हो गर महफिल सजी और मंच पर तुम हो

हो गर महफिल सजी और मंच पर तुम हो,
गजल उम्मीद से लबरेज गा देना।
तुम्हारा नाम भी गूंजे फिजाओं मे,
कुछ ऐसा काम तुम करके दिखा देना।।

बहुत उम्मीद‌ है मां बाप को तुमसे,
न उनका नाम मिटटी में मिला देना।
अगर तुमने किया अहसान लोगों पर,
तो नेकी कर के दरिया में बहा देना।।

बहुत मजलूम भी इन बस्तीयों में हैं,
हो मुमकिन तो उन्हें थोड़ा हँसा देना।
यहाँ कुछ हैं कि जो सोए है सदियों से,
जरा सा शोर कर उनको जगा देना।।

अगर मिलना हो मुझसे इतना बस करना,
कि मेरा नाम लोगों को बता देना।
जनाजा ही फकत सच है जमाने में,
हो जिंदा जब तलक सबको दुआ देना।।

बहुत मुश्किल से होता है यकीं हासिल,
किसी को जिन्दगी में ना दगा देना।
बहुत रोड़े पड़े हैं तेरी राहों मे,
उन्हें सीखो मुहब्बत से हटा देना।।

यही अच्छा कि बातों से सुलझ जाए,
बहुत आसान शोलों को हवा देना।।
किसी की जिन्दगी का नूर गर तुम हो,
तो उसको भूलकर भी ना भुला देना।।

मुआफी भी तो होती है जमाने में,
जरूरी तो नहीं सबको सजा देना।
जिन्होंने अब तलक पाला तुम्हें देकर के खूँ,
नहीं अच्छा उन्हें घर से भगा देना।।

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