घर

 


******घर*****

एक मेहमान आया,

घर का माहौल,

सबका प्रेम व्यवहार

उसे बड़ा भाया।


उसके मन में अनायास,

कहीं से ये विचार आया

अपनी सोच,अपने हिसाब से

उन्होंने जतलाया।


बोला भाई साहब!

आप सब के प्रेम में,

एक अलग ही बात है।

आप सभी अभी तक

रहते साथ साथ हैं।

वैसे तो ये बहुत बड़ी 

और बहुत अच्छी बात है।


पर आपके परिवार का

आकार बढ़ने लगा है,

इस दृष्टिकोण से,

अब ये घर आपके हिसाब से

छोटा पड़ने लगा है।


सोचिए कितना अच्छा होता

जो सबका अपना अपना

एक अलग घर होता।


भाई साहब ने बड़ी 

सहजता से समझाया।

मित्र आपने तो वैसे

बड़ा दुरुस्त फरमाया।


पर यह बात आपकी 

समझ क्यों नही आया?

इस पर भी जरा

 गौर कीजिए कि,

यदि सबका,

अपना अपना घर होता,

तो क्या ये घर

ऐसा ही घर होता ??


✍️ विरेन्द्र शर्मा "अवधूत"

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