पानी की पुकार

 


पानी की पुकार


पानी-पानी करती धरती, सूखा पड़ा हर गाँव,

बूंद-बूंद को तरस रहे हम, कौन सुनेगी आवाज़?


कुएं-तालाब सूख गए सब, नदियां भी अब मौन,

गहराई में खो गया जीवन, किस ओर बढ़े यह कौन?


बूंद-बूंद जब सोना थी, तब हमने इसे बहाया,

अब 1100 फीट में भी सूखा, हमने क्या पाया?


संभलो अभी भी वक़्त है, जल को बचाने का,

वरना कल पछताओगे, प्यास बुझाने का।


धरती माँ की गोद बचाओ, पानी को सम्मान दो,

सहेज लो हर बूंद को अब, जीवन को वरदान दो।

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