संदेश

पापा की परी

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तुम भी कितनी प्यारी बातें करती हो, बातों से कानों में मधुरस भरती हो। छोटी सी चिड़िया हो, जो पर फैलाए, उड़ती रहती क्यों ना कभी ठहरती हो। रोज बहाने, नये-पुराने होठों पर, नई कहानी नित-नित ही तुम गढ़ती हो। करता हूं जब बातें पढ़ने-लिखने की, पढ़ने से तो ज्यादा कहीं झगड़ती हो। जब से पैदा हुई, नापता ऊंचाई, दिन दूनी तुम रात चौगुनी बढ़ती हो। मनपसंद की जब न कोई चीज़ मिले, ज़िद करती हो कभी, कभी तुम लड़ती हो। कभी लगे जो चोट मुझे, मैं सहलाऊं, गोल बना कपड़े का, फूंक, रगड़ती हो। अगर दिखूं ना कभी तुम्हे कुछ दिन तक मैं, जाने किस अनजाने भय से डरती हो। कभी तुम्हारी टांग खींच लूं थोड़ी सी, बुरा मान जाती हो और बिगड़ती हो। अगर ध्यान ना कोई दे और छूट मिले, तो तुम दिनभर घर में दंगल करती हो। कभी देखती मम्मी को मेकअप करते, क्रीम पाउडर ज्यादा लगा संवरती हो। कभी शरारत करने पर जब डांट पड़े, खुद ही रोनी सूरत बना अकड़ती हो। अगर करे तारीफ जरा सी कोई भी, तुरत चने के झाड़ के ऊपर चढ़ती हो। अपनी सारी करतूतों की लिस्ट बना, सब गलती छोटे भाई पर मढ़ती हो। दुखी देखकर पापा को रोती हो तुम, पापा पर तुम कितनी जान छिड़क...

इस दिल का अफसाना

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  ये प्यार न ठुकराना, ना समझो अनजाना। दिल दिल से कहता है, जज़्बात समझ जाना। माना कि ये दिल मेरा, बन बैठा दीवाना। इकरार करे कैसे, मुश्किल है समझाना। चाहत तो है दिल की, हाल-ए-दिल बतलाना। नफरत को हसरत का, पागलपन दिखलाना। एक रोज़ यकीं हमको, होगा तुमको आना। जिस दिन तुम समझोगे, इस दिल का अफसाना।

घाव

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  मुझसे कुछ ना कहो, मन के घाव गहरे हैं। अच्छे स्वभाव की उम्मीद ना करो, मन में क्रोध के पहरे हैं।। आप सब वही हो, जिन्होंने मुझे घाव दिया है। गुनाह मेरा ये है कि मैंने, प्रेम का छांव दिया है।। बड़ा दिल दुख गया है मेरा, शब्द मन में ठहरे हैं। अच्छे स्वभाव की उम्मीद ना करो, मन में क्रोध के पहरे हैं।। सभी से अच्छा व्यवहार करूं, ये मेरा स्वभाव है। सब इसके लायक नहीं, इसलिये मन में घाव है।। और मजबूत बन सकूं, इसलिये क्रोध का ताव है। मेरे मन के घाव का कारण, मेरा अपना स्वभाव है।।

इज्जत से ईश आपको अशफ़ाक करेगा

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  कहता है दिल, जो दिल की भावना को ना समझे। तो आपकी इज्जत, ये दिल क्या खाक करेगा।। जब बार बार पूछें और जवाब ना मिले। तब फैसले दिल अपने ही बेबाक करेगा।। इज्जत जो चाहते हैं तो इज्जत भी दीजिए। अपमान का एक घूंट भी सब राख करेगा।। जब खुद को ही, औरों में भी देखेंगे, पाएंगे। इज्जत से ईश आपको, अशफ़ाक करेगा।।

पाइथागोरस प्रमेय बच्चों, है बहुत आसान

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पाइथागोरस प्रमेय को जान। पाइथागोरस प्रमेय बच्चों, है बहुत आसान।। लम्ब, आधार, कर्ण है, भुजा समकोण त्रिभुज की। कर्ण अग्रज की निशानी, लम्ब आधार अनुज की।। सिद्ध किया पाइथागोरस ने, देकर ठोस प्रमाण। पाइ‌थागोरस प्रमेय को जान। पाइथागोरस प्रमेय बच्चों, है बहुत आसान।। लम्ब, आधार का बच्चों, पृथक ही वर्ग निकालो। जोड़ दोनो वर्गों को संग आपस में मिला लो।। वर्गमूल जो उसका निकले, होगा कर्ण समान। पाइथागोरस प्रमेय को जान। पाइथागोरस प्रमेय बच्चों, है बहुत आसान।। कर्ण और लम्ब का बच्चों, पृथक ही वर्ग निकालो। कर्ण के वर्ग से बच्चों लम्ब का वर्ग घटा लो।। वर्गमूल उसका निकलेगा, जो आधार समान। पाइथागोरस प्रमेय को जान। पाइथागोरस प्रमेय बच्चों, है बहुत आसान।। कर्ण, आधार का बच्चों, पृथक ही वर्ग निकालो। कर्ण के वर्ग से अब तुम, वर्ग आधार घटा लो।। वर्गमूल निकलेगा फिर जो होगा लम्ब समान। पाइथागोरस प्रमेय को जान। पाइथागोरस प्रमेय बच्चों, है बहुत आसान।।

देवदूतों को शुक्रिया

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कहानी सत्रह दिन सुरंग मे फंसे मजदूरों की है। सिसकियां उनके परिवार की और जिम्मेदारी के कारण घर से दूर उन मजबूरों की है।। इकतालिस जान के साथ इकतालिस परिवार बसे थे। टनल मे सुरंग धंसने की वजह से ये मजदूर फंसे थे।। भारत देश के देवदूतों ने हार नही मानी। अपनी बुद्धि से बचाई उन्होंने इकतालिस जिन्दगानी।। उत्तराखण्ड में 12 नवम्बर 2023 है को वो मजदूर कहां जानते थे कि ऐसा हो जायेगा। देवदूतों को नमन व बारम्बार शुक्रिया अब ये मजदूर उनकी कृपा से अपने घर पहुंच पायेगा।।

अक्सर खामोश लब हो तो आंखें जरा सुन सको तो कुछ बोलती हैं।

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  अक्सर खामोश लब हो तो आंखें जरा सुन सको तो कुछ बोलती हैं। आंखों को गहराई से गर पढ़ो तो सुन "राम" वो राज-ए-दिल खोलती हैं।। 1 मीठी है बोली, गुड़ की डली है, बातों में उनकी मिश्री घुली है। बचना तू ऐ "राम" मीठी जुबां से मीठी जुबां ही ज़हर घोलती है।। 2 जरा सोच लो और थोड़ा समझ लो तभी "राम" दुनिया से कुछ बात बोलो। तू अनजान है जानता ही नहीं है कि दुनिया जुबां से तुझे तोलती है।। 3 चारों तरफ झूठ-ओ-गारत का मेला खड़ा है यहां सिर्फ सच ही अकेला। तू ऐ "राम" सच पर कहां तक चलेगा कि तूती यहां झूठ की बोलती है।।