नीरजा भनोट… 360 लोगों की जान बचाने वाली भारतीय विमान परिचारिका जिसे भारत सरकार द्वारा मरणोपरांत अशोक चक्र प्रदान कर सम्मानित किया गयाl (जन्म दिवस पर विशेष)
नीरजा भनोट… 360 लोगों की जान बचाने वाली भारतीय विमान परिचारिका जिसे भारत सरकार द्वारा मरणोपरांत अशोक चक्र प्रदान कर सम्मानित किया गया। (जन्मदिवस पर विशेष)
नीरजा भनोट मुंबई के पैन ऍम एयरलाइन्स की परिचारिका थी और 5 सितम्बर 1986 को हाईजैक हुए पैन ऍम फ्लाइट 73 में यात्रियों की सहायता एवं सुरक्षा करते हुए वह आतंकवादियों की गोलियों का शिकार हो गयी थीl उनकी इस बहादुरी के लिये उन्हें भारत सरकार ने शांति काल के अपने सर्वोच्च वीरता पुरस्कार अशोक चक्र से सम्मानित किया।
आइये जानते हैं हमारी जबानी, नीरजा भनोट की कहानी।
नीरजा भनोट का संक्षिप्त परिचय
नीरजा भनोट का जन्म भारत के चंडीगढ़ में 7 सितंबर 1963 को हुआl उनकी माता का नाम रमा भनोट और पिता का नाम हरीश भनोट थाl हरीश भनोट द हिंदुस्तान टाइम्स मुबई में पत्रकारिता के क्षेत्र में कार्यरत थेl नीरजा भनोट की प्रारंभिक शिक्षा अपने गृहनगर चंडीगढ़ के सेक्रेड हार्ट सीनियर सेकेंडरी स्कूल में हुईl
नीरजा भनोट का विवाह वर्ष 1985 में संपन्न हुआ और वह पति के साथ खाड़ी देश को चली गयी लेकिन किन्हीं कारणों वश उनकी शादी कुछ ज्यादा दिनों तक नहीं चल सकी और उनका तलाक हो गयाl तलाक हो जाने के बाद वे मुंबई वापस आ गयींl मुंबई आने के बाद उन्होंने पैन ऍम 73 में विमान परिचारिका की नौकरी के लिये आवेदन किया और चुने जाने के बाद मियामी में ट्रेनिंग के बाद वापिस लौटी और अपनी नौकरी पुरी ईमानदारी के साथ करने लगीl उसके बाद उनका काम काफी अच्छे से चल रहा था और वे वहां की सीनियर पर्सर भी थी लेकिन 1986 में एक ऐसी घटना घटी कि जो कि आज भी उस दौर के लगभग हर इंसान को याद रहती हैl पाकिस्तान के लाहौर में विमान पैन ऍम-73 एयरपोर्ट पर खड़ा हुआ था तभी आतंकवादियों ने उस विमान को हाईजेक कर लियाl
विमान अपहरण की घटना।
मुम्बई से न्यूयॉर्क के लिये रवाना पैन ऍम-73 को कराची में चार आतंकवादियों ने अपहृत कर लिया और सभी यात्रियों को बंधक बना लिया। नीरजा उस विमान में सीनियर पर्सर के रूप में नियुक्त थीं और उन्हीं की तत्काल सूचना पर चालक दल के तीन सदस्य विमान के कॉकपिट से तुरंत सुरक्षित निकलने में कामयाब हो गये। पीछे रह गयी सबसे वरिष्ठ विमानकर्मी के रूप में नीरजा भनोट, जिनके कन्धों पर यात्रियों की सुरक्षा की जिम्मेदारी थीl जब 17 घंटों के बाद आतंकवादियों ने यात्रियों की हत्या शुरू कर दी और विमान में विस्फोटक लगाने शुरू किये तब तक नीरजा भनोट विमान का इमरजेंसी दरवाजा खोलने में कामयाब हो चुकी थी और यात्रियों को सुरक्षित निकलने का रास्ता मुहैय्या करा दिया था।
वे चाहतीं तो दरवाजा खोलते ही खुद पहले कूदकर निकल सकती थीं किन्तु उन्होंने ऐसा न करके पहले यात्रियों को निकालने का प्रयास कियाl आखरी में जब निरजा भनोट उस प्लेन से बाहर निकल रही थी तो उन्होंने देखा कि 3 बच्चे उस प्लेन में फँस चुके थे और उन को वहाँ से बाहर निकालने वाला कोई भी नहीं था इसलिए उन्होंने उन तीनों बच्चों को बाहर निकालने की कोशिश की और इसी कोशिश में तीनों बच्चों को निकालते हुए जब एक आतंकवादी ने बच्चों पर गोली चलानी चाही तो नीरजा भनोट नें बीच में आकर उस आतंकवादी से मुकाबला कियाl बच्चों को बचाने के लिए उस आतंकवादी से मुकाबला करते वक्त उस आतंकवादी की गोलियों की बौछार से नीरजा भनोट की मृत्यु हो गई। अगर नीरजा भनोट चाहती तो सब से आगे निकल कर अपनी जान बचा सकती थी लेकिन नीरजा भनोट ने ऐसा कुछ भी नहीं किया क्योंकि वह अपने सभी यात्रियों की जान बचाना चाहती थीl नीरजा भनोट ने अपनी जान की परवाह ना करते हुए 360 लोगों की जान बचाईl नीरजा भनोट के इस वीरतापूर्ण आत्मोत्सर्ग ने उन्हें अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर हीरोइन ऑफ हाईजैक के रूप में प्रसिद्धि दिलाई।
नीरजा भनोट को मरणोपरांत राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय सम्मान प्राप्त हुए।
नीरजा भनोट के बलिदान के बाद भारत सरकार ने उनको सर्वोच्च नागरिक सम्मान 'अशोक चक्र' प्रदान किया तो वहीं पाकिस्तान की सरकार ने भी नीरजा को 'तमगा-ए-इन्सानियत' प्रदान किया। नीरजा भनोट वास्तव में स्वतंत्र भारत की महानतम विरांगना थीं। सन 2004 में नीरजा भनोट के सम्मान में डाक टिकट भी जारी किए गए। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नीरजा का नाम 'हीरोइन ऑफ हाईजैक' के तौर पर मशहूर है। वर्ष 2005 में अमेरिका ने उन्हें 'जस्टिस फॉर क्राइम अवार्ड' दिया।
नीरजा भनोट के पुरस्कार –
1. अशोक चक्र, भारत
2. फ्लाइट सेफ्टी फाउंडेशन हेरोइस्म अवार्ड, USA
3. जस्टिस फॉर क्राइम अवार्ड, यूनाइटेड स्टेट (कोलंबिया)
4. विशेष बहादुरी पुरस्कार, यूनाइटेड स्टेट (जस्टिस विभाग)
5. तमगा-ए-इंसानियत, पकिस्तान
नीरजा भनोट के निःस्वार्थ बलिदान को हमेशा याद रखा जाएगा।
नीरजा भनोट की स्मृति में मुम्बई के घाटकोपर इलाके में एक चौराहे का नामकरण किया गया है जिसका उद्घाटन 90 के दशक में हिंदी फ़िल्मों के विख्यात अभिनेता अमिताभ बच्चन ने किया था। इसके अलावा उनकी स्मृति में एक संस्था 'नीरजा भनोट पैन ऍम न्यास' की स्थापना भी हुई है जो उनकी वीरता को स्मरण करते हुए महिलाओं को अदम्य साहस और वीरता हेतु पुरस्कृत करती है। उनके परिजनों द्वारा स्थापित यह संस्था प्रतिवर्ष दो पुरस्कार प्रदान करती है जिनमें से एक विमान कर्मचारियों को वैश्विक स्तर पर प्रदान किया जाता है और दूसरा भारत में महिलाओं को विभिन्न प्रकार के अन्याय और अत्याचार के खिलाफ़ आवाज़ उठाने और संघर्ष के लिये प्रदान किया जाता है। प्रत्येक पुरस्कार की धनराशि 1,50,000 रुपये है और इसके साथ पुरस्कृत महिला को एक ट्रॉफी और स्मृतिपत्र दिया जाता है। महिला अत्याचार के खिलाफ़ आवाज़ उठाने के लिये प्रसिद्ध हुई राजस्थान की दलित महिला भंवरीबाई को भी यह पुरस्कार प्रदान किया गया था।
नीरजा भनोट के इस साहसिक कार्य और उनके बलिदान को याद रखने के लिये उन पर आधारित फ़िल्म निर्माण की घोषणा वर्ष 2010 में ही हो गयी थी परन्तु किन्हीं कारणों से यह कार्य टलता रहा आखिरकार अप्रैल 2015 में यह खबर आयी कि राम माधवानी के निर्देशन में इस फ़िल्म की शूटिंग शुरू हुई है। इस फ़िल्म में नीरजा का किरदार अभिनेत्री सोनम कपूर द्वारा अदा किया गया है। यह फ़िल्म 19 फ़रवरी 2016 को रिलीज हुई है और इसका नाम भी “नीरजा” ही है।
आशा है कि हमारी वर्तमान और आने वाली पीढ़ी नीरजा भनोट के साहसिक एवं अप्रतिम कार्यों से अनवरत प्रेरणा प्राप्त करती रहेगीl
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें