संदेश

लौहपुरुष

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  वो आदमी थे या कोई दरख़्त थे, इरादों से वो बड़े ही सख़्त थे। जिन्होंने दी थी देश को अखंडता, वो दूरदृष्टा और देशभक्त थे।। चुनें गए थे राष्ट्र के प्रधान वो प्रथम, परन्तु त्याग पद को वो महान बन गए। विवेक, सत्यवान और कर्मशील वो, स्वयं ही राष्ट्रधर्म की पहचान बन गए।। ना पद की चाह थी उन्हे, आजाद ही खुश थे। वो कोई और नहीं, वो तो लौहपुरुष थे।।

उठो, सवेरा हुआ है।

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उठो, सवेरा हुआ है। जागो, नया दिन आया है। प्रभात, किरणों की चादर ओढ़, नयी उमंगों की लहर लाया है। आसमान कुछ नीला हो गया, सूरज नयी किरणें बिखेर रहा है। चिड़िया चहचहा कर गीत गा रही है, प्रकृति सबको नवीन ऊर्जा दे रही है। उठो, अपनी आंखें खोलो, नयी सोच और नया अंदाज ढूँढो। अपने सपनों की दुनिया में खो जाओ, जीवन की नयी उड़ान पर निकलो। प्रकाश साफ दृष्टिकोण लाया है, आओ, नए नजरिए के साथ नयी शुरुआत करें। सुबह की इस पावन खुशियों के साथ, जीवन को सुंदर सपनों और प्रयास से भर दें। उठो, सवेरा हुआ है। जागो, नया दिन आया है। प्रभात, किरणों की चादर ओढ़, नयी उमंगों की लहर लाया है।

हाँ सर्वविदित है विजय है सत्य से।

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यह आ रही आवाज़ है नेपथ्य से, हाँ सर्वविदित है विजय है सत्य से। निःस्वार्थ का भावार्थ है  कि त्याग दें हम स्वार्थ को, अपनाएं निज जीवन में हम सेवार्थ को, परमार्थ को। जीवन के मूल्यों पर चलें, जीवन में उच्च विचार हो, मन में हमारे एकता, सदभावना और प्यार हो। ना शर्मसार हों स्वयं के कृत्य से, हाँ सर्वविदित है विजय है सत्य से। राम ने रावण को मारा, पाप पर पाई विजय, सत्यभाषी हम बनें, यह है अजर, यह है अजय। पांडवों से युद्ध में मारे गए कौरव सभी, पांडवों ने सत्य का ना साथ छोड़ा था कभी। मुख मोड़ लें अधर्म और असत्य से, हाँ सर्वविदित है विजय है सत्य से।

जीवन तेरा इरादा क्या है?

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पा कर खोना, खो कर पाना, जग में इससे ज्यादा क्या है? सुधा कहीं और कहीं हलाहल, जीवन तेरा इरादा क्या है? मंजिल दूर नही है लेकिन, मंजिल को पाने की खातिर, इंसान में विश्वास है कितना, खुद से खुद का वादा क्या है? सुधा कहीं और कहीं हलाहल, जीवन तेरा इरादा क्या है? आँखों में उत्साह अगर हो, मन में भी विश्वास अगर हो और रंगों में भरा हो साहस तो इस सफ़र में बाधा क्या है? सुधा कहीं और कहीं हलाहल, जीवन तेरा इरादा क्या है? जीवन में कुछ मित्र मिले हैं, जैसे जगमग दीप जले हैं, मित्र, मित्र की मर्यादा है, क्या पूरा और आधा क्या है? सुधा कहीं और कहीं हलाहल, जीवन तेरा इरादा क्या है?

ऐ जिन्दगी तूने जीना सिखा दिया

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ऐ जिन्दगी तूने जीना सिखा दिया। ऐ जिन्दगी तूने हर गम पीना सिखा दिया।। ऐ जिन्दगी तूने मुझे मजबूत बनाया है। इसलिये मुझे आज तुझ पे बहुत प्यार आया है।। ऐ जिन्दगी आ मेरे पास तुझे गले लगा लूं। छोड़ के सारी बातें, सब सिर्फ तुझ पे लुटा दूं।। ऐ जिन्दगी मुझे डर था कि तुझे प्यार करने से मेरे रिश्ते टूट ना जाएं। अच्छा हुआ भ्रम टूट गया, चल खुल के जिया जाए।। ऐ जिन्दगी चल, तेरे साथ चलने का फैसला किया। शुक्रिया ऐ जिन्दगी तूने हर हाल में जीना सिखा दिया।। रचनाकार अनीता झा

कंटकों का ध्यान ना कर, लक्ष्य का संधान कर

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कंटकों का ध्यान ना कर, लक्ष्य का संधान कर। स्वयं पर विश्वास कर, तू सत्य का आह्वान कर।। कार्य कर परहित के तू, ना स्वयं पर अभिमान कर। स्वयं पर विश्वास कर तू, सत्य का आह्वान कर। शुभ कर्म कर कि आत्मग्लानि का कदापि न भार हो। तेरे विचारों से प्रखर ऊर्जा का नव संचार हो।। आदर्श पर चल कर सदा, तू स्व-चरित बलवान कर। स्वयं पर विश्वास कर तू सत्य का आह्वान कर।। ज्यों कृषक कर घोर श्रम, जग को खिलाता रोटियां। त्यों अडिग निश्चय से झुकती पर्वतों की चोटियां।। हो स्वयं से तू सफल, तू स्वयं का अनुमान कर। स्वयं पर विश्वास कर तू सत्य का आह्वान कर।। मनन कर अंतःकरण का, सीख ले जिजीविषा। लोकहित की भावना फैला तू चारों ही दिशा।। संकल्प कर स्व-आचरण से शील का निर्माण कर। स्वयं पर विश्वास कर तू सत्य का आह्वान कर।। सिंह मृग की दौड़ से दोनो की है जीवंतता। कामना पिंजरे के खग की तोड़ दे परतंत्रता।। प्रश्न तू कर ले स्वयं से, स्वयं ही समाधान कर। स्वयं पर विश्वास कर तू सत्य का आह्वान कर।। ना त्याग नैतिक मूल्य तू, आए भले ही आपदा। तेरे चरित्र की उच्चता ही, है तेरी निज संपदा।। कर के असत्य का आचरण, ना स्वयं को निष्प्र...

किसने रोका है तुझे ऊपर उठने से

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किसने रोका है तुझे ऊपर उठने से। एक नज़र डाल जरा ऊपर भी घुटने से।। कब तलक रहेगा सुविधाहीन वंचित। मस्तिष्क को कर सुविचारों से सिंचित।। गिरह खोल  स्वयं का निर्माण कर। कर्मठी, उद्यमी, परिश्रमी इंसान बन।। कुछ सपने अपनी आँखों में पाल। वक्त को अपने अनुसार ढाल।। कब तक शर्म की सीलन में सड़ेगा। निकल एक दिन तो लड़ना ही पड़ेगा।। न हो इस तरह किंकर्तव्यविमूढ़। निश्चय कर हो जा सफलता पर आरुढ़।। शर्म संकोच की दीवार गिरा दे। सम्मान स्वयं का ह्रदय में जगा दे।। यदि तू ख़ुद को इज्जत नहीं देगा। तो तेरे होने  न होने से फर्क नहीं पड़ेगा।। आत्मसम्मान की खातिर दुनिया से भिड़ना पड़ता है। अपने अधिकार के लिए हर रोज लड़ना पड़ता है।। इसलिए तैयार हो जा संघर्ष ही जीवन है। कुछ न करना न सोचना न विचारना ही मरण है।।