जिंदगी की जलालत औ बेआबरू।

औ बेआबरू।
देखकर मैं हुआ,
खुद से ही जर्द-रू।।
मैने खुद को,
तलाशा था खुद में कहीं।
अब नया अक्स मेरा,
मेरे रूबरू।।
दिल में थोड़ा सा डर था,
कहीं फिक्र सा।
क्योंकि चारों तरफ था,
मेरा जिक्र सा।।
ऐसे बेदर्द, गमगीन,
माहौल में।
पूछता था ये दिल,
मुझसे मैं क्या करूं।।
जिंदगी की जलालत
औ बेआबरू।
देखकर मैं हुआ,
खुद से ही जर्द-रू।।
मैंने खुद को सम्हाला है,
मुश्किल से पर।
अब मैं तैयार हूं,
पीने को हर जहर।।
अब न कोने में
छिपकर के बैठूंगा मैं।
मैं खबरदार हूं,
बेवजह क्यूं डरूं।।
जिंदगी की जलालत
औ बेआबरू।
देखकर मैं हुआ,
खुद से ही जर्द-रू।।
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