वो जो इक शर्त थी वहशत की, उठा दी गई क्या।
वो जो इक शर्त थी वहशत की, उठा दी गई क्या |
चेहरे से बेशर्म आँखें, झूठी हँसी, हटा दी गई क्या |1|
वो नजरें जो देखती थी, दरिन्दगी और वहशत से,
उन नजरों को उनकी औकात, दिखा दी गई क्या |2|
वो जो हमारे बीच पर्दा, पर्दा सा कायम था कभी,
हमारे बीच की वो दीवार, कहाँ है, गिरा दी गई क्या |3|
उन गरीब, मज़बूर, मजदूरों की चीखें अब नही आती,
कहाँ है वो, उनकी बेबस आवाज़, दबा दी गई क्या |4|
अब नही दिखती सच्चाई और ईमानदारी की तस्वीरें,
वो तस्वीरें, जरूरतों की लहर में, बहा दी गई क्या |5|
ऐ “राम” इन्सानियत की तलाश है, मिलती ही नही,
क्यों, दुनिया की सारी इन्सानियत, जला दी गई क्या |6|
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