आजादी गाथा...
गणतंत्र की ७५ वीं वर्षगांठ पर…
🇮🇳,🌹 🇮🇳
आजादी गाथा** के पछहत्तर खंभे!!
ऐ मेरे वतन के लोगों,
ना करो कोई नादानी।
मुश्किल से मिली आजादी,
फेरो ना उस पर पानी। (1)
तैतीस कोटि, क्षुब्ध हृदय ने,
जब अपने मन में, ठानी।
तब जाकर मिली, आजादी,
कितनी, देनी पड़ी कुर्बानी। (2)
व्यापार का झांसा देकर,
अंग्रेज इस चमन में आए।
हम भोले भाले लोगों को,
कैसे कैसे सपने दिखलाए। (3)
धीरे धीरे पांव फैलाया,
राजाओं को सब भरमाया।
किसी को दिखलाया लालच,
तो किसी को बल से धमकाया। (4)
धर्म ही है इनकी कमजोरी,
इस सत्य को उन्होंने भांपा।
राजाओं में फूट डाला जमकर,
एक एक करके सबको नापा। (5)
राजे महराजे को मित्र बनाकर,
जाम उनके साथ छलकाई।
जनता बेचारी कराह रही,
पर उन पर, दया कभी ना आई। (6)
कर के बोझ से इतना लादा,
जरूरी चीजों में कर चिपकाया।
खेती में कर, पानी गौ चारे में कर,
यहां तक नमक में भी कर लगवाया। (7)
हमारी भूमि में ही आकर, हमको ही,
दोय्यम दर्जे का, प्रजा बनाया।
श्रमिकों के नंगे , जिस्मों में,
जब चाहा, कोड़े बरसाया। (8)
क्रांतिकारियों ने, बीच-बीच में बहुधा,
था विद्रोह का बिगुल बजाया।
पर गोरों ने , दमनकारी नीति से,
हर विद्रोहों को बल से दबाया। (9)
फिरंगी इतना कैसे घुस पाए,
जब मूल कारणों पर गौर किया।
तब एक ही कारण ने प्रमुखता से,
इस कवि का ध्यान आकृष्ट किया। (10)
जैसे कुएं के मेढक होते हैं,
वैसे राजा सब मस्त पड़े थे।
अपना साम्राज्य के आगे सबको,
बौना कहने में अड़े थे। (11)
होगे नवाब तुम कोई तो,
हम भी तुमसे थोड़े कम हैं।
अंग्रेज भी हमारी आदर करते,
तो भला तुम्हें काहे गम है। (12)
सब बटे हुए थे अपने में,
ना आपस में था भाई चारा।
सब ओर से उचित अवसर पाकर,
अंग्रेजी कंपनी ने था पैर पसारा। (13)
सन सत्रा सौ संतावन में अंग्रेजों ने,
प्लासी में पहला युद्ध किया था।
बंगाल के नवाब सिराज उद्दौला को,
रण भूमि में हरा दिया था। (14)
तब अकेला लड़ा था वह राजा,
कोई भी ना साथ दिया था।
बढ़ा हौसला तब गोरों का,
बक्सर का जंग भी जीत लिया था। (15)
बंगाल बिहार उड़ीसा का तब,
दीवानी अधिकार किया हासिल।
अपना साम्राज्य बढ़ाने का फिर,
यहीं से साधा अपना मंजिल। (16)
पर इतनी आसान नहीं थी मंजिल,
मराठों से होना सामना था।
कई वर्षों तक वीर मराठों ने,
उनका दृढ़ता से मार्ग रोका था। (17)
मैसूर के नवाब ने सबसे पहले,
गोरों को घुटने टिकवाया था।
पर पोर्टो नोवो के घमासान में,
अंग्रेजों ने ता कत दिखलाया था। (18)
फिर टीपू सुल्तान ने सम्हाला जंग,
वह जंग निरंतर जारी रक्खा।
कर दिया नाक में दम गोरों के,
वापस अधिकार हासिल रक्खा। (19)
बीस वर्षों तक अंग्रेजी ताकत,
नया साम्राज्य न हासिल कर पाए।
पर तीसरे युद्ध में हराकर टीपू को,
मैसूर में कब्जा हासिल कर पाए। (20)
अठारह सौ छप्पन के आते तक,
पूरे भारत में अंग्रेजों का कब्जा था।
भारत वंशियों को पीड़ित करने का,
उन्होंने कोई मौका ना छोड़ा था। (21)
सन अठारह सौ सत्तावन में तब,
भारतीय सेना ने पहला विद्रोह किया।
मेरठ से भड़की थी जो ज्वाला,
जाकर दिल्ली में कब्जा कर डाला। (22)
मंगल पांडे की अगुआई में,
बैरकपुर में गदर फैल गया।
बंदूकों ने ऐसी उगली थी गोली,
था अंग्रेजी खेमा दहल गया। (23)
मंगल पांडे को तब हुई फांसी,
अंग्रेजों ने अपना पैंतरा बदला।
ईस्ट इंडिया कंपनी के बदले,
ब्रिटिश एक्ट लगा कानून बदला। (24)
विद्रोह ने क्रांति का रूप लिया,
पूरा उत्तर भारत आया घेरे में।
कंवर सिंह ने सम्हाला कमान,
बिहार में, तो भक्त खान ने दिल्ली में। (25)
कानपुर में नाना साहेब तात्या टोपे,
तो उधर झांसी में लक्ष्मी बाई अड़ी।
सिक्खों ने यूपी में किया सिंहनाद,
अंग्रेजों से छीना लखनऊ की गद्दी। (26)
लक्ष्मीबाई की कुर्बानी ने तो,
महासमर का दिया था संदेशा।
पर अन्य कई राजाओं ने भय से,
दिया ना साथ, जिसका न था अंदेशा। (27)
बहादुर शाह जफर की अगुवाई में,
वीर सपूतों ने गोरों से खूब लड़ा।
पर अग्रेजों के पास बड़ा बल था,
साल के अंदर किया साम्राज्य खड़ा। (28)
भले ही फिरंगियों ने असीमित बल से,
उठते आंदोलन को कुचल दिया।
पर स्वराज की चिंगारी अब तक,
हर दिल में अंदर ही अंदर बैठ गया। (29)
राजाओं का मोह त्याग अब तो,
देश का बुद्धिजीवी वर्ग आगे आया।
क्या वकील क्या इंजीनियर डॉक्टर,
संगठन में रुचि सबने दिखलाया। (30)
सन अठारह सौ पच्यासी में तब,
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का गठन हुआ।
डब्लू सी बनर्जी की अध्यक्षता में,
संघर्ष स्वतंत्रता का आगाज हुआ। (31)
फिर ना पूछो बड़े बड़े नेताओं का,
जमघट दिन ब दिन लगा जुड़ने।
दादा भाई नैरोजी सुरेंद्र नाथ बनर्जी,
एफ शाह मेहता,गोपाल कृष्ण गोखले। (32)
सभी विद्वजनों ने एक स्वर में,
आवाज उठाया जोरो से मिलकर।
अंग्रेजों की भारत पर शासन करने की,
वैधानिकता को ललकारा खुलकर। (33)
सन उन्नीस सौ छै में पहली बार,
कांग्रेस ने स्वराज का आह्वान किया।
वैधानिकता के भीतर रहते हुए,
अपनी सरकार बनाने का मांग किया। (34)
अंग्रेजों को यह मांग पचती कैसे,
लोकमान्य तिलक को गिरफ्तार किया।
दमनकारी नीति अपनाते हुए गोरों ने,
तिलक को देश के बाहर बर्मा भेज दिया। (35)
अंग्रेजी ने अपनी दमनकारी नीति,
न किया कमी नित्य नया जारी रक्खा।
तरह तरह के भेद डाल कर,
नेताओं को अलग अलग रक्खा। (36)
उन्नीस सौ पंद्रह में फिर आए गांधी जी,
संघर्ष को नया आयाम मिला।
सब वर्ग एक मंच पर आए,
अहिंसा के तप का मंत्र दिया। (37)
इसी बीच संघर्ष पटल पर,
नेहरू सुभाष भी कूद पड़े।
अपना ऐशो आराम छोड़,
अंग्रेजों से लड़ने जूझ पड़े। (38)
उन्नीस सौ बीस में गांधी जी ने,
असहयोग आंदोलन का सूत्रपात किया।
अंग्रेजी हुकूमत की नीव हिली,
पर अत्याचार में न कोई ढील दिया। (39)
उल्टे नमक पर भी कर लगाया,
नेताओं को जेलों में घुसाया।
तब उन्नीस सौ तीस में गांधी ने,
ऐतिहासिक दांडी मार्च किया। (40)
अपने हाथों से खुद नमक बनाकर,
सविनय अवज्ञा आंदोलन फूंक दिया।
गिरफ्तार हुए नेताओं संग गांधी जी,
पर आंदोलन गांव गांव तक पहुंच गया। (41)
हिंदू मुस्लिम सिक्ख ईसाई,
क्या दलित क्या ग्रामीण माई।
निकलकर अपने घरों से सबने,
आजादी की जब गुहार लगाई। (42)
कितने कोड़े कितने डंडे,
और कितनी लाठियां थी खाई।
छोड़ विदेशी वस्तुओं को,
सिर्फ स्वदेशी ही अपनाई। (43)
छोड़ सरकारी नौकरियों को,
सबने आजादी की रट लगाई।
खतम हो गए अनाज पानी,
फांके मस्ती की नौबत भी आई। (44)
फिर भी पीछे हटा न कोई,
साहस न जाने कहां से आई।
बच्चे बूढ़े नर और सब नारी,
सबने अपनी शक्ति दिखलाई। (45)
जितना दमन अंग्रेजों का,
दिन ब दिन था बढ़ता जाता।
संघर्ष की उतनी ही शक्ति,
जन मानस के मन में आता। (46)
होगे तुम चक्रवर्ती राजा,
चाहे विश्व में डंका बजता हो।
तेरी शक्ति के आगे भले ही,
विश्व का झंडा झुकता हो। (47)
पर भारत का ध्वज ये प्यारा,
अब कभी ना झुकने वाला।
अब तो लाल किले में हम,
फहरा के रहेंगे तिरंगा प्यारा। (48)
फिरंगियों तुम्हारे पापों के,
घड़े का अब भर गया है पानी।
अत्याचार तुम्हारी अब ना सहेंगे,
ना चलने देंगे तेरी मनमानी। (49)
क्या क्या जुल्म किए हैं तुमने,
कभी उनको मैं ना गिन पाऊं।
उन्हें भूलना बड़ा कठिन है,
सोचकर ही तड़प सा जाऊं। (50)
कितनी बहुएं हुईं थी विधवा,
कितनी माताओं ने बेटा खोया।
कितने बच्चे अनाथ हुए थे,
कितनों ने अपना सब कुछ खोया। (51)
कितनों ने भूख से प्राण त्यागा,
कितनों ने अनगिनत खाए कोड़े।
जेल में कितने घुटते रहे आजीवन,
यातना से कितनों ने दम थे तोड़े। (52)
जागी भारत की तब तरुनाई थी,
हर तरफ से छिड़ी लड़ाई थी।
भगतसिंह राजगुरु सुखदेव ने तब,
असेंबली में घुसकर बम बरसाई थी। (53)
बदले में अंग्रेजों ने दिया उनको फांसी,
वे हंसते हंसते फंदों पर झूल गए।
वंदे मातरम स्वर से भारत गूंजा,
लोग गुलामी का बंधन भूल गए। (54)
लूटे खजाने अंग्रेजों के तब,
उनको छकाया पल-पल छिन-छिन।
आजाद थे! आजाद हैं! आजाद रहेंगे!
बोले पंडित चंद्रशेखर और बिस्मिल। (55)
सबके मन में बड़ा उबाल आया,
मानो भारत में कोई भूचाल आया।
उन्नीस सौ पैंतीस में एक कानून आया,
तब क्षेत्रीय स्वराज का हक पाया। (56)
राज्यों में प्रजातांत्रिक चुनाव हुआ,
सभी राज्यों में कांग्रेस का विजय हुआ।
राज्यों में अपनी सरकार बनी,
पर सरकार ज्यादा दिन नहीं चली। (57)
उन्नीस सौ उनतालिस का वो दिन आया,
द्वितीय विश्व युद्ध का बादल छाया।
सब मंत्रियों ने अपना पद छोड़ दिया,
अंग्रेजों ने अपना मुंह मोड़ लिया। (58)
सन इकतालीस में नेता जी सुभाष को,
अंग्रेजों ने गिरफ्तारी का फरमान दिया।
वे सुरक्षित भारत से जर्मनी पहुंचे,
आजाद हिंद फौज का गठन किया। (59)
तब उन्नीस सौ बयालीस में गांधी जी ने,
भारत छोड़ो का अंतिम दिया नारा।
करो या मरो ऐसा कहकर,
खुले युद्ध का भरा हुंकारा। (60)
गांधी जी के एक आहवान से तब,
पूरा देश था सड़कों पर आया।
मुश्किल हुआ जीना अंग्रेजों का,
अब उनका भी मन भरमाया। (61)
द्वितीय विश्व युद्ध के समाप्त होते ही,
लेबर पार्टी का इंग्लैंड में शासन आया।
उनका रवैया थोड़ा सद्भावुक था,
अतः प्रतिनिधि उनका भारत आया। (62)
प्रथम बार अंग्रेजो की पहल में,
भारत में स्वराज का प्रस्ताव आया।
नेहरू जी की अगुआई में तब,
अंतरिम सरकार था बन पाया। (63)
पर मुस्लिम लीग के नेताओं ने,
उस व्यवस्था में अपना स्वार्थ साधा।
अंतरिम सरकार का किया विरोध,
बटवारे में पाकिस्तान मांगा। (64)
ये तो पहले से जग जाहिर है,
गोरे खेल खेलने में माहिर है।
जाते जाते भी ना छोड़ा,
बटवारे का दे गए पीड़ा। (65)
पर अंततः वह शुभ दिन आया,
शहीदों की बलिदानी रंग लाया।
गर्व से पूर्ण स्वराज पाकर,
लाल किले पर तिरंगा लहराया। (66)
*****
पंद्रह अगस्त का वह स्वर्णिम दिन,
आजाद भारत ने ली अंगड़ाई थी।
बूढ़े भारत के रग- रग में,
फिर से छाई तरुणाई थी। (67)
पर अग्रेजों ने जाने से पहले,
दो सौ वर्षों तक देश को चूसा था।
लूटकर ले गए पाई- पाई,
राजकोष में केवल भूसा था। (68)
बड़ी कठिन परीक्षा थी वह,
देश कैसे आगे बढ़ पाएगा।
भूख प्यास गरीबी का साया,
कब तक सर पे मंडराएगा। (69)
तब देश भक्ति की ताकत ने ही,
सबको था दिया बड़ा संबल।
जुट गए सभी प्राण-प्रण से,
कर्मयोग की धारा, बही अविरल। (70)
देश की जनता, और नेताओं ने,
उद्यमता के जो मानदंड गढ़े।
विज्ञान कृषि उद्योग जगत में,
नए नए आयाम चढ़े। (71)
आज पूरी दुनिया हतप्रभ है,
तिरंगा विश्व पटल पर है।
गणतंत्र का हीरक वर्ष है ये,
प्रजातंत्र अपनी शिखर पर है। (72)
जो मिला उसे अखंड रखना,
अब हम सब की जिम्मेदारी है।
राष्ट्र का मान ही सबसे ऊपर,
राष्ट्र से ही शान हमारी है। (73)
भूल शहीदों की कुर्बानी,
पुरानी गलतियां फिर जो दुहराओगे।
आपस में बटोगे-छटोगे तो कैसे,
आजादी को अक्षुण्ण रख पाओगे। (74)
उत्कट प्रेम हो, मातृभूमि पर,
सदा रहो तत्पर, मर मिटने को।
प्रजातंत्र का, भव्य-तिरंगा शान से,
क्षितिज में उन्मुक्त, फहरने दो। (75)
जय हिंद!
विरेन्द्र शर्मा " अवधूत" !!
२५.१.२५
आजादी गाथा…
गणतंत्र की पूर्व संध्या पर पूर्ण हुआ
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