मुझे लिखने की आदत है

 


**मुझे लिखने की आदत है**


मुझे लिखने की आदत है,

मगर सब, लिख नहीं सकता।

मगर मैं क्या, करूं लिक्खे,

बिना भी, रह नहीं सकता।


जो आता दिल में, लिख जाता, 

हूं जज्बा ए, हकीकत को।

कभी दुनिया, की नजरों से,

या खुद को, जो सही लगता।


कोई तो मन, ही मन घुटता,

सजा वो खुद, को देता है।

निगाहें बोल, जातीं पर,

जुबां से कुछ, नहीं कहता।


जुबां हो या, निगाहें हों,

जज्बा ए इजहार , करने की।

मैं घोल, दोनों को पी लेता हूं,

सब कागज में, लिख नहीं सकता।


मुझे लिखने की आदत है,

मगर सब, लिख नहीं सकता।


✍️ विरेन्द्र शर्मा

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

आज, अभी नशे का सामान छोड़ दीजिए

पत्रकारों के लिए विशेष रचना

सबके पास कुछ ना कुछ सुझाव होना चाहिए।