किसने रोका है तुझे ऊपर उठने से

तुझे
ऊपर उठने से।
एक नज़र डाल
जरा
ऊपर भी घुटने से।।
कब तलक रहेगा
सुविधाहीन
वंचित।
मस्तिष्क को कर
सुविचारों से
सिंचित।।
गिरह खोल
स्वयं का
निर्माण कर।
कर्मठी, उद्यमी,
परिश्रमी
इंसान बन।।
कुछ सपने
अपनी आँखों में
पाल।
वक्त को
अपने अनुसार
ढाल।।
कब तक
शर्म की
सीलन में सड़ेगा।
निकल
एक दिन तो
लड़ना ही पड़ेगा।।
न हो
इस तरह
किंकर्तव्यविमूढ़।
निश्चय कर
हो जा
सफलता पर आरुढ़।।
शर्म संकोच
की दीवार
गिरा दे।
सम्मान स्वयं का
ह्रदय में
जगा दे।।
यदि
तू ख़ुद को
इज्जत
नहीं देगा।
तो
तेरे होने
न होने से
फर्क नहीं पड़ेगा।।
आत्मसम्मान
की खातिर
दुनिया से
भिड़ना पड़ता है।
अपने अधिकार
के लिए
हर रोज
लड़ना पड़ता है।।
इसलिए
तैयार हो जा
संघर्ष ही
जीवन है।
कुछ न करना
न सोचना
न विचारना
ही मरण है।।
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