वतन के वीरों को नमन


 

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वतन के वीरों को नमन
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वतन के वीरों को नमन, खड़े सीमा पे जो तन के।
हमारी श्वास है उनसे, खड़े रक्षा कवच बन के।

वतन के वीरों को नमन, जो प्राणों पर सदा खेलें।
खड़े, करते निगेहबानी, धूप, वर्षा, शरद झेलें।

वतन के वीरों को नमन, जो कुनबा देश को मानें।
ज़रूरत देश की हो तो, लुटा दें, छीन लें जानें।

वतन के वीरों को नमन, जो पहले देश को रखते।
न दें एक इंच भी भूमि, पराजय शत्रुबल चखते।

वतन के वीरों को नमन कि जिनके दिल में भारत है।
वतन पे जीने मरने की ही केवल दिल में हसरत है।

वतन के वीरों को नमन, जो सच्चे देशबन्धु हैं।
वतन की रक्षा को तत्पर, वही तो भारतेन्दु हैं।

वतन के वीरों को नमन, जो घर को छोड़ कर आते।
जो अपनें पारिवारिक रिश्तों में बस देश को पाते।

वतन के वीरों को नमन, धर्म ही देश जिनका है।
शौर्य, बलिदान में डूबा हुआ परिवेश जिनका है।

वतन के वीरों को नमन, भरोसे की निशानी है।
मिसालें वीरता की देश ने दुनिया ने जानी है।

वतन के वीरों को नमन, जिन्हें जां से वतन प्यारा।
जिन्हें पूजे, जिन्हें चाहे, सलामी दे वतन सारा।

वतन के वीरों को नमन, है जिनका एक ही अरमां।
कि सरहद पर खतम हो, ये कहानी और जिस्म-ओ-जां।

वतन के वीरों को नमन, वतन के वीरों को नमन।
है जिनकी आखिरी इच्छा, तिरंगे में ही लिपटे तन।

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स्वरचित मौलिक रचना
रामचन्द्र श्रीवास्तव
कवि, गीतकार एवं लेखक
नवा रायपुर, छत्तीसगढ़
संपर्क सूत्र: 6263926054
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