बुराईयां सब खर्च कर दी
**बुराईयां सब खर्च कर दी**
बुराइयां सब, खर्च कर दी,
अब बची है, सिर्फ अच्छाइयां।
गर्दिशें गम की, रहीं ना,
अब रही न कोई, तन्हाईयां।
बसंत की, बहारें हैं बिखरी,
कोई बंदिश न, मेरे वास्ते।
बेड़ियां, खुल गईं हैं सारी,
खुल गए हैं, सारे रास्ते।
बह रही है मगन, प्रेम की,
निर्मल सरिता, अपनी प्रवाह में।
चाहतों की न, फेहरिस्त कोई,
अब फूल बिखरे हैं, सारे राह में।
उन्मुक्त सा ये, मन विचरता,
किसी की कहां, कोई परवाह है।
पा गया हूं, जब से खुद को,
अब रहा न, कोई चाह है।
✍️ विरेन्द्र शर्मा
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें