श्रीराम धनुष "कोदंड"

दम्भी, गर्वित को
पराजित
कर कर ही लौटे निज
धाम।
कर में लिए धनुष
लौटते,
मर्यादा पुरुषोत्तम
राम।।
है प्रसन्न
"कोदंड",
मन ही मन कहता खेल
रचाया है।
धर्मयुद्ध में प्रभु
ने मुझसे,
क्या शुभ कार्य
कराया है।।
मैं था महत्वहीन
किंतु
अब मैं बहुमूल्य बना
बैठा।
समरभूमि में काल संग
मैं
मृत्युतुल्य बना
बैठा।।
वह हिंसक राक्षसी
ताड़का,
मायावी मारीच, सुबाहु।
मुझसे शर संधान किया
है,
कृपा पात्र हूं हे
महाबाहु।।
किष्किंधा में दंड
दिया था,
पाप कर्म का बाली
को।
अन्त समय में ज्ञान सत्य
का,
दिया महाबलशाली को।।
राह नहीं दी जब
समुद्र ने,
पुनः एक उपकार किया।
प्रभु ने जब मेरी
प्रत्यंचा
से भीषण टंकार
किया।।
महाअसुर रावण की
सेना
कहीं नहीं टिकने
पाई।
पाप पुण्य के युद्ध
में प्रभु ने
सत्य पताका फहराई।।
मैं आभारी भार मेरा
कांधे पर आप उठाते हैं।
मर्यादा पुरुषोत्तम
मेरे,
प्रभु श्रीराम कहाते हैं।।
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें