ज़रूरत


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ज़रूरत

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तुझे मेरी ज़रूरत है।

मुझे तेरी ज़रूरत है।

ज़रूरत से ये दुनिया है,

बड़ी सबसे ज़रूरत है।


ज़रूरत आदमी की है।

ज़रूरत ज़िन्दगी की है।

ज़रूरत दुःख के इस बाज़ार में,

अदना हँसी की है।


ज़रूरत खानदानी है।

ज़रूरत की कहानी है।

बुढ़ापे को ज़रूरत में ही,

पूछे ये जवानी है।


ज़रूरत से ही रिश्ते हैं।

ज़रूरत पर जो हंसते हैं।

ज़रूरत पर बिखरते हैं,

ज़रूरत पर पनपते हैं।


ज़रूरत पर भजन करते।

ज़रूरत पर नमन करते।

ज़रूरत पर ज़रूरतमंद,

क्या क्या ही जतन करते।


ज़रूरत मंज़िलों की है।

ज़रूरत सब दिलों की है।

है छोटी ज़िन्दगी लेकिन,

ज़रूरत कई किलो की है।


ज़रूरत हर किसी की है।

ज़रूरत हर कहीं की है।

ज़रूरत आसमां की तो,

कभी होती ज़मीं की है।


ज़रूरत जीत जाने की।

ज़रूरत आजमाने की।

ज़रूरत मुस्कुराने की,

ज़रूरत घर ठिकाने की।


ज़रूरत एक छत की है।

ज़रूरत कुछ बचत की है।

भरे पूरे घरों में अब,

ज़रूरत एक मत की है।


ज़रूरत श्वास की भी है।

ज़रूरत आस की भी है।

ज़रूरत लुप्त होते आजकल,

विश्वास की भी है।


ज़रूरत है सियासत की।

ज़रूरत है बग़ावत की।

ये दुनिया हो गई पापी,

ज़रूरत है कयामत की।


ज़रूरत गुफ्तगू की है।

ज़रूरत पुर-सुकूँ की है।

चले केवल भलाई पर,

ज़रूरत उस जुनूँ की है।


ज़रूरत नेक बंदे की।

ज़रूरत काम धंधे की।

ज़रूरत सिर्फ एक लाठी,

किसी लाचार अंधे की।


ज़रूरत मेहरबानी की।

ज़रूरत ज़िंदगानी की।

जो दे उम्मीद लोगों को,

नई दिलकश कहानी की।


ज़रूरत खिलखिलाहट की।

ज़रा सी गुनगुनाहट की।

तरक्की को ज़रूरी है,

ज़रूरत छटपटाहट की।


ज़रूरत काम की भी है।

ज़रूरत नाम की भी है।

ज़रूरत यत्न, मेहनत,

सब्र के अंज़ाम की भी है।


ज़रूरत उन्नति की भी।

ज़रूरत दोस्ती की भी।

जो चाहो होड़ जीवन में,

ज़रूरत दुश्मनी की भी।


ज़रूरत मित्र की भी है।

उच्च चरित्र की भी है।

तेरे मस्तिष्क में जो चल रही,

चलचित्र की भी है।


ज़रूरत एक माँ की है।

ज़रूरत एक पिता की है।

और एक परिवार नामक ही,

ज़रूरत संस्था की है।


ज़रूरत हमसफर की है।

ज़रूरत एक नज़र की है।

जहां आराम दो पल हो,

ज़रूरत एक घर की है।


ज़रूरत शिष्टता की है।

न कोई दुष्टता की है।

ज़रूरत उच्च कर्मों की,

न कि निकृष्टता की है।


ज़रूरत शांति की है।

न कोई भ्रांति की है।

परिवर्तन ज़रूरी तो,

ज़रूरत क्रांति की है।


ज़रूरत है बुजुर्गों की।

ज़रूरत है तजुर्बों की।

ज़रूरत प्रेम की ना कि,

करोड़ों, अरबों, खरबों की।


ज़रूरी बचपना भी है।

जो मिट्टी से सना भी है।

ज़रूरी ज़िद में रो रोकर,

सड़क पर लोटना भी है।


पकड़ उंगली को चलना है।

कभी यूं ही मचलना है।

ज़रूरी माँ पिता के मार्ग पर,

चल कर ही पलना है।


ज़रूरत योग्यता की है।

ज़रूरत पात्रता की है।

ज़रूरत होनहार व्यक्ति,

हेतु साध्यता की है।


ज़रूरी खेलना भी है।

ज़रूरी झेलना भी है।

ज़रूरी तुगलकी फरमान की,

अवहेलना भी है।


ज़रूरत ज्ञान की भी है।

आत्मसम्मान की भी है।

कमाना पुण्य है थोड़ा,

तो सेवा, दान की भी है।


ज़रूरी जीवनी शक्ति।

ज़रूरी ईश की भक्ति।

ज़रूरी है करें सद्कर्म,

जिससे मिल सके मुक्ति।


ज़रूरत है अहिंसा की।

ज़रूरत हो, तो हिंसा की।

ज़माने से हुई है गुम,

ज़रूरत है प्रशंसा की।


ज़रूरत है सरलता की।

ज़रूरत है सफलता की।

सहित गंभीरता के ही,

ज़रूरत है चपलता की।


ज़रूरत स्वच्छता की है।

ज़रूरत व्यस्तता की है।

ज़रूरी न्याय हो तो फिर,

प्रथम निष्पक्षता की है।


ज़रूरत ग़र व्यक्तिगत है।

ज़रूरी शौक और लत है।

अगर है शौक ही मंजिल,

ज़रूरी फिर तो हिम्मत है।


समय पर काम सारे हों।

सुखद सारे नज़ारे हों।

ज़रूरी कुंडली में उच्च के,

ग्रह और सितारे हों।


ज़रूरत शख़्स की भी है।

ज़रूरत अक्स की भी है।

ज़रूरत काम हर होवे,

तसल्लीबख्श की भी है।


ज़रूरत है अमीरी की।

ज़रूरत है फ़कीरी की।

ज़रूरत है परम आनंद,

उड़ते रंग अबीरी की।


ज़रूरत है परीक्षा की।

ज़रूरत है तितिक्षा की।

सुधरना है ज़रूरी तो,

ज़रूरत है समीक्षा की।


ज़रूरत जान की भी है।

अलग पहचान की भी है।

ज़रूरत नित नए संघर्ष के,

मैदान की भी है।


ज़रूरत मर्ज़ियों की है।

कभी खुदगर्जियों की है।

जो रिश्तों को रफू कर दे,

कुछ ऐसे दर्ज़ियों की है।


ज़रूरत रोटियों की है।

ज़रूरत मुट्ठियों की है।

कहीं माँ बाप को केवल,

ज़रूरत चिठ्ठियों की है।


ज़रूरत है दवा की भी।

ज़रूरत है दुआ की भी।

ज़रूरत है खुशी की तो,

ज़रूरत आपदा की भी।


ज़रूरत सत्यता की है।

ज़रूरत सभ्यता की है।

अगर झगड़े से बचना हो,

ज़रूरत सौम्यता की है।


ज़रूरत है जवानों की।

ज़रूरत है किसानों की।

अगर हो काम सरकारी,

ज़रूरत है बहानों की।


ज़रूरी है अभिव्यक्ति।

ज़रूरी है मिले शक्ति।

ज़रूरी है कि धरना दें,

गले में बांध कर तख्ती।


ज़रूरत जागने की है।

प्रश्न को दागने की है।

दबा इतिहास है तो फिर,

दोबारा जांचने की है।


दिमाग़ी बागवानी की।

वैचारिक खाद पानी की।

ज़रूरत है नहीं बिल्कुल भी,

मिथ्या बदजुबानी की।


ज़रूरत है नफ़ासत की।

ज़रूरत है शराफ़त की।

अगर है देश खतरे में,

ज़रूरत है शहादत की।


ज़रूरी फरमाबरदारी।

ज़रूरी है समझदारी।

ज़रूरत रिश्ते नातों की,

न कि छत, चारदीवारी।


ज़रूरत आज निष्ठा की।

ज़रूरत है प्रतिष्ठा की।

अथक, अविरल मनुज को है,

ज़रूरत काक चेष्टा की।


ज़रूरी वचन का पालन।

ज़रूरी खुद का संचालन।

ज़रूरी है निरन्तर ही,

हृदय का भी हो प्रक्षालन।


ज़रूरत हौसलों की है।

ज़रूरत सिलसिलों की है।

ज़रूरत ज़िंदगानी में,

कड़े कुछ फैसलों की है।


ज़रूरत है कमाने की।

ज़रूरत घर चलाने की।

ज़रूरत बाल बच्चों को,

बड़ा कर कुछ बनाने की।


किसी से ना उलझने की।

ज़रूरत है सुलझने की।

सभी से प्यार करने की,

सभी को ही समझने की।


सिखाता राम का जीवन।

सिखाता कृष्ण का जीवन।

ज़रूरत धर्म की हो तो,

ग़लत का तुम करो खंडन।


ज़रूरत हैसियत की है।

ज़रूरत कैफियत की है।

ज़रूरत हर किसी की,

ज़िन्दगी की अहमियत की है।


ज़रूरी प्रकृति भी है।

ज़रूरी स्वीकृति भी है।

ज़रूरी स्व का निर्णय तो,

ज़रूरी संस्कृति भी है।


ज़रूरत दर्प खंडन की।

न कोई महिमा मंडन की।

ज़रूरत ख़ासियत सीखे,

मनुज एक वृक्ष चन्दन की।


ज़रूरत आत्ममंथन की।

ज़रूरत मनन, चिंतन की।

ज़रूरत बहुत गुरुकुल की,

ज़रूरत साधु, संतन की।


ज़रूरी आत्मनिर्भरता।

ज़रूरी भाव जीवटता।

ये भूमि कर्म भूमि है,

ज़रूरी चीज़ कर्मठता।


ज़रूरी वीर यशगाथा।

उठे फिर गर्व से माथा।

ज़रूरी है कि उठ और बन,

तू अपना भाग्य निर्माता।


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स्वरचित मौलिक रचना

रामचन्द्र श्रीवास्तव

कवि, गीतकार एवं लेखक

नवा रायपुर, छत्तीसगढ़

संपर्क सूत्र: 6263926054

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