अति उत्साह में


 

**अति उत्साह में**


अति उत्साह में, बहुत कुछ, 

अक्सर बोल, जाते हैं लोग।


गलत या सही, ठीक ठीक,

 न तौल, पाते हैं लोग।


ना जाने, गमले में बरगद,

भला क्यो, उगाते हैं लोग।


राजनीति में, खाने दिखाने,

के अलग अलग, दांत होते।


इतनी सी बात, भी क्यों,

समझ नहीं, पाते हैं लोग।


प्राण भी अपना, न्यौछावर,

करने को, आतुर हैं लोग।


कौड़ियों के मोल, बिक रही,

शहादत, सरे बाजार अब तो। 


शहादत की कद्र, पर क्यों,

कर नही, पाते हैं लोग।


✍️ विरेन्द्र शर्मा

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