मैं क्यों हूँ तमाशा औ वक़्त तमाशाई है।

 



ऐ जिंदगी, बता, ये कैसी पशोपेश है,

मैं क्यों हूँ तमाशा औ वक़्त तमाशाई है।

दुनिया तमाशबीन है, तू खेल बन गयी,

अरमान दिल का एक-एक धराशाई है।


किस्मत कहे है कुछ लकीर-ए-दस्त कुछ कहे,

इससे अलहदा मेहनत-परस्त कुछ कहे,

ख्वाबों के महल में कोई तारीक है लिए,

और हक़ीकत की झोपड़ी में रोशनाई है।


ऐ जिंदगी, बता, ये कैसी पशोपेश है,

मैं क्यों हूँ तमाशा औ वक़्त तमाशाई है।


मैं हूँ बशर, हुआ हूँ कई बार दर-ब-दर,

बेशक़ है दूर मुझसे मेरी मंज़िल औ डगर,

जारी है बदस्तूर फिर भी मंज़िल-ए-सफ़र,

मैं देखता हूँ वक्त कितना आतताई है।


ऐ जिंदगी, बता, ये कैसी पशोपेश हैं,

मैं क्यों हूँ तमाशा औ वक़्त तमाशाई है।


नाशुक्र ना हो "राम" कभी आशनाई में,

ना डूब किसी की वफ़ा की बेवफ़ाई में,

ना हार मान ज़िंदगी की इस लड़ाई में,

वर्ना तेरी खातिर तो सिर्फ़ जगहंसाई है।


ऐ जिंदगी, बता, ये कैसी पशोपेश है,

मैं क्यों हूँ तमाशा औ वक़्त तमाशाई है।

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