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मात वीणा के स्वरों से (सरस्वती वंदना)

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  मात वीणा के स्वरों से कुछ स्वरों को खींचकर, राम की विनती यही है, कन्ठ में भर दीजिए। आपका यह हंस वाहन है धवल शुभता लिए, मेरे जीवन को भी मैया शुभ धवल कर दीजिए। आप से आरम्भ शुभ है आप बुद्धि प्रदायिनी। आप के सेवक है हम सब मात वीणावादिनी। उच्च कोटि की हो रचना, उच्च कोटि विचार हों।  कुविचारों को मिटाओ, श्वेत कमल निवासिनी। सत्य के प्रहरी बनें हम, सत्य की दें लौ जला, इतने सक्षम बन सके हम मात यह वर दीजिए। मात वीणा के स्वरों से................................ नेत्र से हो दया की वृष्टि मात हे ममतामयी। आपकी हो कृपा की दृष्टि कर्म शुभ कर दें कई। शब्द से लब्ध व प्रबुद्ध और शुद्ध बुद्धि दीजिए। कि करें हम लोकहित में नित्य प्रति रचना नई। धर्म के संग्राम में हम सत्य के साधक बने, कुविचारों को जो मारे माँ धनुष शर दीजिए। मात वीणा के स्वरों से................................ आपसे आशीष ले कर जग सुवासित हम करें। आपके वन्दन से स्वयं को धर्म पोषित हम करें। जो है भूले और भटके मार्ग हम दिखला सकें। आपका गुणगान गाकर परमानंदित हम करें। आपकी आराधना कर आपकी कर साधना। आपके चरणों में बैठूँ मात अवसर दीजिए। मात...

मैं कमाने मगर दूर जाता रहा।

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  ┈┉┅━❀꧁꧂❀━┅┉┈ मैं कमाने मगर दूर जाता रहा। ┈┉┅━❀꧁꧂❀━┅┉┈ घर मेरा मुझको हर दम बुलाता रहा। मैं कमाने मगर दूर जाता रहा। घर को उम्मीद की रौशनी तो मिले, इसलिए खुद को ही मैं जलाता रहा। जान ले ना ये दुनिया मेरे सारे ग़म। जो ज़रूरत ने मुझपे किए हैं सितम। अश्क आंखों में अपनी छिपाए हुए, मैं बिना बात ही मुस्कुराता रहा। वो दीवार और छत की मरम्मत कहीं। ऑपरेशन से माँ की हो आँखें सही। जिम्मेदारी बड़ी कंधे नादान हैं, मैं मगर फिर भी जिम्मा उठाता रहा। घर में बीमार माँ छोटे भाई बहन। उनकी शादी पढ़ाई व पोषण भरण। उनके खर्चे बराबर चलें इसलिए, टूटी चप्पल महीनों चलाता रहा। वक्त की आंधियों ने धकेला मुझे। कर दिया दूर घर से अकेला मुझे। दिल में अपने मुकद्दर पे रोया बहुत, सामने सबके पर खिलखिलाता रहा। ┈┉┅━❀꧁꧂❀━┅┉┈ स्वरचित मौलिक रचना रामचन्द्र श्रीवास्तव कवि, गीतकार एवं लेखक नवा रायपुर, छत्तीसगढ़ संपर्क सूत्र: 6263926054 ┈┉┅━❀꧁꧂❀━┅┉┈

माँ शारदे वन्दना

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  "राम पुकारे आपको, माँ सादर सम्मान। जोड़ खड़ा कर द्वार पर मांगे यह वरदान। भक्तों की जिह्वा करे, वन्दन और आह्वान। कृपा, दया हो आपकी, करें लक्ष्य संधान।" माँ शारदे, माँ शारदे स्वर लहरियों का वर दीजिए। माँ शारदे, माँ शारदे स्वर मेरे गीतों में भर दीजिए। मोती से जैसे बनती है माला  अक्षर से शब्द और कविता लिखूँ। चलता है जीवन ज्यों अनवरत, मैं सार्थक काव्य सरिता लिखूँ। माँ शारदे, माँ शारदे इतनी कृपा तो कर दीजिए। माँ शारदे, माँ शारदे स्वर मेरे गीतों में भर दीजिए। ज्यों दीप जलता अकेले भले, मैं भी तमस से यूं लड़ सकूं। जग को प्रकाशित करता रवि, स्वयं को प्रकाशित मै कर सकूं। माँ शारदे, माँ शारदे वाणी में शुभ शब्द धर दीजिए। माँ शारदे, माँ शारदे स्वर मेरे गीतों में भर दीजिए। ज्यों सीप भीतर मोती बने, मेरा हृदय संस्कारित रहे। जिह्वा पे गुणगान हो आपका और आप पर आधारित रहे। माँ शारदे, माँ शारदे चरणों में मुझको घर दीजिए। माँ शारदे, माँ शारदे स्वर मेरे गीतों में भर दीजिए। माँ शारदे, माँ शारदे स्वर लहरियों का वर दीजिए। माँ शारदे, माँ शारदे स्वर मेरे गीतों में भर दीजिए।

भ्रष्टाचार

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  ┈┉┅━❀꧁꧂❀━┅┉┈ भ्रष्टाचार ┈┉┅━❀꧁꧂❀━┅┉┈ भ्रष्टाचारियों की आज देश में भरमार है। पैसों और ताकत का भूत सिर पे सवार है। सुबह शाम पैसा खाएं लेते ना डकार हैं। भेड़ की चमड़ी ओढ़ ढूंढते शिकार हैं। पैसों और ताकत... दफ्तर है सरकारी, लुटती जनता बेचारी। घूस ले के काम करें, वरना करें मक्कारी। पेट है गुब्बारे सा, खा के घुस की कमाई, ऐसा लगे जैसे फट पड़ने को तैयार है। पैसों और ताकत... लॉलीपॉप, मीठी गोली दें चुनावी वादों में। जनता की शक्ल तक न रखते अपनी यादों में। वोट पूर्व रोडपती, जीत कर करोड़पति, ये सफेदपोश जानें कैसा चमत्कार है। पैसों और ताकत... खाकी वर्दी, काला कोट, जाने कब किसे दें चोट। भ्रष्टाचार के पुरोधा, नीयत में जिनकी खोट। पक्ष और विपक्ष में ये भेदभाव के बिना ही, दोनों को ही लूटने में दोनों ही शुमार है। पैसों और ताकत... जाली काम, फर्जीवाड़ा, करते देश का कबाड़ा। जनता जनार्दन का चूसते हैं खून गाढ़ा। इस तरह के कर्म कर के रोज बद्दुआएं लेना, "राम" कहे इस तरह से जीने पे धिक्कार है। पैसों और ताकत... ┈┉┅━❀꧁꧂❀━┅┉┈ स्वरचित मौलिक रचना रामचन्द्र श्रीवास्तव कवि, गीतकार ए...