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नमामी शिव, शिवः, शिवम

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 नमामी शिव, शिवः, शिवम नमामी शिव, शिवः, शिवम, नमामी चन्द्र शेखरं। हैं आदि अंत से परे, स्वयंभू शिव त्रिलोचनं। श्री गंगाधर, जगतपिता, त्रिशूल धारी शंकरं। वो देवों के भी देव हैं, नमामी दिग दिगम्बरं। हरेक कण में शिव ही हैं, हरेक क्षण में शिव ही हैं। हरेक तन में शिव ही हैं, हरेक मन में शिव ही हैं। वो व्याप्त सर्व ओर है, निशा है या कि भोर है। हृदय दया से पूर्ण है, पर आवरण कठोर है। गले में सर्प कुण्डली, जटा से गंग है चली। जो व्यक्ति धर्म युक्त है, करेंगे उसकी शिव भली। त्रिशूल डमरू धारते, वो दुष्टों को संहारते। हे भोले, शंभू, नील कंठ, देव पग पखारते। हृदय वृहद विशाल है, दयालु और कृपाल हैं। वो देवताओं के भी देव, काल के भी काल हैं। ये सृष्टि उनसे चल रही, गले गरल धरे वही। इधर, उधर, यहाँ, वहाँ, बसे वही हैं हर कहीं। जगत चलायमान है, ये भोले का विधान है। है शिव का हाथ जिसपे भी, वो बन गया महान है। नमः शिवाय बोलिए, प्रकाश मार्ग खोलिए। शरण में शिव की आइए, हृदय को शिव से जोड़िए। स्वरचित मौलिक रचना रामचन्द्र श्रीवास्तव कवि, गीतकार एवं लेखक नवा रायपुर, छत्तीसगढ़ संपर्क सूत्र: 6263926054

अपना घर

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  ******************** अपना घर ******************** घर बनाना और घर पाना, हर किसी की ख्वाहिश होती है। अपने घर का मालिक बनना, हर किसी की चाहत होती है। घर नहीं होने का दर्द उनसे पूछिए, जिनके पास घर नहीं। खुद की दीवारें, खुद की छत, खुद का दर नहीं। अपने घर की कुछ यादें, कुछ सपने होते हैं। सपने में घर, बागवानी, सब अपने होते हैं। जिनके पास अपना घर नहीं, उनके सपने चकनाचूर होते हैं। हकीकत में वो सपनों से, बहुत ही दूर होते हैं। ******************** स्वरचित मौलिक रचना अर्चना श्रीवास्तव कवयित्री नवा रायपुर, छत्तीसगढ़ ********************

वतन के वीर जवान

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 ******************* वतन के वीर जवान ******************** अचूक निगाह, देश की परवाह। साहसी और बलिदानी, वीर योद्धाओं की, अमर कहानी। दुश्मनों पर विजय, न कोई डर न भय। हो देश के लिए कुरबान, करे न्यौछावर अपनी जान। सरहद पर खड़ा, बन पत्थर सा सख्त, यही तो है हमारी, आजादी की कीमत। बम बारूद से घिरे, मौत से लड़ते है, जान देकर अपनी, देश की रक्षा करते है। दिया है भारत माँ को, यही तो वचन, लुटा देंगे हम देश की, रक्षा में जानो तन। ******************** स्वरचित मौलिक रचना अर्चना श्रीवास्तव कवयित्री नवा रायपुर, छत्तीसगढ़ ********************

वतन के वीरों को नमन

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  ┈┉┅━❀꧁꧂❀━┅┉┈ वतन के वीरों को नमन ┈┉┅━❀꧁꧂❀━┅┉┈ वतन के वीरों को नमन, खड़े सीमा पे जो तन के। हमारी श्वास है उनसे, खड़े रक्षा कवच बन के। वतन के वीरों को नमन, जो प्राणों पर सदा खेलें। खड़े, करते निगेहबानी, धूप, वर्षा, शरद झेलें। वतन के वीरों को नमन, जो कुनबा देश को मानें। ज़रूरत देश की हो तो, लुटा दें, छीन लें जानें। वतन के वीरों को नमन, जो पहले देश को रखते। न दें एक इंच भी भूमि, पराजय शत्रुबल चखते। वतन के वीरों को नमन कि जिनके दिल में भारत है। वतन पे जीने मरने की ही केवल दिल में हसरत है। वतन के वीरों को नमन, जो सच्चे देशबन्धु हैं। वतन की रक्षा को तत्पर, वही तो भारतेन्दु हैं। वतन के वीरों को नमन, जो घर को छोड़ कर आते। जो अपनें पारिवारिक रिश्तों में बस देश को पाते। वतन के वीरों को नमन, धर्म ही देश जिनका है। शौर्य, बलिदान में डूबा हुआ परिवेश जिनका है। वतन के वीरों को नमन, भरोसे की निशानी है। मिसालें वीरता की देश ने दुनिया ने जानी है। वतन के वीरों को नमन, जिन्हें जां से वतन प्यारा। जिन्हें पूजे, जिन्हें चाहे, सलामी दे वतन सारा। वतन के वीरों को नमन, है जिनका एक ही अरमां...

चाय होनी चाहिए

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  ┈┉┅━❀꧁꧂❀━┅┉┈ दिनांक: 04/07/2025 चाय होनी चाहिए ┈┉┅━❀꧁꧂❀━┅┉┈ उठते ही सुबह, हैलो हाय होनी चाहिए। एक प्याली हाथ में, चाय होनी चाहिए। सुनने वालों की भी, यही राय होनी चाहिए। गरमागरम खुशबुदार, चाय होनी चाहिए। टेन्शन तमाम हो, या हो रहा जुकाम हो। काली मिर्च, अदरक वाली, चाय होनी चाहिए। मेहमान चार हों, या वर्षा की फुहार हो, मिर्ची के पकौड़े और, चाय होनी चाहिए। ┈┉┅━❀꧁꧂❀━┅┉┈ स्वरचित एवं मौलिक रचना अर्चना श्रीवास्तव नवा रायपुर, छत्तीसगढ़ ┈┉┅━❀꧁꧂❀━┅┉┈

क्या करूँ कि उलझने सुलझती ही नहीं?

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  ┈┉┅━❀꧁꧂❀━┅┉┈ क्या करूँ कि उलझने सुलझती ही नहीं? ┈┉┅━❀꧁꧂❀━┅┉┈ क्या करूँ कि उलझने सुलझती ही नहीं? राह कोई बीच की निकलती ही नहीं। तूने धैर्य को भी आजमाया क्या? तेरे अपनों को भी कुछ बताया क्या? चिन्ता छोड़ चिन्तन किया तूने, खुद को खुद ही रस्ता दिखाया क्या? क्या करूँ कि ज़िन्दगी सरकती ही नहीं? राह कोई बीच की निकलती ही नहीं। क्या करूँ कि उलझने..... क्या भरोसा तुझको ईश पर है? क्या कोई उम्मीद तेरे घर है? हाथ जोड़ कर के मांग माफ़ी, गर कोई गुनाह तेरे सर है। क्या करूँ कि बेड़ियां ये कटती ही नहीं? राह कोई बीच की निकलती ही नहीं। क्या करूँ कि उलझने..... क्या पता कि ये तेरी परीक्षा हो? जिन्दगी की मिलने वाली शिक्षा हो। कोशिशों का साथ पकड़े रहना तू, क्या पता भविष्य और अच्छा हो? क्या करूँ कि मुश्किलें सिमटती ही नहीं? राह कोई बीच की निकलती ही नहीं। क्या करूँ कि उलझने..... हाथ में तेरे है तो फिकर कर। वरना चिन्ता छोड़ सारी उस पर। वो पिता है तुझको उतना देगा, जितना बोझ रख सके तू सिर पर। क्या करूँ कि खुशियां दिल में बसती ही नहीं? राह कोई बीच की निकलती ही नहीं। क्या करूँ कि उलझने..... नाउम्मीदि...

जगत हो ज्योतिर्मयी

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  ┈┉┅━❀꧁꧂❀━┅┉┈ दिनांक: 01/07/2025 शीर्षक: जगत हो ज्योतिर्मयी ┈┉┅━❀꧁꧂❀━┅┉┈ हर कोई प्रसन्न हो। ना कोई विपन्न हो। मन में जो भी हो दिखे, कुछ ना अप्रछन्न हो। सर्वजन विकास हो। ईर्ष्या द्वेष ह्रास हो। जीव के समूल से, शूल का निकास हो। व्यक्ति धीरवान हो। जातिगत समान हो। हो दया हृदय लिए, संस्कारवान हो। प्रेम से ही बात हो। करते नमन हाथ हो। कोई भी कहीं भी कार्य, ना कभी बलात हो। ना कहीं भी लोभ हो। ना हृदय में क्षोभ हो। व्यक्ति जो विकारहीन, वो जगत का शोभ हो। क्रोध का दमन करे। ईश का मनन करे। ऐसे व्यक्ति को अवश्य, व्यक्ति हर नमन करे। त्याग ही स्वभाव हो। वेद का प्रभाव हो। व्यक्ति व्यक्ति से जुड़े, न कहीं दुराव हो। पाप कर्म क्षीण हो। त्याज्य जीर्ण शीर्ण हो। पुण्य का प्रताप हो, पुण्य ही प्रकीर्ण हो। व्यक्ति हो दृढ़ निश्चयी। नारी हो ममतामयी। दोनों के सहयोग से, जगत हो ज्योतिर्मयी। ┈┉┅━❀꧁꧂❀━┅┉┈ स्वरचित मौलिक रचना रामचन्द्र श्रीवास्तव कवि, गीतकार एवं लेखक नवा रा यपुर, छत्तीसगढ़ संपर्क सूत्र: 6263926054 ┈┉┅━❀꧁꧂❀━┅┉┈