तो फिर हम सब एक हैं
दिल में हिंदुस्तान अगर हो।
सर्वधर्म सम्मान अगर हो।
भारत का जयगान अगर हो।
देशप्रेम अरमान अगर हो।
तो फिर हम सब एक हैं।
सबसे सद्व्यवहार अगर हो।
प्यार, प्रेम दरकार अगर हो।
झगड़ा ना बेकार अगर हो।
सच के पैरोकार अगर हों।
तो फिर हम सब एक हैं।
हृदय तरलता लिए अगर हो।
मनुज सरलता लिए अगर हो।
न कोई गरलता लिए अगर हो।
भलमानसता लिए अगर हो।
तो फिर हम सब एक हैं।
सहयोगी सा भाव अगर हो।
आपस में सद्भाव अगर हो।
राष्ट्रप्रेम का स्राव अगर हो।
हिलमिलने का चाव अगर हो।
तो फिर हम सब एक हैं।
मीठे सबके बोल अगर हों।
मानवता का मोल अगर हो।
ठठ्ठा, हँसी, मखौल अगर हो।
बातें करते तोल अगर हों।
तो फिर हम सब एक हैं।
अंगुली थामे हाथ अगर हो।
सबको मिलता साथ अगर हो।
सबकी मानुष जात अगर हो।
सबसे सबकी बात अगर हो।
तो फिर हम सब एक हैं।
हंसते सभी गरीब अगर हों।
कोई ना बदनसीब अगर हो।
जोड़े जन को जीभ अगर हो।
सबके सभी करीब अगर हों।
तो फिर हम सब एक हैं।
आरक्षण की आग जल रही।
कैसे हम सब एक बताओ?
जात पात की हवा चल रही।
कैसे हम सब एक बताओ?
यहां मजहबी जंग चल रही।
कैसे हम सब एक बताओ?
मानवता अब तंग चल रही।
कैसे हम सब एक बताओ?
निर्धन, धनवानों की खाई।
कैसे हम सब एक बताओ?
आपस में कर रहे बुराई।
कैसे हम सब एक बताओ?
लोग खा रहे गलत कमाई।
कैसे हम सब एक बताओ?
भाई पर टूटा है भाई।
कैसे हम सब एक बताओ?
तो फिर हम सब एक नहीं हैं।
खरी खरी यह बात सही है।
आज "राम" ने यही कही है।
लगता हम सब एक नहीं हैं।
अगर मेरी यह बात बुरी है।
सीने में लग रही छुरी है।
विनती है मुझको समझाओ।
कैसे हम सब एक बताओ?
स्वरचित
रामचन्द्र श्रीवास्तव
रायपुर, छत्तीसगढ़
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