काका हाथरसी (जन्मदिवस एवं पुण्यतिथि दोनों पर विशेष)



काका हाथरसी

 

काका हाथरसी का वास्तविक नाम प्रभुलाल गर्ग था लेकिन इस नाम से शायद ही कुछ लोग उन्हें जानते हों इनके पिता का नाम शिवलाल गर्ग एवं माता का नाम बरफी देवी था इन्होनें हास्य एवं सम सामयिक विषयों पर अपनी लेखनी चलाई परन्तु इन्हें विशेष पहचान मिली इनकी हास्य रचनाओं से जब भी कहीं हास्य कवियों की चर्चा होगी तो अग्रणी सूची में अग्रणी नाम इन्हीं का रहेगा इन्होने अपनी पूरी जिन्दगी में अपने श्रोताओं को बहुत हँसाया और गुदगुदाया इनका नाम काका कैसे पड़ा यह घटना भी अपने आप में एक अनूठी और हास्यास्पद रही जिसे संयोग ही कहा जायेगा हुआ यह कि बचपन में इन्हें नाटक में काम करने का बहुत शौक था उन्हीं दिनों इन्हें एक नाटक में काका का किरदार करने को मिला जिसे इन्होनें बखूबी निभाया और इसी नाम से पहचाने जाने लगे तब से यही नाम जीवन पर्यंत उनकी पहचान बना रहा उनका जन्म 18 सितम्बर 1906 को हाथरस, उत्तर प्रदेश में हुआ और उन्होंने अंतिम साँस 18 सितम्बर 1995 को ली यह भी उनके जीवन का एक आश्चर्यजनक संयोग रहा कि उनका जन्म और मृत्यु दोनों ही 18 सितम्बर को ही हुए उन्हें कला रत्न, पद्मश्री और ऑनरेरी सिटिज़न आदि अनेक पुरस्कारों से दुनिया भर में सम्मानित किया गया

 

काका हाथरसी के मुख्य कविता संग्रह इस प्रकार हैं-

 

काका की फुलझड़ियाँ

 

काका के प्रहसन

 

लूटनीति मंथन करि

 

खिलखिलाहट

 

काका तरंग

 

जय बोलो बेईमान की

 

यार सप्तक

 

काका के व्यंग्य बाण

 

काका के चुटकुले

 

तो आइए देखते हैं उनकी कुछ प्रसिद्ध रचनाएँ:-

 

अमंगल आचरण

 

मात शारदे नतमस्तक हो, काका कवि करता यह प्रेयर

ऐसी भीषण चले चकल्लस, भागें श्रोता टूटें चेयर

 

वाक् युद्ध के साथ-साथ हो, गुत्थमगुत्था हातापाई

फूट जायें दो चार खोपड़ी, टूट जायें दस बीस कलाई

 

आज शनिश्चर का शासन है, मंगल चरण नहीं धर सकता

तो फिर तुम्हीं बताओ कैसे, मैं मंगलाचरण कर सकता

 

इस कलियुग के लिये एक आचार संहिता नई बना दो

कुछ सुझाव लाया हूँ देवी, इनपर अपनी मुहर लगा दो

 

सर्वोत्तम वह संस्था जिसमें पार्टीबंदी और फूट हो

कुशल राजनीतिज्ञ वही, जिसकी रगरग में कपट झूठ हो

 

वह कैसा कवि जिसने अब तक, कोई कविता नहीं चुराई

भोंदू है वह अफसर जिसने, रिश्वत की हाँडी न पकाई

 

रिश्वत देने में शरमाए, वह सरमाएदार नहीं है

रिश्वत लेने में शरमाए, उसमें शिष्टाचार नहीं है

 

वह क्या नेता बन सकता है, जो चुनाव में कभी न हारे

क्या डाक्टर वह महीने भर में, पन्द्रह बीस मरीज़ न मारे

 

कलाकार वह ऊँचा है जो, बना सके हस्ताक्षर जाली

इम्तहान में नकल कर सके, वही छात्र है प्रतिभाशाली

 

जिसकी मुठ्ठी में सत्ता है, पारब्रह्म साकार वही है

प्रजा पिसे जिसके शासन में, प्रजातंत्र सरकार वही है

 

मँहगाई से पीड़ित कार्मचारियों को करने दो क्रंदन

बड़े वड़े भ्रष्टाचारी हैं, उनका करवाओ अभिनंदन

 

करें प्रदर्शन जो हड़ताली, उनपर लाठीचार्ज करा दो

लाठी से भी नहीं मरें तो, चूको मत, गोली चलवा दो

 

लेखक से लेखक टकराए, कवि को कवि से हूट करा दो

सभापति से आज्ञा लेकर, संयोजक को शूट करा दो

 

हिन्दी की दुर्दशा

 

बटुकदत्त से कह रहे, लटुकदत्त आचार्य

सुना? रूस में हो गई है हिंदी अनिवार्य

 

 

है हिंदी अनिवार्य, राष्ट्रभाषा के चाचा-

बनने वालों के मुँह पर क्या पड़ा तमाचा

 

 

कहँ 'काका', जो ऐश कर रहे रजधानी में

नहीं डूब सकते क्या चुल्लू भर पानी में

 

 

पुत्र छदम्मीलाल से, बोले श्री मनहूस

हिंदी पढ़नी होये तो, जाओ बेटे रूस

 

 

जाओ बेटे रूस, भली आई आज़ादी

इंग्लिश रानी हुई हिंद में, हिंदी बाँदी

 

 

कहँ 'काका' कविराय, ध्येय को भेजो लानत

अवसरवादी बनो, स्वार्थ की करो वक़ालत

 

पुलिस-महिमा

 

 पड़ा-पड़ा क्या कर रहा, रे मूरख नादान

दर्पण रख कर सामने, निज स्वरूप पहचान

 

 

निज स्वरूप पह्चान,नुमाइश मेले वाले

झुक-झुक करें सलाम, खोमचे-ठेले वाले

 

 

कहँ काका' कवि, सब्ज़ी-मेवा और इमरती

चरना चाहे मुफ़्त, पुलिस में हो जा भरती

 

 

कोतवाल बन जाये तो, हो जाये कल्यान

मानव की तो क्या चले, डर जाये भगवान

 

 

डर जाये भगवान, बनाओ मूँछे ऐसीं

इँठी हुईं, जनरल अयूब रखते हैं जैसीं

 

 

कहँ काका', जिस समय करोगे धारण वर्दी

ख़ुद आ जाये ऐंठ-अकड़-सख़्तीबेदर्दी

 

 

शान-मान-व्यक्तित्व का करना चाहो विकास

गाली देने का करो, नित नियमित अभ्यास

 

 

नित नियमित अभ्यास, कंठ को कड़क बनाओ

बेगुनाह को चोर, चोर को शाह बताओ

 

 

काका', सीखो रंग-ढंग पीने-खाने के

रिश्वत लेना पाप' लिखा बाहर थाने के

 

 दहेज़ की बारात

 

जा दिन एक बारात को मिल्यौ निमंत्रण-पत्र

फूले-फूले हम फिरें, यत्र-तत्र-सर्वत्र

 

 

यत्र-तत्र-सर्वत्र, फरकती बोटी-बोटी

बा दिन अच्छी नाहिं लगी अपने घर रोटी

 

 

कहँ 'काका' कविराय, लार म्हौंड़े सों टपके

कर लड़ुअन की याद, जीभ स्याँपन सी लपके

 

मारग में जब है गई अपनी मोटर फ़ेल

दौरे स्टेशन, लई तीन बजे की रेल

 

 

तीन बजे की रेल, मच रही धक्कम-धक्का

दो मोटे गिर परे, पिच गये पतरे कक्का

 

 

कहँ 'काका' कविराय, पटक दूल्हा ने खाई

पंडितजू रह गये, चढ़ि गयौ ननुआ नाई

 

नीचे को करि थूथरौ, ऊपर को करि पीठ

मुर्गा बनि बैठे हमहुँ, मिली न कोऊ सीट

 

 

मिली न कोऊ सीट, भीर में बनिगौ भुरता

फारि लै गयौ कोउ हमारो आधौ कुर्ता

 

 

कहँ 'काका' कविराय, परिस्थिति विकट हमारी

पंडितजी रहि गये, उन्हीं पे 'टिकस' हमारी

 

फक्क-फक्क गाड़ी चलै, धक्क-धक्क जिय होय

एक पन्हैया रह गई, एक गई कहुँ खोय

 

 

एक गई कहुँ खोय, तबहिं घुस आयौ टी-टी

मांगन लाग्यौ टिकस, रेल ने मारी सीटी

 

 

कहँ 'काका', समझायौ पर नहिं मान्यौ भैया

छीन लै गयौ, तेरह आना तीन रुपैया

 

जनमासे में मच रह्यौ, ठंडाई को सोर

मिर्च और सक्कर दई, सपरेटा में घोर

 

 

सपरेटा में घोर, बराती करते हुल्लड़

स्वादि-स्वादि में खेंचि गये हम बारह कुल्हड़

 

 

कहँ 'काका' कविराय, पेट हो गयौ नगाड़ौ

निकरौसी के समय हमें चढ़ि आयौ जाड़ौ

 

बेटावारे ने कही, यही हमारी टेक

दरबज्जे पे ले लऊँ नगद पाँच सौ एक

 

 

नगद पाँच सौ एक, परेंगी तब ही भाँवर

दूल्हा करिदौ बंद, दई भीतर सौं साँकर

 

 

कहँ 'काका' कवि, समधी डोलें रूसे-रूसे

अर्धरात्रि है गई, पेट में कूदें मूसे

 

बेटीवारे ने बहुत जोरे उनके हाथ

पर बेटा के बाप ने सुनी न कोऊ बात

 

 

सुनी न कोऊ बात, बराती डोलें भूखे

पूरी-लड़ुआ छोड़, चना हू मिले न सूखे

 

 

कहँ 'काका' कविराय, जान आफत में आई

जम की भैन बरात, कहावत ठीक बनाई

 

समधी-समधी लड़ि परै, तै न भई कछु बात

चलै घरात-बरात में थप्पड़- घूँसा-लात

 

 

थप्पड़- घूँसा-लात, तमासौ देखें नारी

देख जंग को दृश्य, कँपकँपी बँधी हमारी

 

 

कहँ 'काका' कवि, बाँध बिस्तरा भाजे घर को

पीछे सब चल दिये, संग में लैकें वर को

 

मार भातई पै परी, बनिगौ वाको भात

बिना बहू के गाम कों, आई लौट बरात

 

 

आई लौट बरात, परि गयौ फंदा भारी

दरबज्जै पै खड़ीं, बरातिन की घरवारीं

 

 

कहँ काकी ललकार, लौटकें वापिस जाऔ

बिना बहू के घर में कोऊ घुसन न पाऔ

 

हाथ जोरि माँगी क्षमा, नीची करकें मोंछ

काकी ने पुचकारिकें, आँसू दीन्हें पोंछ

 

 

आँसू दीन्हें पोंछ, कसम बाबा की खाई

जब तक जीऊँ, बरात न जाऊँ रामदुहाई

 

 

कहँ 'काका' कविराय, अरे वो बेटावारे

अब तो दै दै, टी-टी वारे दाम हमारे

 

जम और जमाई

 

बड़ा भयंकर जीव है, इस जग में दामाद

सास-ससुर को चूस कर, कर देता बरबाद

 

 

कर देता बरबाद, आप कुछ पियो न खाओ

मेहनत करो, कमाओ, इसको देते जाओ

 

 

कहॅं काका' कविराय, सासरे पहुँची लाली

भेजो प्रति त्यौहार, मिठाई भर- भर थाली

 

लल्ला हो इनके यहाँ, देना पड़े दहेज

लल्ली हो अपने यहाँ, तब भी कुछ तो भेज

 

 

तब भी कुछ तो भेज, हमारे चाचा मरते

रोने की एक्टिंग दिखा, कुछ लेकर टरते

 

 

काका' स्वर्ग प्रयाण करे, बिटिया की सासू

चलो दक्षिणा देउ और टपकाओ आँसू

 

जीवन भर देते रहो, भरे न इनका पेट

जब मिल जायें कुँवर जी, तभी करो कुछ भेंट

 

 

तभी करो कुछ भेंट, जँवाई घर हो शादी

भेजो लड्डू, कपड़े, बर्तन, सोनाचाँदी

 

 

कहॅं काका', हो अपने यहाँ विवाह किसी का

तब भी इनको देउ, करो मस्तक पर टीका

 

कितना भी दे दीजिये, तृप्त न हो यह शख़्श

तो फिर यह दामाद है अथवा लैटर बक्स?

 

 

अथवा लैटर बक्स, मुसीबत गले लगा ली

नित्य डालते रहो, किंतु ख़ाली का ख़ाली

 

 

कहँ काका' कवि, ससुर नर्क में सीधा जाता

मृत्यु-समय यदि दर्शन दे जाये जमाता

 

और अंत में तथ्य यह कैसे जायें भूल

आया हिंदू कोड बिल, इनको ही अनुकूल

 

 

इनको ही अनुकूल, मार कानूनी घिस्सा

छीन पिता की संपत्ति से, पुत्री का हिस्सा

 

 

काका' एक समान लगें, जम और जमाई

फिर भी इनसे बचने की कुछ युक्ति न पाई

 

जय बोलो बेईमान की!

 

मन मैला तन ऊजरा भाषण लच्छेदार

ऊपर सत्याचार है भीतर भ्रष्टाचार

झूठों के घर पंडित बाँचें कथा सत्य भगवान की

जय बोलो बेईमान की!

 

लोकतंत्र के पेड़ पर कौआ करें किलोल

टेप-रिकार्डर में भरे चमगादड़ के बोल

नित्य नयी योजना बनतीं जन-जन के कल्यान की

जय बोलो बेईमान की!

 

 

 

महँगाई ने कर दिए राशन कारड फेल

पंख लगाकर उड़ गए चीनी-मिट्टी-तेल

क्यू में धक्का मार किवाड़ें बंद हुईं दूकान की

जय बोलो बेईमान की!

 

डाक-तार-संचार का प्रगति कर रहा काम

कछुआ की गति चल रहे लैटर-टेलीग्राम

धीरे काम करो तब होगी उन्नति हिन्दुस्तान की

जय बोलो बेईमान की!

 

 

 

चैक कैश कर बैंक से लाया ठेकेदार

कल बनाया पुल नया, आज पड़ी दरार

झाँकी-वाँकी कर को काकी फाइव ईयर प्लान की

जय बोलो बेईमान की!

 

वेतन लेने को खड़े प्रोफेसर जगदीश

छ:-सौ पर दस्तखत किए मिले चार-सौ-बीस

मन ही मन कर रहे कल्पना शेष रकम के दान की

जय बोलो बेईमान की!

 

खड़े ट्रेन में चल रहे कक्का धक्का खायँ

दस रुपये की भेंट में थ्री टीयर मिल जाएँ

हर स्टेशन पर पूजा हो श्री टीटीई भगवान की

जय बोलो बेईमान की!

 

 

 

बेकारी औ भुखमरी महँगाई घनघोर

घिसे-पिटे ये शब्द हैं बन्द कीजिए शोर

अभी ज़रूरत है जनता के त्याग और बलिदान की

जय बोलो बेईमान की!

 

मिल मालिक से मिल गए नेता नमक हलाल

मंत्र पढ़ दिया कान में खत्म हुई हड़ताल

पत्र-पुष्प से पाकिट भर दी श्रमिकों के शैतान की

जय बोलो बेईमान की!

 

न्याय और अन्याय का नोट करो डिफरेंस

जिसकी लाठी बलवती हाँक ले गया भैंस

निर्बल धक्के खाएँ तूती बोल रही बलवान की

जय बोलो बेईमान की!

 

 

 

पर-उपकारी भावना पेशकार से सीख

बीस रुपे के नोट में बदल गई तारीख

खाल खिच रही न्यायालय में, सत्य-धर्म-ईमान की

जय बोलो बेईमान की!

 

नेताजी की कार से कुचल गया मज़दूर

बीच सड़क पर मर गया हुई गरीबी दूर

गाड़ी ले गए भगाकर जय हो कृपानिधान की

जय बोलो बेईमान की!


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