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संतोष

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  मिट्टी के बरतन से खेलकर, मैं बड़ा खिलखिलाती थी। अपने प्यारे बचपन में, मैं बड़ा चहचहाती थी।। ना जाने मुझको क्या हो गया, मेरे पास अपने बहुत सारे, आकर्षित व ठोस बर्तन है, तब भी मन उदास व दिल में है संकोच। बहुत कुछ अपना है और चाहिए, ये सोचकर उदास मन और खत्म हुआ संतोष।। सहनशक्ति, मौन और भविष्य की चिंता ने, मेरे मन में बढ़ाया संकोच। इन बातो के बीच में मरता रह गया, मेरे मन का संतोष।। खेलना, खिलखिलाकर जोर से हँसना और अपनों के संग खुश रहना, अदांज बन जाए। आ जाओ सब मिलकर, एक दूसरे का, बचपन लौटाएं।।

उम्मीद की चिंगारी

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  स्त्री के चेहरे को मुरझा देती है, अपने पति की दी हुई, उम्मीद की चिंगारी। ऐसा मन बन जाता है, जैसे दीया की चिंगारी। कितनी बार क्रोध करे और रोए स्त्री यही तो होता है हर बारी।। स्त्री के चेहरे को मुरझा देती है, उम्मीद की चिंगारी। स्त्री बार बार बार संभलती और मुस्कुराते हुए सोचती है, कभी ना कभी आयेगी हमारी बारी। स्त्री के चेहरे को मुरझा देती है, उम्मीद की चिंगारी।। स्त्री शांत हो जाती है, फिर अपने आत्मसम्मान को, वापिस पाने की, करती है तैयारी। तब पुरुष, उपहास करते हुए कहते है, शायद अब तुम्हे, जरूरत नहीं है हमारी।। ऐसा पुरुष को, इसलिये लगता है, क्योंकि अब स्त्री के चेहरे को, नहीं मुरझा पाती, उम्मीद की चिंगारी। कलम की लिखावट, तकदीर की बनावट, चेहरे की घबराहट को समेटती स्त्री, करती है अपने निर्माण की तैयारी। अब कहाँ मुरझा पाती है, "मुस्कान" को, उम्मीद की चिंगारी।।

फीका सिंदूर

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  तन मिलता पर मन मिलता नहीं, हँस कर निभाती है स्त्री दुनिया का दस्तूर। कुछ स्त्रियों के भाग्य में होता है फीका सिंदूर।। माँग सजाने के कुछ पल बाद से ही, उड़ जाता है स्त्री के चेहरे का नूर। कुछ स्त्रियों के भाग्य में होता है फीका सिंदूर।। स्त्री जीवन बिताती है परिवार में कुछ, सामाजिक व पारिवारिक कारणों से होकर मजबूर। कुछ स्त्रियों के भाग्य में होता है फीका सिंदूर।। संस्कार, मर्यादा, परिवार की भावनाओं के कारण, स्त्री होकर भी बेकसूर, चुपचाप हँस कर लगाती है अपने माँग में फीका सिंदूर। कुछ स्त्रियों के भाग्य में होता है फीका सिंदूर।।

चमचा

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ख्वाहिशों के ये बाजार में बस बेचते रहते झूठी उम्मीदें नाम इनका है मशहूर "चमचा" शान में पढ़ते रहते कसीदे काम से इनको मतलब नहीं है सब किया मैंने, कहना यही है फिक्र इनको नही रहती कोई होठों पर फिक्र का जिक्र ही है करना हो उनको साबित जो खुद को फाड़ दें कितनी झूठी रसीदें नाम इनका है मशहूर "चमचा" शान में पढ़ते रहते कसीदे राजनीति यही खेलते हैं साथ वाले इन्हें झेलते हैं इनको इज्जत की परवाह न कोई सीनियर डांटते, पेलते हैं इनको भर-भर के मिलती है गाली रोज होते हैं उनके फजीते नाम इनका है मशहूर "चमचा" शान में पढ़ते रहते कसीदे ख्वाहिशों के ये बाजार में बस बेचते रहते झूठी उम्मीदें नाम इनका है मशहूर "चमचा" शान में पढ़ते रहते कसीदे