रामवृक्ष बेनीपुरी... महान स्वतंत्रता सेनानी एवं बहुमुखी प्रतिभाशील साहित्यकार (पुण्यतिथि पर विशेष)

रामवृक्ष बेनीपुरी... महान स्वतंत्रता सेनानी एवं बहुमुखी प्रतिभाशील साहित्यकार (पुण्यतिथि पर विशेष)

 


भारत ने अंग्रेजों से अपनी आज़ादी पाने के लिए बहुत कुछ कुर्बान किया है जिसकी एक लम्बी फेहरिस्त है। आपको भगत सिंह, चंद्रशेखर आज़ाद, खुदीराम बोस, मंगल पाण्डेय आदि जैसे वीर स्वतंत्रता सेनानियों का बलिदान तो याद ही होगा लेकिन बिहार की माटी के लाल, प्रसिद्ध उपन्यासकार, कहानीकार, निबंधकार, नाटककार, पत्रकार और सम्पादक रामवृक्ष बेनीपुरी जी की आजादी की लड़ाई के बारे में बहुत कम ही लोगों को पता होगा।

तो आइए जानते हैं महान स्वतंत्रता सेनानी और बहुमुखी प्रतिभाशाली साहित्यकार रामवृक्ष बेनीपुरी जी के बारे में।

 


प्रारंभिक जीवन

रामवृक्ष बेनीपुरी जी का जन्म बिहार के मुजफ्फरपुर के बेनीपुर गाँव में 23 दिसंबर 1902 को हुआ था। इनके पिता का नाम फूलवंत सिंह था जो एक साधारण किसान थे। बचपन में ही इनके माता-पिता का देहांत हो गया था इस कारण इनकी मौसी ने इनका पालन पोषण किया था।

 शिक्षा

इनकी प्रारंभिक शिक्षा बेनीपुर में ही हुई। तत्पश्चात इनकी आगे की शिक्षा इनके ननिहाल में हुई। मैट्रिक परीक्षा उत्तीर्ण करने के पूर्व ही 1920 में वे पढ़ाई छोड़ कर महात्मा गांधी के नेतृत्व में प्रारंभ हुए असहयोग आंदोलन में शामिल होने के लिए चल पड़ेl बाद में उन्होंने हिंदी साहित्य से विशारदकी परीक्षा भी उत्तीर्ण की।

 

स्वतंत्रता संग्राम में रामवृक्ष बेनीपुरी जी का योगदान

भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन में रामवृक्ष बेनीपुरी जी का अमूल्य योगदान रहा है। रामवृक्ष बेनीपुरी जी हिंदी साहित्य के पत्रकार थे और इन्होंने कई अख़बारों की शुरुआत की थी जिसमें 1929 में युवकनाम का अख़बार भी शामिल था जिसमें इन्होंने अपने लेख द्वारा राष्ट्रवाद का लोगों में खूब प्रचार किया था और ब्रिटिश राज को उखाड़ फैंकने  की कसम खाई थी।

5 अप्रैल 1930 ई. को गांधी जी ने नमक कानून तोड़ने के लिए दांडी यात्रा की और उसे बंद करने के लिए जनता को परामर्श दिया। पटना में नमक सत्याग्रह करने की इजाजत राजेंद्र बाबू से बेनीपुरी जी ले आये। 16 अप्रैल 1930 ई. को सर्चलाइटके भूतपूर्व मैनेजर अंबिका कांत सिन्हा के नेतृत्व में पहला जत्था बनाया जिसमे बेनीपुरी जी शामिल थे परिणाम स्वरूप अंग्रेजी सरकार की पुलिस ने उनको गिरफ्तार कर लिया। उनको 1930 ई. में अप्रैल से अक्टूबर तक 6 महीने की जेल हुई लेकीन जेल में भी वह संगठनात्मक एवं रचनात्मक कार्य करते रहें। अपनी पत्रकारिता को जारी रखने के लिए जेल में ही उन्होंने कैदी नामक हस्तलिखित पत्रिका निकालना शुरू कियाl इस पत्र के पहले अंक के लिए राजेंद्र बाबू ने भी एक लेख प्रजा का धनलिखा थाl

बेनीपुरी जी जब अक्टूबर 1930 ई. में जेल से बाहर आए तब उन्होंने अपने गांव के निकट ही बागमती आश्रम की स्थापना की फिर पटना पहुंचकर ‘युवक’ पत्रिका का संपादन शुरू कियाl भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव की फांसी पर युवकपत्रिका में इकबाल जिंदाबादशीर्षक नाम से बेनीपुरी जी एक लेख छापा। इस लेख में ब्रिटिश सत्ता के खिलाफ विद्रोह की घोषणा की गई थीl इसके कारण बेनीपुरी जी पर राजद्रोह का अभियोग चला और अंग्रेज सरकार ने बेनीपुरी जी को डेढ़ साल की सजा दी। सजा पूरी होने के बाद दोबारा से ‘युवक’ निकालना कठिन था तो बेनीपुरी जी लोकसंग्रहमें कार्यकारी संपादक हो गए। तत्पश्चात वे खंडवा में कवि श्री माखनलाल चतुर्वेदी की कर्मवीरमें कार्यकारी संपादक का भार संभालने लगे। यह सन् 1935 ई. की बात है। वहां से लौटने पर वे ‘पटना’ के साथ साथ योगीके संपादक बने और इन ही दिनों में बिहार संपादक संघ के अध्यक्ष भी चुने गये।

रामवृक्ष बेनीपुरी जी ने 1931 में समाजवादी दलकी स्‍थापना कीl 1942 में अगस्त क्रांति आंदोलन के कारण उन्हें हजारीबाग जेल में जाना पड़ा और इतना ही नहीं उन्हें पत्र-प‍त्रिकाओं के माध्यम से देशभक्ति की जवाला भड़काने के आरोप में अनेकों बार अंग्रेजों द्वारा जेल भेजा गया। स्वतंत्रता के पश्चात रामवृक्ष बेनीपुरी जी 1957 में अपने समाजवादी दलके प्रत्‍याशी के रूप में बिहार विधानसभा के सदस्‍य निर्वाचित हुए थे।

 


रामवृक्ष बेनीपुरी जी की प्रमुख रचनाएं

रामवृक्ष बेनीपुरी जी ने उपन्यास, नाटक, कहानी, स्मरण, निबंध और रेखा चित्र आदि सभी गद्य विधाओं में अपनी कलम चलाई है। इन के कुछ प्रमुख ग्रंथ इस प्रकार हैं:– 

पतितो के देश में, रेखा चित्र-माटी की मूरत, लाल तारा, कहानीचिता के फूल, नाटक–अम्बपाली, निबंधगेहूं और गुलाब, मशाल, वंदे वाणी विनायको, संस्मरणजंजीरें और दीवारें, यात्रा वर्णनपैरों में पंख बांधकरl

बेनीपुरी जी ने अनेक पत्र-पत्रिकाओं का संपादन भी किया है जिनमें से कुछ इस प्रकार हैं:-

बालक, तरुण भारती, युवक, किसान मित्र, कैदी, योगी, जनता, हिमालय, नई धारा और चुन्नू मुन्नू

बेनीपुरी जी के संपूर्ण साहित्य को बेनीपुरी ग्रंथावली नाम से 10 खंडों में प्रकाशित कराने की योजना थी जिसके कुछ ही खंड प्रकाशित हो सके। माटी की मूरत इनके सर्वश्रेष्ठ रेखा चित्रों का संग्रह है जिसमें कुल 12 रेखाचित्र हैं।

 


सम्मान

1999 में भारतीय डाक सेवाद्वारा रामवृक्ष बेनीपुरी के सम्मान में भारत का भाषायी सौहार्द मनाने हेतु भारतीय संघ के हिंदी को राष्ट्रभाषा अपनाने की अर्धराती वर्ष में डाक टिकटों का एक संग्रह जारी किया। उनके सम्मान में बिहार सरकार द्वारा वार्षिक अखिल भारतीय रामवृक्ष बेनीपुरी पुरस्कारभी दिया जाता है।

 


साहित्य में स्थान

बेनीपुरी जी बहुमुखी प्रतिभा वाले लेखक थे। इन्होंने गद्य की विविध विधाओं को अपनाकर साहित्य की रचना की। पत्रकारिता से ही इनकी साहित्य साधना प्रारंभ हुई। साहित्य साधना और देशभक्ति इनके प्रिय विषय रहे। इनकी रचनाओं में कहानी, उपन्यास, नाटक, रेखाचित्र, संस्मरण, जीवनी, यात्रा वृतांत, ललित लेख आदि के श्रेष्ठ उदाहरण मिल जाते हैं। 9 सितंबर 1968 को मुजफ्फरपुर, बिहार में रामवृक्ष बेनीपुरी जी ने 66 वर्ष की उम्र में इस दुनिया को अलविदा कहाl

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