फिर भी क्यों लगता है ऐसा कष्ट मेरा सबसे भारी।

 


तेरे हृदय में दावानल है,

मेरे हृदय में चिंगारी।

फिर भी क्यों लगता है ऐसा

कष्ट मेरा सबसे भारी।


परमेश्वर ने एक समान ही

सबको नैमत दी लेकिन,

रात वही है, किसी की रौशन

और किसी की अंधियारी।


फिर भी क्यों लगता है ऐसा

कष्ट मेरा सबसे भारी।


फल कर्मों का ही मिलता है,

इन्सान को इस धरती पर,

कोई दुखी है निज कर्मों से,

कोई उसका आभारी।


फिर भी क्यों लगता है ऐसा

कष्ट मेरा सबसे भारी।


हर इन्सान का अलग नजरिया

इस जीवन के बारे में,

कोई है आध्यात्म में खोया,

कोई यहाँ पर संसारी।


फिर भी क्यों लगता है ऐसा

कष्ट मेरा सबसे भारी।

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