तुम्हें बारिश में जब देखूं


 ┈┉┅━❀꧁꧂❀━┅┉┈

तुम्हें बारिश में जब देखूं

┈┉┅━❀꧁꧂❀━┅┉┈



तुम्हें बारिश में जब देखूं तो दिल मेरा बहकता है।

बहुत कुछ चाहता कहना मगर थोड़ा ठिठकता है।

तेरा वो खेलना बारिश में और रह रह के मुस्काना।

मेरा दिल देख के तुझको महकता और चहकता है।



तुम्हें बारिश में जब देखूं नज़र जाती है मेरी थम।

मेरी धड़कन है बढ़ जाती नहीं होती ज़रा भी कम।

तुम्हारे बाल गीले हैं तुम इनको जब झटकती हो।

लगे मुझको तो कुछ ऐसा मेरा निकलेगा दम हमदम।



तुम्हें बारिश में जब देखूं तो खुद से दूर होता हूँ।

तुम इतनी खूबसूरत हो कि मैं मग़रूर होता हूँ।

मैं टिक सकता नहीं जाना न सूरत में न सीरत में।

मगर तेरा है शुकराना तुझे मंज़ूर होता हूँ।



तुम्हें बारिश में जब देखूं मैं काबू में नहीं रहता।

मैं खुद को रोक लेता हूँ मगर तुमसे नहीं कहता।

ये जैसे बूंद बारिश की बदन से बह के गिरती है।

यूं ही चाहूं कि मैं पागल रहूँ तेरे संग ही बहता।



तुम्हें बारिश में जब देखूं ये दिल मदहोश हो जाए।

तेरी साड़ी के आंचल को ये दिल छूना ज़रा चाहे।

तेरा दीदार करती है नज़र नजरें छुपा कर के।

कहीं ऐसा न हो सारा मेरा गुम जोश हो जाए।



तुम्हें बारिश में जब देखूं मेरे अरमां मचलते हैं।

कि बारिश में खड़े लेकिन हम अंदर से ही जलते हैं।

बिना पूछे छुआ तुमको ये बारिश की है गुस्ताखी।

ये गुस्ताखी करें हम भी इन उम्मीदों में पलते हैं।



तुम्हें बारिश में जब देखूं हो लगती मोरनी जैसी।

मेरे दिल को चुराती हो हो तुम चितचोरनी जैसी।

अभी ओढ़ा था ये आंचल जो तुमने सिर के ऊपर तो।

लगा ऐसा कि सिर पर हो तुम्हारे ओढ़नी जैसी।



तुम्हें बारिश में जब देखूं तो शर्मा के सिमटती हो।

जो हम नजदीक होते हैं तो तुम मुझसे लिपटती हो।

हर इक बारिश में खुश हो तुम मुझे दमभर भगाती है।

कभी मैं भी फिसल जाता कभी तुम भी रपटती हो।



┈┉┅━❀꧁꧂❀━┅┉┈

स्वरचित मौलिक रचना

रामचन्द्र श्रीवास्तव

कवि, गीतकार एवं लेखक

नवा रायपुर, छत्तीसगढ़

6263926054

┈┉┅━❀꧁꧂❀━┅┉┈

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

आज, अभी नशे का सामान छोड़ दीजिए

पत्रकारों के लिए विशेष रचना

सबके पास कुछ ना कुछ सुझाव होना चाहिए।