परायों में अपनापन


 

परायों में अपनापन

मेरे चेहरे की हँसी गायब हो जाती है,
जब मैं ढूंढती हूँ परायों में अपनापन।
आँखें नम हो जाती हैं याद करके,
अपनों के साथ बिताया बचपन।।

काम, जिम्मेदारी, ताने, नाराजगी,
बदतमीजी सब मेरे हिस्से।
ये है मेरी जबानी परायों में,
अपनापन ढूंढने के किस्से।।

जब सुखमयी फैसले
और सुखी जीवन का,
कारण मुझे मानते ही नहीं।
मेरे आत्मसम्मान के हनन का,
कारण जानते ही नहीं।
तब मैं कहती हूँ कि,
परायों में अपनापन है नहीं।।

परायों में अपनापन ढूंढ कर,
जीवन में कमी रह जाती है।
दुर्भाग्य है मानव का,
परायों में अपना ढूंढ कर,
आंखों में नमी रह जाती है।

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