"राम" अब तक पढ़ न पाया कायदा-ए-जिंदगी

“राम” अब तक पढ़ न पाया क़ायदा-ए-ज़िन्दगी

परिस्थिति अनुकूल तो, होती कभी प्रतिकूल है,
मन में कभी उल्लास तो, चुभता कभी एक शूल है |

निःशब्द सा एकाकीपन कभी हृदय को झकझोर दे,
कभी सुखद अनुभव से हृदय मायूसियों को तोड़ दे |

कभी अनमनी, अनजान सी राहों पर चलती ज़िन्दगी,
कभी बन के सपने सुरमई आँखों में पलती ज़िन्दगी |

कभी ज़िन्दगी लगती है जैसे हो मुलायम, नर्म सी,
कभी तोड़ देती है हदें यह ज़िन्दगी बेशर्म सी |

कातिलाना मुस्कुराहट से ये हँसती है कभी,
बन के खुशियों का समंदर दिल में बसती है कभी |

है कोई जो जानता है ज़िन्दगी का फ़लसफ़ा,
क्यों कभी दिल खुशनुमा है, क्यों कभी है ग़मज़दा |

सोच कर हैरान हूँ कि चीज़ क्या है ज़िन्दगी,
“राम” अब तक पढ़ न पाया क़ायदा-ए-ज़िन्दगी |

                                                             धन्यवाद

                                                         (रचनाकार)
                                                   रामचन्द्र श्रीवास्तव
                                                    6263926054

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