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तू मेरा अक्स है मुझ पर गया है

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  ┈┉┅━❀꧁꧂❀━┅┉┈ तू मेरा अक्स है मुझ पर गया है ┈┉┅━❀꧁꧂❀━┅┉┈ तू मेरी ज़िन्दगी का आईना है। तू मेरा अक्स है मुझ पर गया है। मेरा दिल तो तुम्हारे बीच ही है, बदन मेरा मगर दफ्तर गया है। न मिलना चाहता था मैं दुबारा, मगर वो आज फिर मिल कर गया है। वफादारी की कसमें खा रहा था, वो मुझको लूट अपने घर गया है। है मुझसे खौफ में मेरा ही कातिल, मेरे किस्सों को सुन कर डर गया है। वो मेरे कत्ल का सामान ले कर, ज़रा ढूंढो कहां पर मर गया है। ┈┉┅━❀꧁꧂❀━┅┉┈ स्वरचित मौलिक रचना रामचन्द्र श्रीवास्तव कवि, गीतकार एवं लेखक नवा रायपुर, छत्तीसगढ़ संपर्क सूत्र: 6263926054 ┈┉┅━❀꧁꧂❀━┅┉┈

सफलता

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  ┈┉┅━❀꧁꧂❀━┅┉┈ सफलता ┈┉┅━❀꧁꧂❀━┅┉┈ सफलता को ज़रूरी है सफलता की प्रबल इच्छा। सफलता को ज़रूरी सुनियोजित और सही शिक्षा। सफलता को ज़रूरी है बदलना अपनी आदतें। सफलता को ज़रूरी है चुनें हम नेक रास्ते। सफलता को ज़रूरी है कि अपने लक्ष्य को जानो। कोई कहता हो कर सकते नहीं पर तुम नहीं मानो। सफलता के लिए विश्वास कर और छोड़ घबराना। सफलता को ज़रूरी है तेरा हद से गुजर जाना। सफलता की है जननी असफलता याद रखना। सफलता चाहिए तो असफलता को भी चखना। सफलता को ज़रूरी है इरादा भी सबल हो। जो करना है अभी करना न फिर यह आजकल हो। सफलता के लिए खुद का अटल रहना जरूरी है। सफलता के लिए घर से निकल रहना जरूरी है। सफलता चाहते हो तो निरन्तर कर्म करना है। हुनर को सीखना संघर्ष में तप कर निखरना है। सफलता प्राप्त होती है कभी छीनी नहीं जाती। सफलता चंचला रुकती नहीं रोकी नहीं जाती। सफलता टिक सके लंबे समय तक ये हुनर सीखो। सभी से प्रेम से बोलो मदद करना बशर सीखो। प्रयासों में कमी करना नहीं तू धैर्य धारण कर। सुबह उठ रोज अपने लक्ष्य का ऊंचा उच्चारण कर। सफलता के बहुत से मायने हैं व्यक्ति आधारित। वही सच्ची सफलता है हो जिससे सर्वजन का हित...

हो सफल

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********** हो सफल ********** हो प्रबल, हो अटल, हो अचल, हो सफल। कह रहा, धरातल, कर्म कर, हो सफल। हो सबल, पी गरल, आ निकल, हो सफल। आज अभी, ना हो कल, रुक न तू, हो सफल। तू सम्हल, तू बदल, ना चपल, हो सफल। ********** स्वरचित मौलिक रचना अर्चना श्रीवास्तव कवयित्री नवा रायपुर, छत्तीसगढ़ **********

माँ की रचना

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  माँ की रचना ईश्वर ने प्रेम बांटने के लिए की माँ की रचना। कौन था वो जिसने बिगाड़ दी माँ की संरचना।। धरती, गाय, स्त्री सबको माँ की रचना माना गया है। फिर क्यों यह पाप? गौ-हत्या और बेटी-बहु को मारा गया है।। माँ की रचना के साथ प्रेम, एकता, परिवार बनाया गया है। फिर क्यों माँ के रहते ही, स्त्री के मन में डर और मानसिक तनाव बढ़ाया गया है।। यदि आपकी माँ सम्मान, प्रेम और दया की पात्र है। याद रहे, मैं और मेरी माँ भी सम्मान, प्रेम और दया की पात्र हैं।। मैं और सिर्फ़ मैं का अभिमान करने वालों ने, बदल दी माँ की रचना। दुर्भाग्य, माँ होते हुए भी स्त्री ने खुद ही, बदल दी माँ की संरचना॥

शहीद

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  शहीद पद चिन्ह जिनके देश की सीमा बना रहे हैं। वो नाम क्यों इतिहास से छुपाए जा रहे हैं।। बर्फ, पहाड़, रेत, जंगल बड़ी तकलीफ है जहाँ। गाँव की मिट्टी छोड़कर फौजी रहता है वहाँ।। बीवी, बच्चे, माँ-बाप, बहन-भाई छूट जाते हैं। देश की रक्षा के ख़ातिर कई नाते टूट जाते हैं।। लरज़ते हाथ, राखी, बोझिल आँखें, राह तकती हैं। फोन पे आवाज़ "घल आओना" सवाल करती है।। कभी तो सलामत वो शरीर के साथ आ पाता है। कभी लिपटे तिरंगे में शरीर से पहले आ जाता है।। काश कि उसके चरणों को मैं पल-पल छूता होता। काश कि उसके चरणों का मैं काला जूता होता। ।

ख़याली लकीरें

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  *ख़याली लकीरें* ज़मीन, फिजाओं  और समंदर पर जो लकीरें दिखती नहीं खींच दी है  कुछ ख़ुदग़र्ज़ों ने अपनी ऊंची ऊंची  नाकों के लिए जिन्हें... न इंसान समझ में आया न इंसाफ  और न ही इंसानियत  बन गए है वो हुक्मरान  और सबब–ए–हैवानियत ये गुनाह है... चंद सिक्कों की लालच दे  इंसान को मशीन बनाना उसमें सोचने समझने की ताकत छीन  हर हुक्म पे कहलवाना यस सर और उसे कर देना खड़े उन खयाली लकीरों पर गुस्सा, गुरूर और दुश्मनी,  भरकर ग़ज़ब है... इस खयाली लकीरों के  इस तरफ कत्ल कत्ल है कातिल को सज़ा है  और उस पार का कत्ल  साहस है रुतबा है इनाम और चक्रों की रज़ा है अरे... हर कोई होता है  सुहाग, बाप या भाई किसी न किसी का  यह बात तो साफ है फिर ये कैसा इंसाफ है? - अनीस ‘इंसान’

परायों में अपनापन

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  परायों में अपनापन मेरे चेहरे की हँसी गायब हो जाती है, जब मैं ढूंढती हूँ परायों में अपनापन। आँखें नम हो जाती हैं याद करके, अपनों के साथ बिताया बचपन।। काम, जिम्मेदारी, ताने, नाराजगी, बदतमीजी सब मेरे हिस्से। ये है मेरी जबानी परायों में, अपनापन ढूंढने के किस्से।। जब सुखमयी फैसले और सुखी जीवन का, कारण मुझे मानते ही नहीं। मेरे आत्मसम्मान के हनन का, कारण जानते ही नहीं। तब मैं कहती हूँ कि, परायों में अपनापन है नहीं।। परायों में अपनापन ढूंढ कर, जीवन में कमी रह जाती है। दुर्भाग्य है मानव का, परायों में अपना ढूंढ कर, आंखों में नमी रह जाती है। ।