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अपने हृदय से पूछ लो

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  **अपने हृदय से पूछ लो** अपने हृदय से पूछ लो, खुद से, धोखा तो, नही कर रहा। जो गलत है उसे सही समझ, कहीं उसी, राह तो, नही चल रहा। जिसे अपना स्वार्थ समझ रहा, कहीं वही, उसे तो, नही छल रहा। जिसके लिए धड़क रहा दिल, वह कहीं, और तो, नहीं टहल रहा। रौशनी जहां से ढूंढ रहे हो, दीपक कहीं, वहां से दूर तो, नहीं जल रहा। पकड़ कर जिसे रक्खे हो मुट्ठी में, कहीं रेत की, तरह तो, ना फिसल रहा। अरमान तुम्हारे महफूज है ? कहीं मोमबत्ती, की तरह तो, न पिघल रहा। तसल्ली कर लो एक बार राह की, कहीं गलत, राह पर तो, नहीं चल रहा। ✍️ विरेन्द्र शर्मा

अति उत्साह में

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  **अति उत्साह में** अति उत्साह में, बहुत कुछ,  अक्सर बोल, जाते हैं लोग। गलत या सही, ठीक ठीक,  न तौल, पाते हैं लोग। ना जाने, गमले में बरगद, भला क्यो, उगाते हैं लोग। राजनीति में, खाने दिखाने, के अलग अलग, दांत होते। इतनी सी बात, भी क्यों, समझ नहीं, पाते हैं लोग। प्राण भी अपना, न्यौछावर, करने को, आतुर हैं लोग। कौड़ियों के मोल, बिक रही, शहादत, सरे बाजार अब तो।  शहादत की कद्र, पर क्यों, कर नही, पाते हैं लोग। ✍️ विरेन्द्र शर्मा

तो फिर हम सब एक हैं

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  दिल में हिंदुस्तान अगर हो। सर्वधर्म सम्मान अगर हो। भारत का जयगान अगर हो। देशप्रेम अरमान अगर हो। तो फिर हम सब एक हैं। सबसे सद्व्यवहार अगर हो। प्यार, प्रेम दरकार अगर हो। झगड़ा ना बेकार अगर हो। सच के पैरोकार अगर हों। तो फिर हम सब एक हैं। हृदय तरलता लिए अगर हो। मनुज सरलता लिए अगर हो। न कोई गरलता लिए अगर हो। भलमानसता लिए अगर हो। तो फिर हम सब एक हैं। सहयोगी सा भाव अगर हो। आपस में सद्भाव अगर हो। राष्ट्रप्रेम का स्राव अगर हो। हिलमिलने का चाव अगर हो। तो फिर हम सब एक हैं। मीठे सबके बोल अगर हों। मानवता का मोल अगर हो। ठठ्ठा, हँसी, मखौल अगर हो। बातें करते तोल अगर हों। तो फिर हम सब एक हैं। अंगुली थामे हाथ अगर हो। सबको मिलता साथ अगर हो। सबकी मानुष जात अगर हो। सबसे सबकी बात अगर हो। तो फिर हम सब एक हैं। हंसते सभी गरीब अगर हों। कोई ना बदनसीब अगर हो। जोड़े जन को जीभ अगर हो। सबके सभी करीब अगर हों। तो फिर हम सब एक हैं। आरक्षण की आग जल रही। कैसे हम सब एक बताओ? जात पात की हवा चल रही। कैसे हम सब एक बताओ? यहां मजहबी जंग चल रही। कैसे हम सब एक बताओ? मानवता अब तंग चल रही। कैसे हम सब एक बताओ? निर...

झट यकीं न करो

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  **झट यकीं न करो** कोई तस्वीर देख कर,  झट यकीं न करो। आवाज भी सुनकर, झट यकीं न करो। चलचित्र देखकर भी,  झट यकीं न करो। धोखे का जमाना है,  किसी धोखे, में न पड़ो। किसी के मरने की झूठी, खबर उड़ा, देते हैं अब लोग। मुर्दे को भी, चलता फिरता,  दिखा, देते हैं अब लोग। तहकीकात कर लो पूरी, खबर साझा, करने से पहले। फरेब का जमाना है, अपनी आंखे, खुली रखो। आंख बंद कर,किसी पर भी,  झट यकीं न करो। ✍️ विरेन्द्र शर्मा

मन

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  **मन** बड़ा  ही   चंचल, होता  है  मन, नित्य  विचरते,  रहता   है  मन। सोने  पर  भी, शांत   न   होता, सपनो  में  भी,भटकता  है मन। इसे   साधना, बड़ा  ही  दुष्कर, द्रुत  गति  से,  चलता   है  मन। एक  जगह  यह, टिक  ना पाए, करले  कोई,कितना भी साधन। मन  का   रिश्ता, सांसों  से  है, ऋषियों   ने,   यह    बतलाया। सांस  सधे  तो, मन  सध जाए, ध्यान    योग,   जो    अपनाए। सांसों    के,  आवागमन    पर, सूक्ष्म   नियंत्रण, करना  होगा। ध्यान  योग  में, बैठ  के  स्थिर, शांत  चित्त  को, करना  होगा। सांसें  बंधी तो, मन  बंध  जाय, मन  बंधे  तो, सांसें  बंध जाय। एक  सधे तो, दोनो  सध जाय, मन   साधन  का, यही  उपा...

टीस

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  . **टीस** पोता आया था वर्षों, बाद गांव अपने, अकेले रहने वाले, दादा दादी से मिलने। साथ बचपन की सारी,यादों का साया, दूर विलायत से, उड़कर था आया। यादों में, ताल तलैया थी, ठंडी छांव वाली, अमरैया थी। गलियों की, भूल भुलैया थी, वो सपनो की, छैयां भुईया थी। मम्मी पापा चाचा चाची, दीदी भैया, बुआ स्वीटी। घर लगता था तब, सपनो के घर जैसा, अब लगता मानो,वो सपनो का घर ही था। अब दादा दादी, दो ही प्राणी, बड़े से घर में काट, रहे जिंदगानी। दादा दादी, घर के एक कोने में, सिमट के रह गए, अपने बिछौने में। एक एक कदम भी चलना, उनको है भारी, पर घर में रहना, शायद उनकी है लाचारी। देख पोते का मन, हुआ बड़ा विव्हल, दुख से अश्रुधारा, अनवरत बहा निकल। दादा ने पोते को, पास बिठाया, बड़े प्यार से, सिर को सहलाया। किस बात को लेकर, रोते हो तुम, क्यों व्यर्थ, दोष पिता को देते हो तुम। जैसे भी रह रहे हैं, अब रहने दो हमको, वानप्रस्थ सा जीवन, जीने दो ...

मुझे लिखने की आदत है

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  **मुझे लिखने की आदत है** मुझे लिखने की आदत है, मगर सब, लिख नहीं सकता। मगर मैं क्या, करूं लिक्खे, बिना भी, रह नहीं सकता। जो आता दिल में, लिख जाता,  हूं जज्बा ए, हकीकत को। कभी दुनिया, की नजरों से, या खुद को, जो सही लगता। कोई तो मन, ही मन घुटता, सजा वो खुद, को देता है। निगाहें बोल, जातीं पर, जुबां से कुछ, नहीं कहता। जुबां हो या, निगाहें हों, जज्बा ए इजहार , करने की। मैं घोल, दोनों को पी लेता हूं, सब कागज में, लिख नहीं सकता। मुझे लिखने की आदत है, मगर सब, लिख नहीं सकता। ✍️ विरेन्द्र शर्मा

कुंडली

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  ****कुंडली!!**** बिटिया के लिए रिश्ता आया,                           मां ने पंडित को बुलवाया। बोली पंडित जी बांचे तो,                         कुंडली लड़के की जांचें तो।। जब कुंडलियों का मिलान हुआ,                         देख पंडित जी हैरान हुआ। मां पूछी दिखती है कुछ चिंता,                      क्या कुंडली इनका नहीं मिलता।। नहीं ऐसी बात नहीं है जी,                     छत्तीस गुण मिलती हैं इनकी। बस चिंता मुझको व्यापी है,            गुण इनका जेरॉक्स की फोटो कॉपी है।। ऐसे में इनकी निभेगी कैसे,                        गृहस्थी की गाड़ी चलेगी कैसे। जो समझ यहां मैं पाता हूं,  ...

बुराईयां सब खर्च कर दी

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 **बुराईयां सब खर्च कर दी** बुराइयां सब, खर्च कर दी, अब बची है, सिर्फ अच्छाइयां। गर्दिशें गम की, रहीं ना, अब रही न कोई, तन्हाईयां। बसंत की, बहारें हैं बिखरी, कोई बंदिश न, मेरे वास्ते। बेड़ियां, खुल गईं हैं सारी, खुल गए हैं, सारे रास्ते। बह रही है मगन, प्रेम की, निर्मल सरिता, अपनी प्रवाह में। चाहतों की न, फेहरिस्त कोई, अब फूल बिखरे हैं, सारे राह में। उन्मुक्त सा ये, मन विचरता, किसी की कहां, कोई परवाह है। पा गया हूं, जब से खुद को, अब रहा न, कोई चाह है। ✍️ विरेन्द्र शर्मा

जो राम वनवास न जाते तो

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 ** जो राम वनवास न जाते तो ** यदि माता कैकेयी, ना होती, तो राम वनवास, नहीं जाते। ना ही सीता, हरण हुआ होता, ना रावण ही, मारा जाता। ऐसी बहुत सी भ्रांतियां, बहुधा, मानव मन में, लगा उठने। समझ में जिसकी, जो आया, अपनी अपनी सोच, रखा उसने। कृष्ण ने कहा, सुनो अर्जुन, जो कहते युद्ध नहीं, करोगे तुम। तब भी सब, मारे जायेंगे, किसी भ्रम में नहीं, पड़ो ना तुम। भगवदगीता का, हरेक शब्द, ब्रह्म से निकला, ज्ञान है। होनी तो पहले से, तय होता, कर्म प्रेरणा से, होता संज्ञान है। यदि राम, वनवास नहीं जाते, तो राजा राम, मृगया को जाते। तब भी, सीता हरण होता, रावण फिर भी, मारा जाता। पर वानर और, वन वासियों को, राम का अभिराम, कहां मिलता। ऋषि मुनि तपस्वियों को, अरण्य में, प्रभु दर्शन कहां, सुलभ होता। ईश्वर आते, अपने भक्तों की, ऋषि मुनियों की, त्राण मिटाने को। मानवता का, पाठ पढ़ाने को, जीवों में ...

ये चेहरे

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  **ये चेहरे** कुछ   चेहरों  ने, मुझे  रुलाया है, कुछ  चेहरों  ने, बहुत  हंसाया है। कुछ  चेहरों  ने, बहुत  डराया  है, कुछ चेहरों  ने, आस बंधाया  है। कुछ चेहरों से, बड़ा  खौफ होता, कुछ   चेहरे,   अपने   से  लगते। कुछ  चेहरे, जाने पहचाने लगते, कुछ  जान  के, अनजाने  लगते। कुछ  चेहरे  तो, दर्पण  से लगते, कुछ   पत्थर के, बुत  से  लगते। कुछ  चेहरे,  जीवंत  से  दिखते, कुछ चेहरे,  सदा उदास दिखते। कुछ    चेहरे,  रौबदार    दिखते, कुछ   चेहरे,  वीभत्स  से लगते। कुछ     चेहरे,  राजदार   लगते, कुछ    चेहरे,  दिव्य   से  लगते। कुछ   चेहरे,  प्यारे   से   लगते, कुछ   चेहरे,  न्यारे   से   लगते। कुछ  चेहरे, बड़े  सौम्य  दिखते, कु...

पानी की पुकार

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  पानी की पुकार पानी-पानी करती धरती, सूखा पड़ा हर गाँव, बूंद-बूंद को तरस रहे हम, कौन सुनेगी आवाज़? कुएं-तालाब सूख गए सब, नदियां भी अब मौन, गहराई में खो गया जीवन, किस ओर बढ़े यह कौन? बूंद-बूंद जब सोना थी, तब हमने इसे बहाया, अब 1100 फीट में भी सूखा, हमने क्या पाया? संभलो अभी भी वक़्त है, जल को बचाने का, वरना कल पछताओगे, प्यास बुझाने का। धरती माँ की गोद बचाओ, पानी को सम्मान दो, सहेज लो हर बूंद को अब, जीवन को वरदान दो।

मन

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  **मन** इस मन रूपी पतंग का, कोई ओर है, ना छोर। उड़ान इतनी, ऊंची है इसकी, मैं बांधूं , कहां से डोर। डोलता रहता, इधर उधर, स्थिर नहीं, इसकी डगर। हिलोरें मारता, रहता सदा, भटकता रहता, है चहुओर। इतना चरता है, विचरता है, पर सदा अतृत्प, रहता है। रुकना कभी, न जानता, न टिकता, कभी इक ठौर। मन का नियंत्रण, कहते, सांसों से ही, होता सदा। सांसें यदि, सध जाएं तो, सध जाए, मन का मोर। नृत्य फिर, ये मन करेगा, मन नियंत्रण, में रहेगा। वश में हुआ, जो मन अगर, खुद मिल जायेंगे, चितचोर। ✍️ विरेन्द्र शर्मा