बस एक गुलाब चाहता हूं
अब मैं आंखों में ऐसा एक ख़्वाब चाहता हूं
दहलीज ए कब्र पर मेरी बस एक गुलाब चाहता हूं
मेरे सवालों की फेहरिस्त में जो एक सवाल है
मेरे क़ातिल से मैं उसका जवाब चाहता हूं
हमदोश तो खुशी में शामिल कई हैं लेकिन
इज़हार ए ग़म को भी एक अहबाब चाहता हूं
देखा है इंसां की शक्ल में भेड़ियों को सो
आज ही की शब में वो अज़ाब चाहता हूं
आज के मुबैयना शायर जो कहकर दाद पाते हैं
इल्म अपनी भी शायरी में इतना खराब चाहता हूं
वो मज़हब के लोग तो मियां क़ाफ़िर हैं ऐसे हर्फ
जिसमें लिखे हों वो मुकम्मल किताब चाहता हूं
जदीद रोज़ ए हिसाब के पहले तो मुमकिन ही नहीं है
ये क्या की आज आफताब तो कल मेहताब चाहता हूं
Insta ID - @jadeed_nazmkaar
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