मैं कमाने मगर दूर जाता रहा।
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मैं कमाने मगर दूर जाता रहा।
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घर मेरा मुझको हर दम बुलाता रहा।
मैं कमाने मगर दूर जाता रहा।
घर को उम्मीद की रौशनी तो मिले,
इसलिए खुद को ही मैं जलाता रहा।
जान ले ना ये दुनिया मेरे सारे ग़म।
जो ज़रूरत ने मुझपे किए हैं सितम।
अश्क आंखों में अपनी छिपाए हुए,
मैं बिना बात ही मुस्कुराता रहा।
वो दीवार और छत की मरम्मत कहीं।
ऑपरेशन से माँ की हो आँखें सही।
जिम्मेदारी बड़ी कंधे नादान हैं,
मैं मगर फिर भी जिम्मा उठाता रहा।
घर में बीमार माँ छोटे भाई बहन।
उनकी शादी पढ़ाई व पोषण भरण।
उनके खर्चे बराबर चलें इसलिए,
टूटी चप्पल महीनों चलाता रहा।
वक्त की आंधियों ने धकेला मुझे।
कर दिया दूर घर से अकेला मुझे।
दिल में अपने मुकद्दर पे रोया बहुत,
सामने सबके पर खिलखिलाता रहा।
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स्वरचित मौलिक रचना
रामचन्द्र श्रीवास्तव
कवि, गीतकार एवं लेखक
नवा रायपुर, छत्तीसगढ़
संपर्क सूत्र: 6263926054
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