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नशा नाश की जड़ है

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  ┈┉┅━❀꧁꧂❀━┅┉┈ नशा नाश की जड़ है ┈┉┅━❀꧁꧂❀━┅┉┈ देसी पी के नाली में पड़े हैं बरखुरदार। इंग्लिश पी के इंग्लिश में बतियाते धुंआधार। गुटका खा के करते हैं दीवारों को बेकार। सिगरेट के धुंए के छल्ले छोड़ें लगातार। सड़कों पे गलियों में होती है छीछालेदार। चढ़ते ही नशा ये तो बन जाते नम्बरदार। सारे नशेड़ी मिल के लगाते हैं दरबार। गाली गप्पड़ है इनका पसंदीदा हथियार। नशे की खातिर करते ये घर में अत्याचार। माँ बहनों को पीटें जब हो पैसे की दरकार। रात को मोहल्ले में मचाएं हाहाकार। इनकी खबरों से सुबह पटे हैं अखबार। दारू पी के गाड़ी भी चलाएं फुल रफ्तार। रोको टोको इनको तो लड़ मरने को तैयार। गंदगी अभियान के महान पैरोकार। नशा नाश की जड़ है पर ये कहते अमृत धार। खैनी रगड़ें होठ में दबाएं ये सरकार। पहले मजा बाद में हैं कैंसर के बीमार। नशे के कारण हो जाते हैं ये कर्जेदार। और गिर जाता है इनका जो ऊंचा था किरदार। नशे की गिरफ्त में ही बदले है व्यवहार। करते चोरी लूटमार और बलात्कार। दूर हो जाते हैं इनसे सारे रिश्तेदार। और तन्हा रह जाता है इनका ही परिवार। नशा नाश की जड़ है लाओ खुद में ही सुधार। परिवार को दो तुम अपने ...

क्या आप लेखक हैं?

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मुझे बचपन से ही मंच पर बोलने का शौक था। कालोनी में और प्राथमिक विद्यालय में सांस्कृतिक कार्यक्रमों में उत्साहपूर्वक भाग लिया करता था और यही क्रम आगे के विद्यार्थी जीवन में भी चलता रहा हालांकि परिवार की ओर से इस विषय के प्रति उदासीनता ही रही। विद्यार्थी जीवन जहाँ एक स्वर्णिम युग की तरह था वहीं बड़े होने पर जिम्मेदारी के बोझ तले मुझे अपने शौक को कैद कर देना पड़ा। इसी तरह जिन्दगी चलती रही लेकिन मेरी कलम भी कभी बहुत कम तो कभी ज्यादा लेकिन निरन्तर चलती रही परन्तु कभी मंच नहीं मिल सका। 45 वर्ष की अवस्था में एक रोज मैं बस में एक काव्य रचना लिख रहा था कि तभी बगल में बैठे हुए अखिलेश तिवारी जी ने मुझसे सवाल किया, "क्या आप लेखक हैं"? और मैंने कहा "हाँ"। बस उसी क्षण से जिन्दगी ने एक नई करवट ली। आज मैं मंच पर काव्य पाठ करता हूँ। मेरी रचनाएँ समाचार पत्रों में भी छपती रहती है। मैं एक साहित्यकार के रूप में कई बार पुरस्कृत एवं सम्मानित हो चुका हूँ। सच है कि किस्मत से ज्यादा और समय से पहले किसी को कुछ नहीं मिलता।

हिन्दी संरक्षण क्यों आवश्यक है?

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  हिन्दी संरक्षण क्यों आवश्यक है? "हिन्दी संरक्षण क्यों आवश्यक है?" यह आज के दौर में समझने, जाँचने और विचार करने योग्य महत्वपूर्ण प्रश्न है। हिन्दी हमारी राष्ट्रभाषा, मातृभाषा होने के साथ साथ हमारी संस्कृति व परम्पराओं की परिचायक भी है। महात्मा गांधी जी के शब्दों में कहा जाए तो राष्ट्रभाषा के बिना राष्ट्र गूंगा है और इसमें कोई अतिशयोक्ति भी नहीं है। यदि बात हिन्दी के संरक्षण की आती है तो हमें लॉर्ड मैकाले के इस सिद्धांत को भी नहीं भूलना चाहिए कि किसी भी राष्ट्र को गुलाम बनाए रखने के लिए या कमज़ोर करने के लिए उस राष्ट्र की संस्कृति, ज्ञान एवं भाषा पर कुठाराघात किया जाना आवश्यक है और इसमें उनकी सफलता जग जाहिर है। आज के समय में अधिकाधिक संख्या में लोग हिन्दी की तुलना में अंग्रेजी भाषा को महत्व देते है। इसी तरह देखा जाए तो कुछ राज्यों में क्षेत्रीय भाषी लोग हिन्दी भाषी लोगों से मारपीट तक करते नजर आते है, जिसका ताज़ा उदाहरण महाराष्ट्र है। हमारा हिन्दी से दोयम दर्जे का व्यवहार करना, हमारी अपनी ही जड़ों से दूर होना है और एक छोटा बच्चा भी इतना जानता है कि जड़ों के बिना पेड़ का कोई अस...

लघुकथा (चोर)

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रविवार होने के कारण आज देर तक सोया रहा क्योंकि मेरे जैसे नौकरीपेशा व्यक्ति के लिए रविवार ही अंधे की लाठी होता है। छह दिन तो अंधेरे मुँह उठकर तैयार होकर सिर पर पाँव रखकर ऑफिस भागना पड़ता है जहाँ बॉस और सीनियर नाक में दम किए रहते हैं परन्तु एक दिन मैं घोड़े बेच कर सोता हूँ। यह रविवार भी चार दिन की चांदनी की तरह कब बीत जाता है पता ही नहीं चलता। यह रविवार भी कुछ ऐसा ही था। मैं अपने बिस्तर पर पड़ा चैन की बंशी बजा रहा था कि अचानक बाहर के शोर से मेरे रंग में भंग पड़ गया और मैने अक्ल के घोड़े दौड़ाने शुरू कर दिए। जब किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुँचा तो उधेड़बुन में मैं घर से बाहर आ गया। मैंने देखा कि सामने एक बारह तेरह वर्ष का लड़का है जिसके चेहरे पर हवाइयां उड़ रही है और कुछ लोगों की भीड़ उसकी गर्दन पर सवार थी फिर भी वह लड़का भीड़ के सामने घुटने नहीं टेक रहा था। मैंने जिज्ञासावश घटना के बारे में जानना चाहा तो भीड़ में से किसी व्यक्ति ने बताया कि यह लड़का चोर है और यह लाला जी की दुकान से पाँच सौ चालीस रुपए चुरा कर नौ दो ग्यारह होना चाहता था परन्तु हमने मिल कर इसे पकड़ लिया। उस व्यक्ति ने आगे कहा कि...

मैं हिन्दू हूं

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  मैं हिन्दू हूं। मैं ही भारत के जड़ चेतन का बिंदु हूं। मैं हिन्दू हूं। मैंने ही सबको शरण दिया, डूबों की नौका पार किया, मैं पर्वत, मैं गगन, मैं ही वृक्ष और सिंधू हूं, मैं हिन्दू हूं। मैं दयावान जग का कल्याण, मैं विश्वगुरू मैं सबका ध्यान। मैं कृष्ण राम का अंश हूं, मै ही भगवा, मैं ही मां धरती का रक्त हूं। जिसने संसार को धर्म दिया, मै उसी धर्म का अक्षर बिंदू हूं। मैं हिन्दू हूं। मैं क्षमावान, मैं दयावान, मैं ही असुरों से बलवान। मैने ही मुगलों, अंग्रेजो को शरण दिया, मैं प्रतिपालक हूं, मैंने ही सबका पोषण किया। किंतु आज शरणागत के लिए, मैं ही किन्तु परन्तु हूं। मैं हिन्दू हूं। मैं ही भारत के जड़ चेतन का बिंदु हूं। मैं हिन्दू हूं।

तुम्हारी ख्वाहिशें तो खूबसूरत सी परी है

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 ┈┉┅━❀꧁꧂❀━┅┉┈ तुम्हारी ख्वाहिशें तो खूबसूरत सी परी है ┈┉┅━❀꧁꧂❀━┅┉┈ तुम्हारी ख्वाहिशें तो खूबसूरत सी परी है। तुम्हारी मंजिलें ज़ंजीर में जकड़ी पड़ी है। कि जिस पर एक बड़ा आलस्य का ताला पड़ा है। तू कुछ करके बता मुर्दा है कि जिंदा खड़ा है। तेरी उम्मीद नन्ही सी परी आई है बन कर। तेरी किस्मत के पन्ने खोलना चाहे जो तन कर। वहाँ पर एक टालमटोल का ताला लगा है। तू कुछ कर के बता कि सो रहा है या जगा है। तेरे सपनों में आ के एक परी कुछ बोलती है। वो तेरी खुशियों के पन्ने ज़रा से खोलती है। पुराने दर्द की ज़ज़ीर और ताला वहाँ पर। तुम अपने आप से पूछो खड़े हो तुम कहाँ पर। तेरा सच तो तुझे आज़ाद करना चाहता है। मगर तू खुद के ही भीतर कहीं डूबा हुआ है। सुनहरे हर्फ से लिखी गुलामी की कहानी। बता क्या चाहता था ऐसी ही तू ज़िन्दगानी? तू सुन ले ध्यान दे चाबी तेरे ही पास तो है। वो ताला तेरे आगे कुछ नहीं तू खास तो है। कर्म कर दौड़ चल तुझको सफल होना पड़ेगा। यूं तालों बंद किताबों में बता कब तक रहेगा? ┈┉┅━❀꧁꧂❀━┅┉┈ स्वरचित मौलिक रचना रामचन्द्र श्रीवास्तव कवि, गीतकार एवं लेखक नवा रायपुर, छत्तीसगढ़ संपर्क सूत्र: 6263926054 ┈┉...

बेटियां

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 ************************ बेटियां ************************ आजकल कहते कन्या उपहार। लक्ष्मी का अवतार। कन्या के जन्म पर देते हैं बधाई। कहते हैं आपके घर नन्हीं परी आई। एक वो भी दिन था। मार देते थे भ्रूण के रूप में। जला देते थे दुल्हन के रूप में। एक आज का दिन है। बेटियों को पढ़ाया जा रहा है। कॉपी किताब दिलाया जा रहा है। पहले बंद रखते थे मकान में। आज उड़ती है खुले आसमान में। आजादी ऊंचा और ऊंचा उड़ने की। पढ़ लिख कर कुछ करने की। हिम्मत बुलंदियों को छू जाने की। अपने पंखों को ज्यादा से ज्यादा फैलाने की। आओ इस आजादी का स्वागत करें। बदलाव को स्वीकारने की हिम्मत करें। इस आजादी का गुणगान करें। आओ बेटियों का सम्मान करें। ************************ स्वरचित मौलिक रचना अर्चना श्रीवास्तव कवयित्री रायपुर, छत्तीसगढ़ ************************