कंटकों का ध्यान ना कर, लक्ष्य का संधान कर



कंटकों का ध्यान ना कर, लक्ष्य का संधान कर।
स्वयं पर विश्वास कर, तू सत्य का आह्वान कर।।
कार्य कर परहित के तू, ना स्वयं पर अभिमान कर।
स्वयं पर विश्वास कर तू, सत्य का आह्वान कर।

शुभ कर्म कर कि आत्मग्लानि का कदापि न भार हो।
तेरे विचारों से प्रखर ऊर्जा का नव संचार हो।।
आदर्श पर चल कर सदा, तू स्व-चरित बलवान कर।
स्वयं पर विश्वास कर तू सत्य का आह्वान कर।।


ज्यों कृषक कर घोर श्रम, जग को खिलाता रोटियां।
त्यों अडिग निश्चय से झुकती पर्वतों की चोटियां।।
हो स्वयं से तू सफल, तू स्वयं का अनुमान कर।
स्वयं पर विश्वास कर तू सत्य का आह्वान कर।।

मनन कर अंतःकरण का, सीख ले जिजीविषा।
लोकहित की भावना फैला तू चारों ही दिशा।।
संकल्प कर स्व-आचरण से शील का निर्माण कर।
स्वयं पर विश्वास कर तू सत्य का आह्वान कर।।



सिंह मृग की दौड़ से दोनो की है जीवंतता।
कामना पिंजरे के खग की तोड़ दे परतंत्रता।।
प्रश्न तू कर ले स्वयं से, स्वयं ही समाधान कर।
स्वयं पर विश्वास कर तू सत्य का आह्वान कर।।

ना त्याग नैतिक मूल्य तू, आए भले ही आपदा।
तेरे चरित्र की उच्चता ही, है तेरी निज संपदा।।
कर के असत्य का आचरण, ना स्वयं को निष्प्राण कर।
स्वयं पर विश्वास कर तू सत्य का आह्वान कर।।

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