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अपना फर्ज निभाते हैं

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इस दुनिया में सब, अपना फर्ज निभाते हैं। बी. पी. शुगर बढ़ाने वाले ही, मशीन व दवाई लाते हैं।। जी हां, इस दुनिया में सब, अपना फर्ज निभाते हैं। मैं हूं ना कहने वाले ही, साथ छोड़ जाते हैं।। वो हमारे सुख में, साथ आते नही हैं। क्योंकि फर्ज है उनका भी, दुख में मुस्कुराते नहीं हैं।। बहुत शातिर हैं, वो चंद लोग, जो अपना फर्ज निभाते हैं। क्योंकि परेशानियों में डालकर, वो अकेले में मुस्कुराते हैं, लेकिन वो अपना फर्ज जरूर निभाते हैं।। वो कुछ ऐसा नहीं कहते, कि किसी बात की शुरुआत हो। और कुछ ऐसा भी नहीं करते जिससे सुख भरी रात हो।। लेकिन हमें तकलीफ में देखकर, वो हमे अपनाते हैं। पीठ पीछे मुस्कुराकर, वो सामने से फर्ज निभाते हैं।। अपनों के दायरे में नाम आता है इनका, जो ऐसा फर्ज निभाते हैं।

लाल कफन

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मै क्यों ख्वाहिश पूरी करूं उनकी। जिन्होंने मुझे लाल कफन में दफना दिया।। मैं क्यों मुस्कुराऊं उनके कहने पर। जिन्होने मुझे रोना और उदास रहना सिखा दिया।। मैं क्यों उनके हिसाब से जीऊं। जिन्होने मुझे जिंदा लाश बना दिया।। बताओं मुझे, मैं क्यो कठपुतली बन जाऊं। किसी साहब की, मुझे लाल कफन पहना दिया।। मैं क्यों तनिक दुख बर्दाश्त करूं उनके लिये, जिन्होंने अपने जीवन में मेरा न. बाद मे रखा है। मेरी खिलखिलाती मुस्कान को सिर्फ विवाद मे रखा है।। मै क्यों उनके साथ समझोता करूं, जो मेरे सब कहने पर भी मुझे नहीं समझ पाते। दुख में साथ मांगते मेरा और सुख में मुझे खोजने नहीं आते।। उन्हें माननी होगी ये बात उन्होंने मेरा हंसना भुला दिया। बड़े ही शातिर थे वे शख्स, मुझे लाल कफन में दफना दिया।।

श्री राम लक्ष्मण जानकी स्वागतम

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श्री राम लक्ष्मण जानकी स्वागतम। 22 जनवरी 2024 दिन अत्यन्त पावन व उत्तम।। हम मिथिला वासी, बड़े भाग्यशाली, जो देखेंगे। श्री राम लक्ष्मण जानकी स्वागतम। जीवन हुआ धन्य और उत्तम॥ 22 जनवरी 2024 के दिन, राम स्वयं धरती पर आएंगे। 84 लाख जीव कलयुग के, सब तर जायेंगे।। मोदी जी के साथ-साथ, डी.एम. सी. एम. मजदूर। सभी को कोटी - कोटी धन्यवाद, जो अयोध्या को किया दोबारा से मशहूर॥  मैं अनीता झा अपने घर को, दुल्हन सा सजाऊंगी। श्री राम लक्ष्मण जानकी स्वागतम को, भव्यता से मनाऊंगी।।

मृत्यु

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  मेरे आँगन की पहली मृत्यु ने एक अजीब सच बताया है। अनुभव से लिखा है मैंने, मानव मे कितना प्रेम और कितना रंग समाया है।। यूं तो कभी साथ मे बैठकर दो शब्द कहा नहीं। अब मृत्यु देखकर कहा मानव ने मेरा प्रिय रहा नहीं।। वाह रे मानव तूने कैसा प्रेम जताया है। मृत्यु के बाद तूने क्या फर्ज निभाया है? माना मैंने कि तुझे उनसे तकलीफ थी। क्या मानव की मृत्यु एक नई सीख थी? मानती हूं मैं, जीते जी इतना सम्मान मिलने पर, मानव का अहंकार बढ़ता है। क्या मृत्यु के बाद के फ़र्ज को पूरा करने से संस्कार बढ़ता है? मानव तेरा दिखावा और तेरा स्वार्थ यही तक साथ निभाएगा। याद रखना, ईश्वर के घर, सिर्फ निस्वार्थ प्रेम व सच्चा कर्म ही जाएगा।। मत बहाना आंसू किसी की मृत्यु पर। एक बार जीते जी गले लगाना, मानव की गलतियों को नजरअंदाज कर।।

ट्वेन्टी ट्वेन्टी वर्ल्ड कप की लख लख बधाइयां

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दो हजार चौबीस उनत्तीस जून। कैरेबियाई जमीं पर भारतीय जुनून।। पहले विराट की विराट पारी। फिर ट्वेन्टी ट्वेन्टी से सन्यास की बारी।। सूर्य कुमार यादव का जबरदस्त कैच। छीन लिया पंजे में फंसा हुआ मैच।। विराट, अक्षर और शिवम की बल्लेबाजी। बुमराह, अर्शदीप और हार्दिक के गेंदबाजी।। बेकार नही गए रोहित शर्मा के आंसू। भारत का प्रदर्शन रहा शानदार धांसू।। वर्ल्ड कप हाथ में, खिलखिलाते चेहरे थे। देश के विजयी क्षण आंखों में गहरे थे।। करो स्वागत, विजेताओं का, बजाओ शहनाइयां। ट्वेन्टी ट्वेन्टी वर्ल्ड कप की लख लख बधाइयां।।

हो गर महफिल सजी और मंच पर तुम हो

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हो गर महफिल सजी और मंच पर तुम हो, गजल उम्मीद से लबरेज गा देना। तुम्हारा नाम भी गूंजे फिजाओं मे, कुछ ऐसा काम तुम करके दिखा देना।। बहुत उम्मीद‌ है मां बाप को तुमसे, न उनका नाम मिटटी में मिला देना। अगर तुमने किया अहसान लोगों पर, तो नेकी कर के दरिया में बहा देना।। बहुत मजलूम भी इन बस्तीयों में हैं, हो मुमकिन तो उन्हें थोड़ा हँसा देना। यहाँ कुछ हैं कि जो सोए है सदियों से, जरा सा शोर कर उनको जगा देना।। अगर मिलना हो मुझसे इतना बस करना, कि मेरा नाम लोगों को बता देना। जनाजा ही फकत सच है जमाने में, हो जिंदा जब तलक सबको दुआ देना।। बहुत मुश्किल से होता है यकीं हासिल, किसी को जिन्दगी में ना दगा देना। बहुत रोड़े पड़े हैं तेरी राहों मे, उन्हें सीखो मुहब्बत से हटा देना।। यही अच्छा कि बातों से सुलझ जाए, बहुत आसान शोलों को हवा देना।। किसी की जिन्दगी का नूर गर तुम हो, तो उसको भूलकर भी ना भुला देना।। मुआफी भी तो होती है जमाने में, जरूरी तो नहीं सबको सजा देना। जिन्होंने अब तलक पाला तुम्हें देकर के खूँ, नहीं अच्छा उन्हें घर से भगा देना।।

कौन हैं ये लोग

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संयम ने मुझ‌को मौन किया, क्रोध ने छीने लोग। संघर्ष ने बल दिया, तनाव ने दिया है रोग।। सारा खेल इच्छाओं का है, वरना सब संयोग। जो मिला उससे खुश नहीं, जो नहीं उसका वियोग।। मैं मानव, अपनें दायरे से ज्यादा मांगू। तभी शायद, लगता है तन को रोग।। मुझे मानना होगा सत्य, समय और प्रत्यक्ष लोग। जरा पहचानना होगा, मुझे उदास करने वाले, कौन हैं ये लोग।।