नमामी शिव, शिवः, शिवम



 नमामी शिव, शिवः, शिवम


नमामी शिव, शिवः, शिवम, नमामी चन्द्र शेखरं।

हैं आदि अंत से परे, स्वयंभू शिव त्रिलोचनं।

श्री गंगाधर, जगतपिता, त्रिशूल धारी शंकरं।

वो देवों के भी देव हैं, नमामी दिग दिगम्बरं।


हरेक कण में शिव ही हैं, हरेक क्षण में शिव ही हैं।

हरेक तन में शिव ही हैं, हरेक मन में शिव ही हैं।

वो व्याप्त सर्व ओर है, निशा है या कि भोर है।

हृदय दया से पूर्ण है, पर आवरण कठोर है।


गले में सर्प कुण्डली, जटा से गंग है चली।

जो व्यक्ति धर्म युक्त है, करेंगे उसकी शिव भली।

त्रिशूल डमरू धारते, वो दुष्टों को संहारते।

हे भोले, शंभू, नील कंठ, देव पग पखारते।


हृदय वृहद विशाल है, दयालु और कृपाल हैं।

वो देवताओं के भी देव, काल के भी काल हैं।

ये सृष्टि उनसे चल रही, गले गरल धरे वही।

इधर, उधर, यहाँ, वहाँ, बसे वही हैं हर कहीं।


जगत चलायमान है, ये भोले का विधान है।

है शिव का हाथ जिसपे भी, वो बन गया महान है।

नमः शिवाय बोलिए, प्रकाश मार्ग खोलिए।

शरण में शिव की आइए, हृदय को शिव से जोड़िए।


स्वरचित मौलिक रचना

रामचन्द्र श्रीवास्तव

कवि, गीतकार एवं लेखक

नवा रायपुर, छत्तीसगढ़

संपर्क सूत्र: 6263926054

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