमा दी है। ये वृक्ष भी उम्रदराज हो गए छावं देने के बदले छावं को ही मोहताज हो गए चिड़ियों ने भी अब आना बंद कर दिया डाल पर चहचहाना बंद कर दिया अब टहनियां भी ज़मीन से नाता जोड़ने लगीं पत्तियां भी धीरे धीरे सांथ छोड़ने लगीं जिनके पत्तों के नीचे होती थी घनी छाँव वो ही आज छाँव को मोहताज होने लगी पर एक चीज है जड़ें आज भी मजबूत हैं आंधी तूफ़ान में अडिग अचल खड़ी हैं खासियत जड़ों की मिटटी को बांधे हुए है तूफ़ान में भी खुद को सम्हाले हुए है उम्मीद है की वो बसंत फिर से आएगा रौनक लौटेगा और वृक्ष फिर से खिलखिलाएगा. Upendra Agrawal "Aarya"