जगत हो ज्योतिर्मयी

 


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दिनांक: 01/07/2025

शीर्षक: जगत हो ज्योतिर्मयी

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हर कोई प्रसन्न हो।

ना कोई विपन्न हो।

मन में जो भी हो दिखे,

कुछ ना अप्रछन्न हो।


सर्वजन विकास हो।

ईर्ष्या द्वेष ह्रास हो।

जीव के समूल से,

शूल का निकास हो।


व्यक्ति धीरवान हो।

जातिगत समान हो।

हो दया हृदय लिए,

संस्कारवान हो।


प्रेम से ही बात हो।

करते नमन हाथ हो।

कोई भी कहीं भी कार्य,

ना कभी बलात हो।


ना कहीं भी लोभ हो।

ना हृदय में क्षोभ हो।

व्यक्ति जो विकारहीन,

वो जगत का शोभ हो।


क्रोध का दमन करे।

ईश का मनन करे।

ऐसे व्यक्ति को अवश्य,

व्यक्ति हर नमन करे।


त्याग ही स्वभाव हो।

वेद का प्रभाव हो।

व्यक्ति व्यक्ति से जुड़े,

न कहीं दुराव हो।


पाप कर्म क्षीण हो।

त्याज्य जीर्ण शीर्ण हो।

पुण्य का प्रताप हो,

पुण्य ही प्रकीर्ण हो।


व्यक्ति हो दृढ़ निश्चयी।

नारी हो ममतामयी।

दोनों के सहयोग से,

जगत हो ज्योतिर्मयी।


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स्वरचित मौलिक रचना

रामचन्द्र श्रीवास्तव

कवि, गीतकार एवं लेखक

नवा रा

यपुर, छत्तीसगढ़

संपर्क सूत्र: 6263926054

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