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आजादी गाथा...

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  गणतंत्र की  ७५ वीं वर्षगांठ पर… 🇮🇳,🌹 🇮🇳 आजादी गाथा** के पछहत्तर  खंभे!! ऐ      मेरे      वतन      के     लोगों, ना      करो       कोई         नादानी। मुश्किल     से      मिली    आजादी,  फेरो     ना     उस      पर      पानी।   (1) तैतीस     कोटि,   क्षुब्ध   हृदय   ने, जब      अपने     मन     में,  ठानी। तब      जाकर     मिली,   आजादी,  कितनी,    देनी      पड़ी     कुर्बानी।   (2) व्यापार       का       झांसा     देकर, अंग्रेज     इस     चमन    में  ...

मरना पड़ता है

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  ये जिन्दगी है जनाब यहाँ सबके लिये जीना पड़ता है, सब में से ही किसी एक के लिए रोज थोड़ा थोड़ा मरना पड़ता है। हम अपनों के लिए खुद को रोज थोड़ा कुर्बान करते हैं, दुर्भाग्य हमारा कि वही अपने हमें बदनाम करते हैं। जिन्दगी है जनाब अन्तर्मन से मर कर तन से जीना पड़ता है, मतलब के संसार में कोई किसी का ना अपना है। जिन्दगी है जनाब स्वार्थी संसार में जतन से जीना पड़ता है, साँसें लेना और साँसों का खत्म हो जाना के बीच में साँसों का कम हो जाना भी सहना पड़ता है। जिन्दगी है जनाब रोज थोड़ा थोड़ा मरना पड़ता है।

हाल-ए-दिल

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  हाले दिल बयां करना,         कही इल्जाम न हो जाए। मेरा जज्बे बयां सुनके,         कोई कोहराम न हो जाए। सोचना भी अब तो जुर्म,           बोलने की तो क्या कहें। खुल गए अगर जो लब्ज़,        न कत्ल ए आम हो जाए। बनावट की ये दुनिया है,       बनावट आता नहीं हमको। जो सच है बोल जाते हैं,        मगर भाता न दुनिया को। चलो कुछ ऐसा करते हैं,          अभी कुछ झूठ ही बोलें। गिले शिकवे के चलते देखो,          सुबह से शाम ना हो जाए।