मेजर धन सिंह थापा.. भारत माँ का ऐसा बहादुर बेटा जिसे मरणोपरांत परमवीर चक्र देने का ऐलान कर दिया गया लेकिन वह दुश्मन देश से जिन्दा लौट कर आयाl (पुण्यतिथि पर विशेष)
मेजर धन सिंह थापा.. भारत माँ का ऐसा बहादुर बेटा जिसे मरणोपरांत परमवीर चक्र देने का ऐलान कर दिया गया लेकिन वह दुश्मन देश से जिन्दा लौट कर आया।(पुण्यतिथि पर विशेष)
दोस्तों, लद्दाख में लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल (एलएसी) से पहले पैंगोंग लेक के उत्तरी किनारे पर फिंगर 3 के करीब स्थित एक पोस्ट है जो कि इंडियन आर्मी का परमानेंट बेस है और इस पोस्ट का नाम भारत माँ के बहादुर सैनिक धन सिंह थापा के नाम पर रखा गया हैl धन सिंह थापा पोस्ट उस साहस का प्रतीक है जो सन् 1962 में चीन के साथ हुई जंग में नजर आई थीl धन सिंह थापा पोस्ट भारतीय सेना के परमवीर चक्र विजेता कर्नल धन सिंह थापा के नाम पर हैl
आइए आपको बताते हैं कौन थे परमवीर चक्र विजेता कर्नल धन सिंह थापा और क्यों उनके नाम पर एलएसी के करीब इस पोस्ट का नाम पड़ा?
हिमाचल प्रदेश के शिमला में हुआ था जन्म
मेजर धनसिंह थापा परमवीर चक्र से सम्मानित नेपाली मूल के भारतीय नागरिक थे। मेजर धन सिंह थापा का जन्म हिमाचल प्रदेश के शिमला में 10 अप्रैल 1928 को हुआl मेजर धन सिंह थापा 28 अगस्त 1949 में भारतीय सेना के आठवीं गोरखा राइफल्स में कमीशन अधिकारी के रूप में शामिल हुए थे। नवंबर 1961 में चीन की तरफ से हो रहे निर्माण कार्य और घुसपैठ को भारत की सीमा में अंजाम दिया जा रहा था और उसकी बढ़ती आक्रामकता के जवाब में भारत ने एक अहम फैसला लिया थाl भारत ने फॉरवर्ड पॉलिसी को लागू कर दिया और दिसंबर 1961 में सेना मुख्यालय की तरफ से इस पॉलिसी को लेकर निर्देश जारी हुएl कहा यह भी जाता हैं कि लद्दाख के लिए इस पॉलिसी की अहमियत कहीं ज्यादा हो गई थी जिस कारण से पॉलिसी के बाद यहां पर सेना की तरफ से बड़े स्तर पर तैनाती को अंजाम दिया गयाl
बढ़ती जा रही थी चीन की दखलंदाजी
सेना को जो निर्देश मिले थे उसके तहत उसे तिब्बत से लद्दाख की तरफ और पैंगोंग के उत्तरी किनारे पर खुरनाक फोर्ट से लेकर दक्षिण में चुशुल तक आते हर रास्ते को सुरक्षित करना थाl सेना की तरफ से विवादित हिस्सों में चीन की बढ़ती दखलंदाजी के जवाब में कई छोटी-छोटी पोस्ट्स बनाई गईंl भारत ने 1962 में जंग से पहले सिरिजैप, सिरिजैप 1 और सिरिजैप 2 के तौर पर तीन अहम पोस्ट्स तैयार कर ली थींl अक्टूबर के दूसरे हफ्ते में जंग शुरू होने के कुछ ही दिन पहले 8 गोरखा राइफल्स को सिरिजैप कॉम्प्लेक्स की तीन पोस्ट्स पर तैनात कर दिया गयाl तीनों पोस्ट्स का पैंगोंग पर मौजूद भारतीय सेना के बेस के साथ कोई जमीनी संपर्क नहीं थाl इन पोस्ट्स पर सप्लाई झील के रास्ते ही होती थीl सितंबर 1962 में चीन की सेना ने इस सिरिजैप कॉम्प्लेक्स को घेर लिया थाl चीन की एक पोजिशन को इस कॉम्प्लैक्स पर कोंग-9 और 10 नाम दिया गया थाl
मौका मिलने पर भी वो युद्धक्षेत्र से अलग नहीं रह सके
सिरिजैप 1 को मेजर धन सिंह थापा कमांड कर रहे थे और उनके पास करीब 30 जवान ही इसकी सुरक्षा के लिए थेl अचानक बेटी की मौत पर मेजर थापा को एक हफ्ते के लिए घर जाने के लिए छुट्टी दी गई थीl उनकी जगह पर एक ऑफिसर को तैनाती के लिए लेह भेजा गया थाl कहते हैं कि मेजर थापा ने छुट्टी मिलने के बाद भी अपनी कंपनी को अकेले नहीं छोड़ने का मन बना लिया थाl चीन के साथ युद्ध जैसे हालात थे और वह ऐसे समय पर घर नहीं जाना चाहते थेl इससे कुछ समय पहले जब उनकी बेटी का जन्म हुआ था तो उस समय भी मेजर थापा उग्रवादियों से ग्रसित नागालैंड में एक ऑपरेशन के लिए गए हुए थे।
20 अक्टूबर को चीन ने बोला हमला
चीन की आक्रामकता लगातार बढ़ रही थी और भारत सरकार उस समय यह स्वीकार ही नहीं कर रही थी कि चीनी सेना कुछ गलत कर सकती हैl 19 अक्टूबर 1962 को चीनी सेना की गतिविधियां काफी बढ़ गई थींl मेजर थापा इसे देखने के बाद अलर्ट हो गए थे और उन्होंने जवानों से गहरा गड्ढा खोदने के लिए कह दिया थाl 20 अक्टूबर को चीनी सेना ने हमला बोल दियाl करीब ढाई घंटे तक सिरिजैप पर मोर्टार और आर्टिलरी फायरिंग होती रही। कुछ शेल्स कमांड पोस्ट पर भी गिरीं और इसकी वजह से रेडियो सेट को काफी नुकसान पहुंचा। यह कम्युनिकेशन का अकेला ही जरिया था। अब पोस्ट का संपर्क बटालियन से पूरी तरह कट चुका था।
‘हमें मरना है और हम सब साथ में मरेंगे लेकिन मरने से पहले कुछ को मार कर ही मरना हैl’
मेजर थापा ने 1962 के भारत-चीन युद्ध के दौरान लद्दाख में चीन की सेना का बहादुरी से सामना किया था। जहाँ भारत के 31 वीर सैनिकों ने चीन के 600 से अधिक सैनिकों का अंतिम समय तक मुकाबला कियाl लद्दाख के उत्तरी सीमा पर पांगोंग झील के पास सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण चुशूल हवाई पट्टी को चीनी सेना से बचाने के लिए सिरिजैप घाटी में गोरखा राइफल्स की कमान संभाली। मेजर थापा के पास सिर्फ 30 जवान थे और हथियारों के नाम पर उनके पास 303 राइफल्स और लाइट मशीन गन्स थींl ये हथियार चीन के भारी हथियारों के सामने कुछ नहीं थेl मेजर थापा लड़ते रहे और बाकी जवानों को प्रेरित करते रहेl उनके शब्द थे, ‘हमें मरना है और हम सब साथ में मरेंगे लेकिन मरने से पहले कुछ को मार कर ही मरना हैl’ गोरखा राइफल्स के बहादुर सैनिक लड़ते रहे और सिरिजैप 1 चीन के हाथों में जाने से बच गयाl मेजर थापा के कुछ साथी जवान वीरगति को प्राप्त हो गए थेl वह अंत तक अपनी खुखरी से चीनी सेना का मुकाबला करते रहेl चीन की सेना ने उनके चेहरे पर राइफल की बट से हमला किया था और इसकी वजह से उनके दो दांत टूट गए थेl मेजर थापा ने चीनी सैनिक को ढेर कर दिया था. लेकिन चीन की सेना ने उन्हें घेर लिया और युद्धबंदी बनाकर अपने साथ ले गईl भारतीय चौकी तबाह हो गई और कई जवान शहीद हो गए। इस चौकी पर चीन के सैनिकों का नियंत्रण हो गया और उन्हें तीन साथियों के साथ युद्ध बंदी बना लिया गया।
चीन के जुल्मों के आगे नहीं झुके
चीन ने युद्ध बंदी के तौर पर उनके साथ बहुत बुरा बर्ताव कियाl उन्हें चीनी सैनिकों की हत्या के लिए दोषी माना गया और उन्हें सजा दी गईl क्योंकि उन्होंने चीन की कैद में होने के बाद भी सेना और भारत सरकार के खिलाफ बयान नहीं दिया इस बात से भी चीन खासा नाराज था इसकी वजह से भी उन्हें सजा दी गईl मगर जब युद्ध खत्म हुआ तो चीन ने उन्हें रिहा करने का फैसला कियाl सरकार और सेना ये भी मान चुकी थी कि मेजर थापा शहीद हो गए हैंl उनके घर पर उनकी शहादत की खबर भी भिजवा दी गई और उनका अंतिम संस्कार तक कर दिया गयाl तत्कालीन भारत सरकार ने उन्हें मरणोपरांत परमवीर चक्र देने का ऐलान तक कर डाला थाl
10 मई 1963 को लौटे वापस
मगर जब चीन ने भारत के युद्धबंदियों की लिस्ट जारी की तो उसमें मेजर थापा का भी नाम थाl इस खबर से उनके परिवार में खुशी की लहर दौड़ गईl 10 मई 1963 को जब वे भारत देश वापस लौटे तो आर्मी हेडक्वार्टर पर उनका स्वागत किया गयाl 12 मई को वह देहरादून अपने घर पहुंचेl उनके घर पर उनका अंतिम संस्कार किया जा चुका था और उनकी पत्नी विधवा की तरह रही थीl ऐसे में जब वह वापस आए तो फिर से धार्मिक परंपराओं के अनुसार पंडित ने उनका मुंडन कराया और फिर से उनका नामकरण किया गयाl पत्नी के साथ उन्होंने फिर से विवाह कियाl दुश्मनों से वीरता से लड़ने के कारण उन्हें सेना का सर्वोच्च सम्मान परमवीर चक्र देकर सम्मानित किया गया। वह लेफ्टिनेंट कर्नल होकर 1975 में रिटायर हुए थेl इसके बाद सहारा ग्रुप में आजीवन डायरेक्टर रहे। मेजर थापा ने 6 सितम्बर 2005 को पुणे में अंतिम साँस ली और शौर्य और पराक्रम का वह जीवंत उदाहरण परमेश्वर के चरणों में विलीन हो गयाl उनकी अभूतपूर्व बहादुरी और उनके अप्रतिम योगदान के लिए उन्हें युगों युगों याद रखा जायेगाl
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