राम में रम गए


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दिनांक: 21/06/2025
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राम में रम गए, रम हुए राममय।
राम में ही रमे, सब जगत के विषय।

ब्राह्मण का वेश धरे।
मित्र का संताप हरे।
बजरंगी मिलने आए राम लखन से।

भान हुआ प्रभु का जब।
भूल गए सुध बुध सब।
चरण छुए, गले मिले, गदगद मन से।

भक्त का ईश में हो रहा है विलय।
राम में ही रमे, सब जगत के विषय।

राम में रम गए, रम हुए राममय।
राम में ही रमे, सब जगत के विषय।

माँ जानकी ढूंढें।
हर जीव से पूछें।
अपनी व्यथा भक्त से कह रहे।

दोनों ही सुनते हैं।
दोनों हो कहते हैं।
दोनों ही तो भाव में बह रहे।

राम पालक हैं और शिव स्वयं हैं प्रलय।
राम में ही रमे, सब जगत के विषय।

राम में रम गए, रम हुए राममय।
राम में ही रमे, सब जगत के विषय।

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स्वरचित मौलिक रचना
रामचन्द्र श्रीवास्तव
कवि, गीतकार एवं लेखक
नवा रायपुर, छत्तीसगढ़
6263926054
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