रिश्ते


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रिश्ते

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कुछ दर्द मिला, कुछ ज़ख्म मिले,

कुछ अपनों के ही ताने।

कुछ लोगों ने की साजिश तो,

कुछ हमको लगे गिराने।


कुछ लोगों ने हमसे दूरी,

करने के किए बहाने।

कुछ ने हमको बदनाम किया,

कुछ लगे हमें ठुकराने।


हमने जब उनसे पूछा तो,

वो उल्टा लगे दबाने।

क्यों सुनते नहीं हमारी वो,

बस लगे हैं अपनी गाने।


बतलाओ मैं ही पागल हूँ,

या लोग हुए दीवाने।

क्या हमसे उन्हें शिकायत है,

क्या क्या शिकवे हैं जाने?


हम फिर भी कतरन सिल सिल कर,

रिश्तों को लगे बचाने।

रिश्तों की कलियां चुन चुन कर,

हम उनको लगे निभाने।


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स्वरचित मौलिक रचना

अर्चना श्रीवास्तव

कवयित्री

नवा रायपुर, छत्तीसगढ़

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