तलाशी

 

।।तलाशी।।


शिक्षक  शिष्य  की,  बात   चली  तो,

एक    वाकिया  आज,  बतलाता   हूं।

शिक्षक   शिष्य  के, मधुर  रिश्ते   का,

एक   अनुपम   दर्शन,   करवाता   हूं।


शिक्षक जी के, क्लास  में   एक  दिन,

एक   छात्र   की,   घड़ी    हुई   चोरी।

घड़ी   रखी    थी,  टेबल   पर    जब,

किसी  छात्र ने  ही, हाथ  उसमे  फेरी।


हुई    शिकायत,   कक्षा   शिक्षक   से,

उन्होंने  शीघ्र, घटना का  लिया संज्ञान।

सब  बच्चों  को, कमरे  में  रोक लिया,

तलाशी  का  शुरू,   किया  अभियान।


बोले सब  कर लो, अपनी  आंखें  बंद,

एक  एक  की  अभी,  तलाशी   लूंगा।

हिदायत  बस  कोई,  न  खोले  आंख,

तलाशी  न जब तक, मैं पूरी कर लूंगा।


तलाशी   के  मध्य, मिल   गई    घड़ी,

पर   तलाशी   उन्होंने   जारी.  रक्खा।

सब  की  तलाशी पूर्ण, होने  के   बाद,

बरामद घड़ी उन्होंने,  मेज  पर रक्खा।


बिना  नाम बताए, चोर  का  शिक्षक ने

घड़ी जिसका था,उसबच्चे को लौटाया।

घड़ी   की   किसने,   की   थी    चोरी,

किसी    को    पता,  न   चल   पाया।


वर्षों   बाद    उसी,   स्कूल   में   फिर,

शिक्षक  दिवस  का, शुभ अवसर  था।

 गुरुजी   तो  थे,   मुख्य  अतिथि  तब,

उनका  छात्र, वहां  का  प्रिंसिपल  था।


प्रिंसिपल ने   बड़े, जान  बूझ  कर  ही,

शिक्षक दिवस पर था,उनको बुलवाया।

बड़ा आदर सम्मान, किया उनका फिर,

उस घटना का, स्मरण  उन्हें  करवाया।


चरण   पकड़   कर  बोला, हे  गुरुवर,

मैं  तो   ऋणी,  आपका  जीवन  भर।

घड़ी   चुराई   थी   मैने,  जानते   भी,

बड़ी   कृपा   दिखाई,  थी   मुझ  पर।


सच  कहूं  गुरुजी,आपकी  उदारता ने,

मेरा  जीवन   ही,  सारा  बदल  डाला।

आप  जैसा  ही , शिक्षक   बनने   की,

अभिलाषा  ने  मन में, घर कर  डाला।


शिक्षक ने अचरज से, कहा  "अनुज", 

वह    घटना   मैं,  भूला  नहीं  अभी।

पर तलाशी मैंने,आंख बंद कर ली थी,

किसने  की चोरी ,मुझको  पता न थी।


✍️ विरेन्द्र शर्मा "अनुज"

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