परिवार
परिवार
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खुली आंखों से दिखता है उसे संसार कहते हैं।
बिना शर्तों के मिलता है उसी को प्यार कहते हैं।
गिले शिकवे भुला कर भी खड़े जो साथ रहते हैं ।
सम्हाले और न गिरने दे उसे परिवार कहते हैं।
कि पहला प्यार माता है जगत जिसने दिखाया है।
किसी माँ ने न बच्चों को कभी भूखा सुलाया है।
पड़ी जब धूप की बदली तो आंचल में छिपाया है।
ज़रूरत में खड़ा आगे तो माता को ही पाया है।
पिता का प्यार दुनिया में हमें चलना सिखाता है।
अगर थोड़ा भटक जाएं सही रस्ता दिखाता है।
पिता निष्ठुर है इस खातिर वो माँ से कम ही भाता है।
अगर माँ जन्म देती है पिता जीवन चलाता है।
बहन भाई किसी को भी तो अच्छे से समझते हैं।
वो जितना प्यार करते हैं वो उतना ही झगड़ते हैं।
वो पहले दोस्त जो अपने हमें जीवन में मिलते हैं।
वो जितना हो सके हमको दुखों से दूर रखते हैं।
कि पत्नी आती है परिवार की खुशियां बढ़ाती है।
वो एक घर बार को तज कर हमें अपना बनाती है।
सभी को खुश करे ऐसे जतन हर आजमाती है।
वो घर की लक्ष्मी घर को करीने से सजाती है।
कि छोटे बच्चों से घर अंगना गूंजे है किलकारी।
बने हैं बाप हम पत्नी बनी बैठी है महतारी।
लिखी परिवार पर कविता लिखे हैं शब्द जो भारी।
उन्हें पूरा करेंगे आ गई बच्चों की अब बारी।
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स्वरचित मौलिक रचना
रामचन्द्र श्रीवास्तव
कवि, गीतकार एवं लेखक
नवा रायपुर, छत्तीसगढ़
6263926054
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