सब इंद्रियों से परे परमात्मा



 **सब इंद्रियों से परे परमात्मा**


प्रकृति   में   बसा   हर   आकृति   है,
              मानव   भी   उसकी   एक   कृति  है।
हम    सोचें    श्रेष्ठ    हमीं    सब   से,
                शायद     ये    हमारी    दुष्कृति    है।

सब  जीवों  का  अपना  जगत  अलग,
              सबका    अपना   अपना    संसार  है।
अपना   सबका    दृष्टिकोण     अलग,
               हम क्यों समझें अपना एकाधिकार है।

एक   ही   ईश्वर   है  सब   जीवों  का,
              सब   उन्हीं  को   भजा   करते   होंगे।
हम  मानव  ईश्वर को मानव रूप देखें,
               बाकी    भी    स्वरूप   देखते   होंगे।

इसलिए   सृष्टि    को   समझ   पाना,
               मानव  मन  के  बस  की  बात  नहीं।
सब   इंद्रियों   से   परे  हैं   परमात्मा, 
              कण कण  में  सर्वत्र  हैं  व्याप्त  वही।

✍️ विरेन्द्र शर्मा "अवधूत"

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

आज, अभी नशे का सामान छोड़ दीजिए

पत्रकारों के लिए विशेष रचना

सबके पास कुछ ना कुछ सुझाव होना चाहिए।