उठने लगा जनाज़ा इन्सानियत का यारों।
उठने लगा जनाज़ा
इन्सानियत का यारों।
चारों तरफ नज़ारा
हैवानियत का यारों।
सस्ती है ज़िन्दगी,
सस्ता है आदमी,
अब मोल बढ़ गया है
मरहुमियत का यारों।
उठने लगा जनाज़ा
इन्सानियत का यारों।
इन्सान बन गया है
वहशी और दरिंदा,
गुज़रा है अब ज़माना
मासूमियत का यारों।
उठने लगा जनाज़ा
इन्सानियत का यारों।
अहसास मर गए हैं,
ज़ज्बात मर गए,
अब दौर चल रहा है
बेईमानियत का यारों।
उठने लगा जनाज़ा
इन्सानियत का यारों।
अब "राम" कह रहा है
कैसे रहूँ मै जिंदा,
लौट आए फिर ज़माना
रूमानियत का यारों।
उठने लगा जनाज़ा
इन्सानियत का यारों।
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