चुभे क्यूं तीर सबको मेरी आवाज के


चुभे क्यूं तीर सबको मेरी आवाज के 

नाखून हैं क्या ये किसी चील बाज के


गर हम में शोखी है नहीं तो हम चाहते भी ये है

कि हमसे आके मिले लोग हों जो हममिज़ाज के


मेरे मकां में कोई भी इंसान नहीं है पर 

दो चार बोरे पड़े हुए है यूं ही अनाज के


नगदी नहीं है जेब में मगर फोन पे में है 

यूं ही कुछ ढाई सौ रुपए वो भी ब्याज के


इतनी नादारी है की अब कैसे जुगाड़े हम

 बिस्तर पर पड़ी मां के लिए पैसे इलाज के


होते थे पहले लाखों में दो चार ही शायर 

दो लाइन लिख के बच्चे बने हैं शायर आज के


आखिर वो भी लटक गया एक पंखे से "जदीद"

 सह नहीं पाया वो भी ताने समाज के


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